Jagannath Rath Yatra : ओडिशा के पुरी में भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा शुरू हो गई है। सबसे आगे भगवान बलभद्र का रथ तालध्वज है। उनके पीछे देवी सुभद्रा का रथ दर्पदलन चल रहा है। आखिर में भगवान जगन्नाथ का रथ है, जिसे नंदीघोष या गरुड़ध्वज के नाम से जाना जाता है । करीब 25 लाख लोगों के शामिल होने की संभावना है।
भगवान का श्रंगार किया गया। पुरी पीठ के शंकराचार्य श्री निश्चलानंद सरस्वती रथयात्रा का पहला दर्शन करने पहुंचे। पुरी राजपरिवार के दिव्यसिंह देव रथ की पूजा और आरती की, फिर सोने की झाड़ू से बुहारा लगाया। आज सुबह मंगला आरती हुई, प्रभु जगन्नाथ को खिचड़ी का भोग लगाया गया। फिर रथों की पूजा हुई। रथ में पहले बलभद्र, फिर बहन सुभद्रा और इसके बाद भगवान जगन्नाथ को बैठाया गया।
Jagannath Rath Yatra :
यह रथ यात्रा मंदिर से तकरीबन ढाई से तीन किमी दूर गुंडिचा मंदिर तक जाती है, जो कि उनकी मौसी का घर माना जाता है। रथ यात्रा में तकरीबन 25 लाख लोगों के शामिल होने की संभावना है। इसे गुंडिचा यात्रा भी कहते हैं।
बता दें कि भगवान जगन्नाथ को श्रीकृष्ण का अवतार माना गया है। पुरी स्थित जगन्नाथ मंदिर भारत के पवित्र धामों में से एक है। पुरी की जगन्नाथ यात्रा पूरे विश्व में प्रसिद्ध है। हर साल आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की द्वितीय तिथि से इस रथ यात्रा की शुरुआत होती है। इस दौरान भगवान जगन्नाथ के अलावा उनके बड़े भाई बलराम और बहन सुभद्रा रथ पर सवार होकर जनता का हाल जानने निकलते हैं। यह यात्रा पूरे भारत में एक पर्व की तरह मनाया जाता है।
Jagannath Rath Yatra : यह यात्रा हर साल जगन्नाथ मंदिर के मुख्य द्वार से शुरू होती है और पूरी नगर में तीन महीने तक चलती है। भक्ति और धार्मिक महत्व की दृष्टि से यह यात्रा बहुत महत्वपूर्ण मानी जाती है। इसमें लाखों भक्तों शामिल होते हैं। माना जाता है कि जो लोग भी सच्चे भाव से इस यात्रा में शमिल होते हैं, उनकी सारी मनोकामनाएं पूरी होती है। इस यात्रा के दर्शन मात्र से ही व्यक्ति के सारे कष्ट दूर हो जाते हैं और उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है। जगन्नाथजी की रथयात्रा में शामिल होने का पुण्य सौ यज्ञों के बराबर माना जाता है।