उत्तर प्रदेश विधान परिषद में कांग्रेस का एक भी सदस्य नहीं

यूपी संसदीय इतिहास में पहली बार ऐसा हो रहा है जब विधानपरिषद में कांग्रेस का एक भी सदस्य नहीं होगा। कांग्रेस के विधानपरषद के एकमात्र सदस्य दीपक सिंह का कार्य़काल 6 जुलाई को पूरा हो गया है। इसके बाद कांग्रेस का प्रतिनिधित्व करने वाला कोई सदस्य सदन में नहीं होगा। विधानसपरिषद से रिटायर होने वाले सदस्यों में 10 सपा दो बीजेपी दो बसपा और एक कांग्रेस के शामिल हैं। दीपक सिंह जून 2016 में विधानसपरिषद के लिए चुने गए थे।

 यूपी विधानपरिषद विधानसभा का गठन पांच जनवरी 1887 को हुआ था। जबकि इससे पहले 1885 में भारतीय राष्टीय कांग्रेस का गठन हो चुका था। 1910 में बाबू गंगा प्रसाद वर्मा उस सात व्यक्तियों में थे जिन्होंने 1985 में मुंबई में कांग्रेस की स्थापना की थी। 1910 में ही मोतीलाल नेहरू विधानसपरिषद के सदस्य बने थे। आगे उन्होंने दो सम्मेलनों में कांग्रेस की अध्यक्षताकी। देश की आजादी के बाद विधानपरिषद में नेता सदन का आसन ज्यादातर  कांग्रेस के पास ही रहा। हालांकि जनता पार्टी के समय 1977 से लेकर 79 तक  और 79से 80 तक नेता सदन का पद कांग्रेस के पास नहीं था। 1989 के बाद कांग्रेस का यूपी विधानपरिषद में लगातार सीट कम होती चली गई। 18वीं विधानसभा के चुनाव में उसके केवल दो सदस्य ही चुनाव जीते हैं। इस स्थिति में कांग्रेस के लिए विधानपरिषद की सीट निकालना संभव नहीं था। न ही किसी दूसरी पार्टी का उसके लिए आमंत्रण था।

 विधानपरिषद में 100  सदस्यों में 38 का चयन विधानसभा के सदस्य करते हैं। 36 सदस्य स्थानीय निकाय के जरिए चुने जाते हैं। और 16 ग्रेजुएट  अध्यापक क्षेत्र से चुने जाते हैं। 10 सदस्यों का मनोनयन राज्यपाल के जरिए किया जाता है।

 विधानपरिषद से कांग्रेस की कई ऐसी शख्सियत रही हैं जो राज्य के मुख्यमंत्री भी बने हैं। प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री पंडित गोविद बल्लभ पंत 1924 से 1929 तक विधानपरिषद के सदस्य रहे। इसी तरह राज्य के दूसरे मुख्यमंत्री संपूर्णानंद भी विधानपरिषद के सदस्य रहे।  राज्य का बागडोर संभालने वाले चद्रभानु गुप्त,.  एनडी तिवारी  सुचेता कृपलानी  विश्वनाथ प्रताप सिंह  और श्रीपति मिश्र भी विधान परिषद में रहे।

कांग्रेस के यूपी में अपनी खोई जमीन तलाश रही है। लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने यूपी से रायबरेली की सीट हासिल की थी। इस सीट पर सोनिया गांधी ने जीत हासिल की। विधानसभा चुनाव में भी कांग्रेस को करारा झटका लगा। उसे रामपुर और महाराजगंज की फरेंदा सीट ही हासिल की। इसके साथ ही विधानपरिषद में अब उसका कोई सदस्य नहीं । इस तरह कांग्रेस के पास यूपी में एक सांसद और दो विधायक है।

 दूसरी तरफ सपा से भी विधानपरिषद में नेता विपध का पद खो सकता है। नेता प्रतिपक्ष के लिए सदन में दस सीटें जरूरी है। यानी सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी के पास भी दस प्रतिशत सीट होना जरूरी है। सपा के पास अब केवल 9 सीटें बची है। इस समय सपा के लाल बिहारी यादव नेता प्रतिपक्ष हैं। पांच सदस्य पुराने हैं जबकि चार नए जीत कर आए हैं। लोकसभा की नियमावली में स्पष्ट है कि नेता प्रतिपक्ष में दस प्रतिशत सीट जरूरी है।

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