रंगों के साथ ही सातों सुरों का भी बेजोड़ मेल है कुमाऊं की बैठकी व खड़ी होली

विश्व प्रसिद्ध बरसाने की लठमार होली की तरह ही कुमाऊं की होली का भी अपना अलग महत्व है। कुमाऊं की होली की सबसे खास बात इसकी सांस्कृतिक विशेषता है, जिसके चलते यह न केवल पूरे देश में बल्कि विश्व भर में जानी जाती है। कुमाऊं में होली की शुरुआत दो महीने पहले हो जाती है। यहां सात रंगों के साथ ही सातों सुरों का भी बेजोड़ मेल देखने को मिलता है। अबीर-गुलाल के साथ ही होली गायन की विशेष परंपरा है। मंत्र मुग्ध करने वाले ये गीत किसी को भी झूमने पर मजबूर कर देते हैं। कुछ ऐसा ही नज़ारा आजकल पिथौरागढ़ की बैठकी और खड़ी होली में देखने को मिल रहा है।
होली के त्यौहार पर पहाड़ भी होली के रंग में सराबोर हो गया है। पौष माह के पहले सप्ताह से ही और बसंत पंचमी के दिन से ही गांवों में बैठकी होली का दौर शुरु हो जाता है। इस रंग में सिर्फ अबीर गुलाल का टीका ही नहीं होता बल्कि बैठकी होली और खड़ी होली गायन की शास्त्रीय परंपरा भी शामिल होती है। होल्यार हारमोनियम, तबला और हुड़के की थाप पर भक्तिमय होलियों से बैठकी होली शुरु करते हैं। इन होलियों को शास्त्रीय रागों पर गाया जाता है, जिनमें दादरा और ठुमरी ज्यादा प्रचलित हैं। इसके अलावा महिलाओं की बैठकी होली भी बहुत प्रसिद्ध है, जिसमें महिलाओं के स्वभावानुसार श्रॄंगार रस की अधिकता होती है।
बैठकी होली कुमाऊं के लोक संगीत में रची बसी होने के बाद भी इसकी भाषा ब्रज की है। कुमाऊं की इस बैठकी होली में ब्रजभाषा पर आधारित शास्त्रीय गीत गाये जाते हैं। ये होली मुख्य रूप से काफी, जंगला, खमाज, जैजैबन्ती, धमार, श्याम कल्याण आदि रागों में गाई जाती है। बैठकी होली में भक्ति, छेड़छाड़, विरह, कृष्ण गोपी प्रेम और श्रंगार जैसे रसों का अनोखा मिश्रण देखने को मिलता है। पिथौरागढ़ ज़िले के विभिन्न हिस्सों में इन दिनों बैठकी होली की धूम मची हुई है। होली गायकों की सुंदर प्रस्तुतियों पर लोग रात-रात भर झूम रहे हैं।
तबले, हारमोनियम और मंजीरे की थाप पर कुमाऊँनी बैठकी होली की दिलकश राग-रागनिया एक समृद्ध ऐतिहासिक और लोक पारम्परिक विरासत की कहानी को बयां करती है। हांलाकि बदलते परिवेश के साथ होली गायकी के अंदाज भी बदले हैं। लेकिन आज भी कुमाऊँ की बैठकी होली अपने आप में कई खूबियों को समेटे हुए है। जानकारों के अनुसार ये होली गिरते सामाजिक मूल्यों को बचाने में अहम योगदान अदा करती है। ऐसे में होली के इस रूप को सहेजकर रखना भी जरुरी हो गया है।
कुमाऊँ की बैठकी होली के अलग रंग और अलग ढंग है। जहाँ होली के त्यौहार में मौज मस्ती और होहल्लड़ छाया रहता है। वही शास्त्रीय संगीत पर आधारित बैठकी होली इसे शालीनता प्रदान करती है। होली के रंगों के बीच रागों का यह अनूठा संगम सिर्फ और सिर्फ कुमाऊं में ही देखने को मिलता है। इसे अनूठी होली कहना भी गलत नहीं होगा, क्योंकि यहां होली सिर्फ रंगों से ही नहीं, बल्कि रागों से भी खेली जाती है।

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