दलित भोजनमाता मामले में सरकार सख्त, CM धामी ने DIG से कहा दोषियों को बख्शा न जाए

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देहरादून. उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने शुक्रवार को उस मामले में जांच के आदेश दे दिए हैं, जिसमें चंपावत के एक स्कूल में भोजनमाता के पद से एक महिला को दलित होने के कारण हटाने की बात सामने आई थी. यह मामला तब सुर्खियों में आ गया था, जब चंपावत ज़िले के इस स्कूल में सवर्ण वर्ग के छात्रों ने मिड डे मील खाने से मना कर दिया था क्योंकि वह एक दलित महिला द्वारा पकाया जा रहा था. इसके बाद स्कूल पर दलित कर्मचारी को हटाकर सवर्ण वर्ग की महिला को भोजनमाता के तौर पर नियुक्त करने के आरोप लगे थे.

चंपावत ज़िले के सूखीढांग गांव में स्थित इस सकूल के मामले में जांच करने के लिए सीएम धामी ने कुमाऊं अंचल के डीआईजी नीलेश आनंद भरणे को निर्देशित किया है और कहा ​है कि दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाए. पीटीआई की खबर के मुताबिक भरणे को ये निर्देश भी दिए गए हैं कि उन लोगों पर भी नज़र और लगाम रखी जाए जो इस मामले से जुड़े गलत तथ्य या अफ़वाहें उड़ा रहे हैं. इधर, भोजनमाता की नियुक्ति पर उठे सवालों के बाद स्कूल प्रबंधन ने दावा किया कि इस पद के लिए हुई चयन प्रक्रिया में सभी नियमों का पालन किया गया.

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क्या है पूरा मामला और विवाद?
इससे पहले इस महीने की शुरुआत में हुआ ये था कि इस स्कूल में मिड डे मील पकाने वाली महिला का कार्यकाल समाप्त हो रहा था. उसके रिटायरमेंट के चलते एक दलित महिला को इस पद पर नियुक्ति मिली, जिसके बाद सवर्ण वर्ग के बच्चों ने स्कूल में भोजन करने से मना करते हुए अपने घरों से टिफिन बॉक्स लाना शुरू कर दिया. यही नहीं, अभिभावक संघ ने कहा कि जब स्कूल में सवर्ण बच्चों की संख्या ज़्यादा है, तो भोजनमाता भी सवर्ण वर्ग से होनी चाहिए.

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इस मामले पर कांग्रेस नेता पूर्व सीएम हरीश रावत ने ट्वीट किया था.

इसके बाद अभिभावकों ने ये आरोप भी स्कूल प्रबंधन ने लगाया कि पैरेंट्स टीचर मीटिंग के बाद एक सवर्ण महिला पुष्पा भट्ट को भोजनमाता के तौर पर नियुक्त किया जाना तय हुआ था, लेकिन प्रबंधन ने यह नौकरी किसी अन्य महिला को दे दी. नियम तोड़ने पर सवाल उठाते हुए ये भी कहा गया था कि स्कूल के प्रधानाचार्य ने जाति आधारित पक्षपात को बढ़ावा दिया.

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