आज इस दौड़भरी जिंदगी में हर कोई दूसरा व्यक्ति डिप्रेशन से जूझता है। डिप्रेशन कोई सामान्य रोग नहीं है। यह हमारे मन से जुड़ा रोग होता है। जिसका यदि समय पर इलाज न कराए जाए तो समय के साथ बढ़ता रहता है और एक समय आने पर व्यक्ति को इतनी निराशा और हताशा से भर देता है कि उसे अपने सामने सिर्फ अंधकार दिखाई देता है और ऐसी अवस्था में वो आत्महत्या जैसे कदम उठा लेता है। हालांकि इससे बचने के लिए मनोचिकित्सक सलाह के साथ-साथ व्यक्ति को अपनी जीवनशैली में व्यायाम, योग और मेडिटेशन करने की सलाह दी जाती है। वहीं डिप्रेशन का सामना कर रहे ब्रिटेन के स्कूली बच्चों को लेकर चौंकाने वाले नतीजे सामने आए हैं।
मेडिटेशन से स्कूली बच्चे हो गए बोर
दरअसल ब्रिटेन में बच्चों के दिमाग को केंद्रित रखने के लिए स्पेशल मेडिटेशन क्लासेस शुरू की गईं। जिसे माइंडफुलनेस ट्रेनिंग का नाम दिया गया। लेकिन ब्रिटेन सरकार ने जब मांइडफुलनेस ट्रेनिंग के परिणाम जांचने के लिए शोध किया तो 10 में से 8 स्कूली बच्चों ने इन क्लासेज के प्रति बोरियत का इजहार किया। उनका कहना था कि उनकी इसमें कोई रुचि नहीं है और वे घर जाकर इसकी ट्रेनिंग भी नहीं करते हैं। शोध में ब्रिटेन के लगभग 100 से ज्यादा स्कूलों के 28 हजार से ज्यादा स्टूडेंट्स और 650 टीचरों को शामिल किया गया।
बच्चों से ज्यादा टीचर्स को हुआ क्लास का फायदा
माई रेजिलिएंस इन ऐडोलेसेंस के शोध में सामने आया कि मुख्य रूप से बच्चों के लिए शुरू की गई ट्रेनिंग का फायदा बच्चों की बजाय टीचर्स को हुआ है। टीचर्स यह ट्रेनिंग घर और स्कूल में लगातार करते हैं। जिस कारण उनका मानसिक स्वास्थ्य पहले से ज्यादा अच्छा हुआ। उन्हें यह ट्रेनिंग करने से बर्नआउट की समस्या से भी निजात मिली है।
ट्रेनिंग के मॉडल को बदलने की जरूरत
ब्रिटिश साइकोलॉजिकल सोसाइटी के डॉ. डैन ओ हारे का कहना है कि शोध में सामने आए नतीजों के अनुसार माइंडफुलनेस ट्रेनिंग के मॉडल को बदलने की जरूरत है। जिससे कि छात्रों को भी इसका फायदा मिल सके। डॉ. हारे का कहना है कि सुधार किए बिना इन क्लासेज का फायदा नहीं मिलेगा।
ब्रिटेन की एक चौथाई आबादी डिप्रेशन का शिकार
एक शोध के अनुसार ब्रिटेन की लगभग एक चौथाई आबादी डिप्रेशन का शिकार है। ब्रिटेन की लगभग 7 करोड़ की आबादी के लिए नेशनल हेल्थ स्कीम के तहत मेंटल हेल्थ के लिए स्पेशल बजट भी जारी किया जाता है। इसके बावजूद डिप्रेशन की समस्या ऐसी ही बनी हुई है।
WHO के आंकड़े चौकानें वाले
विश्व स्वास्थ्य संगठन यानि WHO की मानें तो हर साल करीब 8 लाख लोग आत्महत्या के कारण मर जाते हैं, जिसके पीछे डिप्रेशन का बड़ा हाथ होता है। अगर WHO के आंकड़ों पर गौर करें तो ये चौकानें वाले हैं। इस समय पूरी दुनिया में लगभग 264 मिलियन लोग डिप्रेशन के शिकार हैं। इतना ही नहीं इस समय दुनियाभर में जितने भी शारीरिक और मानसिक रोग हैं, उनका एक प्रमुख कारण डिप्रेशन ही है। कोरोना के बाद दुनिया भर में लॉकडाउन होने की स्थिति के कारण लोगों को इन समस्याओं का कुछ ज्यादा ही सामना करना पड़ रहा है।
डिप्रेशन के लक्षण
1- किसी भी काम में मन नहीं लगना
2- छोटे-छोटे कामों में बहुत थकान महसूस होना
3- लगातार मन उदास रहना
4- आपकी नींद में उतार-चढ़ाव आना
5- भूख में कमी आना
6- बहुत ज्यादा नकारात्मक विचार आना