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(पल्लवी घोष)
नई दिल्ली: चंडीगढ़ में हुए निकाय चुनावों (चंडीगढ़ सिविक पोल) में आम आदमी पार्टी (AAP) की प्रचंड जीत हुई. पंजाब कांग्रेस (पंजाब कांग्रेस) की इन चुनावों पर पैनी नजर रही. कांग्रेस के लिए यह चुनावी परिणाम मिश्रित रहे लेकिन इसमें पार्टी को एक संभावित चेतावनी का संकेत मिला है. बीजेपी (BJP) की करारी हार से कांग्रेस को राहत जरूर मिली है हालांकि आम आदमी पार्टी का बेहतर प्रदर्शन एक चुनौती के तौर पर सामने आया है. यह पहली बार है जब दिल्ली के बाहर अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) की पार्टी को इस तरह की बड़ी जीत मिली है. इसलिए पंजाब विधानसभा चुनावों को लेकर कांग्रेस की मुश्किलें बढ़ गई हैं क्योंकि मतदाताओं को राज्य में आम आदमी पार्टी के तौर पर एक और वैकल्पिक राजनीतिक दल मिल गया है.
कांग्रेस के आंतरिक सर्वे के अनुसार, चुनाव में जीत के लिए सिख वोट के साथ-साथ शहरी और हिन्दू वोट भी बहुत महत्वपूर्ण होंगे. पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह, जिन्होंने चुनावी गठबंधन करते हुए बीजेपी के साथ हाथ मिलाया है, इससे उम्मीद है कि यह राजनीतिक गठबंधन शहरी हिन्दू मतदाताओं के वोट प्राप्त करेगा (पंजाब में हिन्दुओं की आबादी करीब 38 फीसदी है). 2017 के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस को जिन 77 सीटों पर जीत मिली थी, उनमें से 29 सीटों पर शहरी और हिन्दू मतदाताओं का सबसे ज्यादा प्रभाव था.
2021 के निकाय चुनावों में कांग्रेस ने बेहतर प्रदर्शन किया था. यह चुनाव किसान आंदोलन को लेकर जारी गतिरोध के बीच संपन्न हुआ था. इसलिए अब कैप्टन अमरिंदर सिंह को उम्मीद है कि इन मतदाताओं के वोट वे कांग्रेस से छीन लेंगे.
युवा और शहरी मतदाताओं को लुभाने की कोशिश में कांग्रेस
चंडीगढ़ निकाय चुनावों के नतीजे कांग्रेस कैडर का मनोबल को गिराने वाले साबित हुए हैं. क्योंकि इससे आम आदमी पार्टी को पंजाब में एक मजबूत दावेदार के तौर पर उभरने का मौका मिलेगा. चिंता इस बात की है कि शहरी मतदाताओं का वोट आम आदमी पार्टी और कैप्टन-बीजेपी गठबंधन की ओर जा सकता है. इसलिए कांग्रेस पिछले कुछ सप्ताह से शहरी मतदाताओं का विश्वास जीतने के लिए प्रयास कर रही है. लोकप्रिय पंजाबी गायक सिद्धू मूसे वाला को पार्टी में शामिल करना और एक्टर सोनू सूद व हरभजन सिंह के जरिए युवा और शहरी मतदाताओं तक पहुंचना, इन्हें कांग्रेस की कोशिशों के तौर पर देखा जा सकता है.
दरअसल कांग्रेस द्वारा नवजोत सिंह सिद्धू को चुनने का कारण भी यही है कि युवाओं में उनकी लोकप्रियता से पार्टी को फायदा होगा. इसमें कोई हैरानी नहीं होगी कि सिद्धू ने अपना ज्यादातर समय यूनिवर्सिटी और कॉलेज में पंजाब के युवा मतदाताओं को लुभाने के लिए बिताया.
चुनाव बाद कांग्रेस-AAP कर सकती है गठबंधन?
हालांकि इन सबके बीच यह सवाल भी सामने आता है कि, खंडित जनादेश या बहुमत नहीं मिलने की स्थिति में क्या कांग्रेस और आम आदमी पार्टी गठबंधन कर सकते हैं. हालांकि इस बारे में दोनों दलों की ना है लेकिन राजनीति में सब संभव है. 2018 में दिल्ली में हुए चुनावों में आम आदमी पार्टी और कांग्रेस आमने-सामने थी, लेकिन बीजेपी को सत्ता से दूर रखने के लिए कांग्रेस ने बाहर से अरविंद केजरीवाल का समर्थन किया था. पंजाब में कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के बीच गठबंधन इसलिए भी संभव हो सकता है क्योंकि दूसरी ओर कैप्टन अमरिंदर सिंह और बीजेपी एक साथ आ चुके हैं.
कांग्रेस से जुड़े सूत्रों का कहना है कि चंडीगढ़ निकाय चुनावों में पार्टी के प्रदर्शन निराशा हुई है लेकिन चंडीगढ़ और पंजाब के मतों में अंतर है इसलिए चुनावी समीकरणों के लिहाज से पंजाब, चंडीगढ़ से बिल्कुल अलग है. कांग्रेस का यह भी कहना है कि आम आदमी पार्टी की जीत से उसे ज्यादा चिंता करने की जरुरत नहीं है लेकिन फिर भी वह कोई रिस्क नहीं लेना चाहती है. इसलिए कांग्रेस सूत्रों का कहना है कि वह आने वाले दिनों में शहरी मतदाताओं को लुभाने की योजना बना रही है. कांग्रेस के कई युवा नेता जैसे राहुल गांधी, सचिन पायलट, और प्रियंका गांधी युवा वोटर्स को आकर्षित करने के लिए कैंपेन करेंगे. हालांकि पंजाब विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को ना सिर्फ आम आदमी पार्टी से चुनौती मिलेगी बल्कि कैप्टन अमरिंदर और बीजेपी गठबंधन भी कांग्रेस के लिए परेशानी का कारण बन सकता है. इसके साथ ही शहरी मतदाताओं को लुभाने की कोशिशों की शुरुआत हो गई है.
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