NavIC: ISRO ने एक बार फिर रचा इतिहास, नेविगेशन सैटेलाइट NVS-01 की सफल लॉन्चिंग

NavIC: श्रीहरिकोटा। इसरो (Indian Space Research Organisation) ने सोमवार सुबह 10 बजकर 42 मिनट पर अपने अगली पीढ़ी के नेविगेशन सैटेलाइट NVS-1 की सफल लॉन्चिंग की। इसे जियोसिंक्रोनस लॉन्च व्हीकल यानी GSLV-F12 से अंतरिक्ष में भेजा गया। इसी के साथ ही इसरो ने अंतरिक्ष के क्षेत्र में एक और छलांग लगाई है।

इसरो ने 7 सैटेलाइट का रीजनल नेविगेशन सैटेलाइट सिस्टम बनाया है जिसका नाम NavIC(Navigation with Indian Constellation) है। 2232 किलोग्राम वजन वाला यह उपग्रह इन (NavIC ) 5 सेकेंड जनरेशन सैटेलाइट्स का हिस्सा है जिसे आने वाले दिनों लॉन्च किया जाएगा। इसका उद्देश्य निगरानी और नेविगेशन क्षमता प्रदान करना है। NavIC को 2006 में अप्रूवल मिला, इसके 2011 के पूरा होने की उम्मीद थी , लेकिन ये 2018 में ऑपरेशनल हो पाया।

NavIC:

इस उपग्रह की मदद से GPS सेक्टर में क्रांति आएगी। इसके साथ ही सेनाओं की ताकत में इजाफा होगा। NVS-1 को GSLV F12 रॉकेट से अंतरिक्ष में पहुंचाया जा रहा है। इस रॉकेट को श्रीहरिकोटा(Sriharikota) के सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र के दूसरे लॉन्च पैड से लॉन्च किया गया। रॉकेट के लॉन्च होने के करीब 20 मिनट बाद उपग्रह को अंतरिक्ष में उसकी कक्षा में स्थापित गया। उपग्रह में स्वदेशी रूप से विकसित रूबिडियम परमाणु घड़ी भी लगाया गया है। इसका इस्तेमाल सटीक समय जानने के लिए होगा।

NavIC:

NavIC द्वारा दो तरह की सेवाएं दी जा रहीं हैं। इससे सिविल यूजर्स को स्टैंडर्ड पोजीशन सर्विस दी जाती है। इसके साथ ही सेना जैसे स्ट्रेटेजिक यूजर के लिए भी सेवाएं दी जाती हैं। भारत इस तरह की क्षमता वाला दुनिया का तीसरा देश है।

NavIC की खासियत क्या है?

NavIC: देश में सिविल एविएशन सेक्टर की बढ़ती आवश्यकताओं को देखते हुए ये सिस्टम डेवलप किया गया है। ये नेटवर्क भारत और उसकी सीमा से 1500 किमी तक के क्षेत्र को कवर करता है। इसका इस्तेमाल टेरेस्टियल, एरियल और मरीन ट्रांसपोर्टेशन, लोकेशन बेस्ड सर्विसेज, पर्सनल मोबिलिटी, रिसोर्स मॉनिटरिंग और साइंटिफिक रिसर्च के लिए किया जाता है।
नाविक की पोजीशन एक्यूरेसी सामान्य यूजर्स के लिए 5-20 मीटर और सैन्य उपयोग के लिए 0.5 मीटर है। इसकी मदद से एनिमी टारगेट पर ज्यादा एक्यूरेसी से अटैक किया जा सकता है। वहीं ये एयरक्राफ्ट और शिप के साथ रोड पर चलने वाले यात्रियों की मदद करता है। गूगल की तरह विजुअल और वॉइस नेविगेशन फीचर भी इसमें मिलते हैं।

करगिल वॉर से जुड़ा है कनेक्शन

1999 में करगिल की लड़ाई के दौरान भारत के पास अपना नेविगेशन सिस्टम नहीं था। भारत सरकार ने पाकिस्तानी घुसपैठ करने वाले सैनिकों की पोजीशन जानने के लिए अमेरिका से मदद मांगी थी। तब अमेरिका ने नेविगेशन सैटेलाइट की जानकारी देने से इनकार कर दिया था। इसके बाद भारत ने अपना नेविगेशन सिस्टम विकसित करने में जुट गया था। इसके लिए उपग्रहों को अंतरिक्ष में भेजा गया।

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