Udham Singh Birth Anniversary: कहानी उस क्रांतिकारी की जिसने 21 साल बाद लिया था जलियांवाला बाग हत्याकांड का बदला

आज महान सेनानी एवं क्रान्तिकारी शहीद सरदार उधम सिंह की जयंती है। वह भारतीय इतिहास में एक ऐसा नाम है, जिसे जलियावाला बाग नरसंहार का बदला लेने के लिए याद किया जाता है। उनका बचपन अनाथालय में बीता लेकिन दिल में आजादी की ऐसी धधकती ज्वाला, जिसने दुश्मन को उसी के घर में घुसकर मारा। आज भी उनके बलिदान की गौरवगाथा हर देशवासी को प्रेरित करती रहती है। तो चलिए जानते है अमर शहीद उधम सिंह की इस वीरगाथा के सफर में…….

 

कौन थे उधम सिंह?

सरदार उधम सिंह का जन्म 26 दिसंबर 1899 पंजाब के संगरूर जिले के सुनाम गांव में हुआ था। उनके पिता सरदार तेहाल सिंह जम्मू उपल्ली गांव में रेलवे चौकीदार थे। उधम सिंह का असली नाम शेर सिंह था। उनका एक भाई भी था, इसका नाम मुख्ता सिंह था। सात साल की उम्र में उधम अनाथ हो गए थे। पहले उनकी मां चल बसीं और फिर उसके 6 साल बाद पिता ने भी दुनिया को अलविदा कह दिया था। मां-बाप के मरने के बाद उधम और उनके भाई को अमृतसर के सेंट्रल खालसा अनाथालय में भेज दिया गया था।

 

अनाथालय में गुजरा ज्यादातर जीवन

अनाथालय में लोगों ने दोनों भाइयों को नया नाम दिया। शेर सिंह बन गए उधम सिंह और मुख्ता सिंह बन गए साधु सिंह। सरदार उधम सिंह ने भारतीय समाज की एकता के लिए अपना नाम बदलकर राम मोहम्मद सिंह आजाद रख लिया था, जो भारत के तीन प्रमुख धर्मों का प्रतीक है। साल 1917 में उधम के भाई साधु की भी मौत हो गई। 1918 में उधम ने मैट्रिक के एग्जाम पास किए। साल 1919 में उन्होंने अनाथालय छोड़ दिया।

 

जलियांवाला बाग नरसंहार के प्रत्यक्षदर्शी

उधम सिंह के सामने ही जलियांवाला बाग नरसंहार हुआ था। वे इस नरसंहार के प्रत्यक्षदर्शी थे। बता दें कि 3 अप्रैल 1919 को जब जनरल डायर ने अमृतसर के जलियांवाला बाग में जमा बेकसूर लोगों पर गोलियां बरसाईं और लाशों के ढेर लगा दिए तो 19 साल का किशोर उधम सिंह भी लाशों के बीच घायल पड़ा था। यहीं पर उन्होंने जलियांवाला बाग की मिट्टी हाथ में लेकर जनरल डायर और पंजाब के गवर्नर माइकल ओ डायर को सबक सिखाने की प्रतिज्ञा ले ली, जिसके बाद वह क्रांतिकारी बन गए।

 

बदला लेने के लिए 21 साल तक किया इंतजार

उधम सिंह के लंदन पहुंचने से पहले जनरल डायर 1927 में बीमारी के चलते मर गया था।  पर वे माइकल ओ डायर को मारने का मौका ढूंढते रहे। इसके लिए उन्होंने अपना नाम शेर सिंह से बदलकर उधम सिंह कर लिया। इसके बाद वो 1934 में किसी तरह से लंदन पहुंचे और वहां 9  एल्डर स्ट्रीट कमर्शियल रोड पर रहने लगे। वहां उन्होंने एक कार खरीदी और साथ में अपना मिशन पूरा करने के लिए छह गोलियों वाली एक रिवॉल्वर भी। फिर वे माइकल ओ डायर को ठिकाने लगाने के लिए सही वक्त का इंतजार करने लगे।

 

लंदन में लिया जनरल डायर से बदला

जनरल डायर से बदला लेने के लिए सरदार उधम सिंह को करीब 21 साल का इंतजार करना पड़ा। उधम सिंह ने जनरल डायर की हत्या 13 मार्च 1940 को गोली मारकर की थी। बता दें उन्होंने जब जनरल डायर पर गोलियां चलाईं थी तो उस समय लंदन के हाल में बैठक चल रही थी। इस बैठक में वो किताब के अंदर बंदूक छिपाकर पहुंचे थे। इस तरह उधम सिंह ने अपनी प्रतिज्ञा पूरी कर दुनिया को संदेश दिया कि अत्याचारियों को भारतीय वीर कभी बख्शा नहीं करते।

 

31 जुलाई 1940 को पेंटनविले जेल में दी गई फांसी

बता दें कि उधम सिंह ने जनरल डायर को गोली मारने के बाद वहां से भागने की कोशिश नहीं की और अपनी गिरफ्तारी दे दी। उन पर मुकदमा चला। जिसके बाद 31 जुलाई 1940 को उन्हें पेंटनविले जेल में फांसी दे दी गई। कहा जाता है कि फांसी के वक्त भी वो मुस्कुरा रहे थे। इस तरह यह क्रांतिकारी भारतीय स्वाधीनता संग्राम के इतिहास में अमर हो गया। 1974 में ब्रिटेन ने उनके अवशेष भारत को सौंप दिए, लेकिन उनका कुछ सामान आज भी अंग्रेजों के पास ही है।

 

उधम सिंह के नाम पर पड़ा जिला उधम सिंह नगर का नाम

उधम सिंह शहीद भगत सिंह को अपना ‘गुरु’ मानते थे। इस बहादुरी के बाद वह भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के अमर क्रांतिकारी बन गए और उन्हें शहीद-ए-आज़म सरदार उधम सिंह कहा गया। बता दें कि भारतीय राज्य उत्तराखंड का उधम सिंह नगर जिले का नाम इसही क्रांतिकारी स्वतंत्रता सेनानी के नाम पर पड़ा है।

 

उधम सिंह के जीवन पर बनी बॉलीवुड फिल्म

सरदार उधम सिंह की जीवनी पर साल 2021 की सबसे चर्चित फिल्म बनी- ‘सरदार उधम। फिल्म में उधम सिंह के लंदन जाकर जलियांवाला बाग हत्याकांड का बदला लेने की कहानी को दिखाया गया। इसमें विक्की कौशल, अमोल पाराशर, बनिता संधू और अन्य ने अभिनय किया। इस फिल्म को दर्शकों का बहुत प्यार मिला

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