महिलाएं आज पुरुषों से कम नहीं हैं। महिलाएं हर क्षेत्र में पुरुषों से आगे निकल रही हैं। कभी महिलाओं को निर्णय लेने तक का अधिकार भी नहीं था और उन्हें निर्णय लेने के लिए पुरुष की अनुमति लेनी पड़ती थी। वहीं आज महिलाएं इतनी सक्षम हैं कि अपनी सफलता का डंका बजा रही है। उत्तराखंड पुलिस की एसडीआरएफ महिला आरक्षी प्रीति मल्ल ने भी अपनी सफलता से उत्तराखंड के साथ-साथ देश का नाम भी रोशन कर दिया है।
उत्तराखंड में अक्सर आने वाली आपदाओं को देखते हुए उत्तराखंड पुलिस ने एक टुकड़ी एसडीआरएफ की स्थापना की थी। यह न केवल देवदूत बनकर लोगों की जान बचा रही है, बल्कि अब कई साहसिक कार्यों से नाम रोशन कर रही है। एसडीआरएफ महिला आरक्षी प्रीति मल्ल ने 8 मार्च ‘अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस’ के मौके पर साउथ अफ्रीका की सबसे ऊंची चोटी माउंट क्लीमेंजारो को फतह कर लिया है।
यह पहली बार है जब उत्तराखंड पुलिस की किसी महिला द्वारा साउथ अफ्रीका की सबसे ऊंची चोटी पर तिरंगा व SDRF उत्तराखंड पुलिस का ध्वज लहराकर देश व राज्य पुलिस का नाम रोशन किया गया है। प्रीति मल्ल वर्ष 2016 से उत्तराखंड पुलिस में महिला आरक्षी के पद पर नियुक्त है और वर्तमान समय मे विगत चार वर्षों से SDRF में सेवा प्रदान कर रही हैं। सामान्य कदकाठी की प्रीति SDRF में अपने मृदु स्वभाव और निर्भीकता के लिए जानी जाती है। अपने निर्भीक स्वभाव के कारण ही वह SDRF वाहिनी से गठित हुए ”डेयर डेविल हिमरक्षक दस्ता” का भी प्रमुख हिस्सा रही हैं, जहाँ उन्होंने बाइक पर हैरतअंगेज़ करतब दिखा हर किसी को दांतों तले उंगली दबाने को मजबूर कर दिया था।
हर मोर्चे पर किया खुद को साबित
प्रीति, सविगत वर्ष माह सितबंर में SDRF द्वारा आयोजित माउंट गंगोत्री एक्सपीडिशन का हिस्सा रही और उन्होंने अपनी हिस्सेदारी को बखूबी साबित भी किया। माउंट गंगोत्री पर्वत शिखर का आरोहण करने वाले 11 सदस्यों में एकमात्र महिला प्रीति मल्ल रही और उससे भी अधिक यह कि वह उत्तराखंड पुलिस की प्रथम महिला आरक्षी बनी जिन्होंने माउंट गंगोत्री पर सकुशल SDRF उत्तराखंड पुलिस का झंडा लहराया।
प्रीति ने यह साबित कर दिखाया कि वह किसी भी मायने में किसी से कम नही है, यह उसके दृढ़ निश्चय का ही परिणाम था कि हर चुनौती का सामना करते हुए वह आगे बढ़ती रही। उच्च तुंगता क्षेत्र में जहाँ परिस्थितयां कभी भी विपरीत हो सकती है, चारों तरफ बर्फ के सिवा कुछ नही दिखाई देता, वहां प्रीति की दृष्टि सिर्फ अपने लक्ष्य की ओर बनी हुई थी, वह किसी भी परिस्थिति में अपने लक्ष्य तक पहुँचना चाहती थी ताकि वो उस विश्वास पर खरी उतर सके जो उस पर किया गया था। इससे पूर्व भी इनके द्वारा DKD-2 का आरोहण किया जा चुका है।