फुलेरा दूज है विवाह के सर्वश्रेष्ठ दिन, मिलता है राधा-कृष्ण का आशिर्वाद

फाल्गुन मास की शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को फुलेरा दूज का पर्व मनाया जाता है। जो कि इस वर्ष 4 मार्च, शुक्रवार को मनाया जा रहा है। फुलेरा दूज का पर्व भगवान श्रीकृष्ण को समर्पित है। मान्यता है कि भगवान इस दिन फूलों से खेलते हैं। इसीलिए इसे फुलेरा दूज कहा जाता है। फुलेरा दूज होली के त्यौहार से जुड़ा एक अनुष्ठान रुपी पर्व है। इस दिन से होली के पर्व का आरम्भ हो जाता है और यह पर्व मध्य, उत्तर और पश्चिम भारत में मुख्य रूप से मनाया जाता है।
फुलेरा दूज का दिन होली के आगमन का प्रतीक माना जाता है। इस दिन से होली के पर्व की तैयारियां आरंभ हो जाती हैं. इस दिन से उत्तर भारत के गांवों में जिस स्थान पर होली रखी जाती है वहां पर प्रतीकात्मक रूप में उपले या फिर लकड़ी रख दी जाती हैं। कई जगहों पर इस दिन को उत्सव की तरह मनाया जाता है। इस दिन से लोग होली में चढ़ाने के लिए गोबर की गुलरियां भी बनाई जाती हैं। गुलरियां गोबर से बनाई जाती हैं। इन्हें बनाने का काम फुलेरा दूज से ही शुरू कर दिया जाता है। इसमें महिलाएं गोबर के छोटे-छोटे गोले बनाकर उसमें उंगली से बीच में सुराख बना देती हैं। सूख जाने के बाद इन गुलरियों की पांच सात मालाएं बना ली जाती हैं और होलिका दहन के दिन इन गुलरियों को होली की अग्नि में चढ़ा दिया जाता है।
विवाह के लिए श्रेष्ठ दिन
शास्त्रों के अनुसार, पूरे साल में फुलेरा दूज एक ऐसा दिन है जिस दिन विवाह करना सर्वोत्तम माना जाता है। इसे सर्दी के मौसम के बाद विवाह का अंतिम अबूझ मुहूर्त व शुभ दिन मानते हैं। इस दिन शादियों की धूम रहती है। मान्यता है कि इस दिन विवाह करने से दंपति को भगवान श्रीकृष्ण और राधा रानी का आशीर्वाद मिलता है। इस दिन वृंदावन और मथुरा में भगवान श्रीकृष्ण के मंदिरों में विशेष अनुष्ठानों का आयोजन किया जाता है। उत्तर भारत के कुछ हिस्सों में, ऐसा माना जाता है कि फुलेरा दूज का यह पूरा दिन ही शुभ है और इसलिए ज्योतिषी और पंडितों से पूजा के लिए शुभ समय पता करने की आवश्यकता नहीं पड़ती है।
कैसे मनाते हैं फुलेरा दूज
इस दिन सबसे महत्वपूर्ण अनुष्ठान जो किया जाता है वह भगवान कृष्ण के साथ रंग-बिरंगे फूलों से होली खेलने का होता है। ब्रज क्षेत्र में इस विशेष दिन पर देवता के सम्मान में भव्य उत्सव होते हैं। मंदिरों को फूलों और रोशनी से सजाया जाता है और भगवान कृष्ण की मूर्ति को एक सजाये गए और रंगीन मंडप में रखा जाता है। रंगीन कपड़े का एक छोटा टुकड़ा भगवान कृष्ण की मूर्ति की कमर पर लगाया जाता है, जिसका प्रतीक है कि वह होली खेलने के लिए तैयार हैं।
पोहा का लगता है विशेष भोग
फुलेरा दूज के दिन भगवान श्रीकृष्ण के लिए विशेष भोग तैयार किया जाता है, जिसमें पोहा और अन्य विशेष व्यजंन शामिल हैं। भोजन पहले देवता को अर्पित किया जाता है और फिर प्रसाद के रूप में सभी भक्तों में वितरित किया जाता है। इस दिन किए जाने वाले दो प्राथमिक अनुष्ठान समाज में रसिया और संध्या आरती है।
फुलेरा दूज को लेकर धार्मिक मान्यता
पौराणिक कथा के अनुसार व्यस्तता के चलते कृष्ण कई दिनों से राधा से मिलने वृंदावन नहीं आ रहे थे. राधा के दुखी होने पर उनके सहेलियां भी कृष्ण से रूठ गई थीं। राधा के उदास रहने के कारण मथुरा के वन सूखने लगे और पुष्प मुरझा गए। वनों की स्थिति देखकर कृष्ण को कारण पता चल गया और वह राधा से मिलने वृंदावन पहुंच गए। श्रीकृष्ण के आने से राधा खुश हो गईं और चारों ओर फिर से हरियाली छा गई। कृष्ण ने एक खिल रहे पुष्प को तोड़ लिया और राधा को छेड़ने के लिए उनपर फेंक दिया। राधा ने भी ऐसा ही किया. यह देख वहां मौजूद ग्वाले और गोपिकाएं भी एक दूसरे पर फूल बरसाने लगीं। तब से आज भी प्रतिवर्ष मथुरा में फूलों की होली खेली जाती है।

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