Air Defence: देश की वायु सीमा की सुरक्षा में वायु सुरक्षा प्रणालियां अहम भूमिका निभाती है, यह प्रणालियां रडार और नियंत्रण केन्द्रों के नेटवर्क के जरिये खतरों का पता लगाती हैं और उनपर नजर रखती हैं। इसके बाद तोपखाने और लड़ाकू विमान और जमीन पर तैनात मिसाइलों का इस्तेमाल कर उन्हें बेअसर करती हैं।
राष्ट्रीय वायु क्षेत्र की सुरक्षा के लिए खतरों का पता लगाने और उनपर नजर रखने के लिए सी3 फॉर्मुले का इस्तेमाल होता है। ये हैं- कमांड, कंट्रोल और कम्यूनिकेशन।
रक्षा विशेषज्ञ मनोज जोशी ने कहा कि “वायु सुरक्षा प्रणालियां लगातार काम करती हैं। वे हर वक्त सभी विमानों पर नजर रखती हैं। युद्ध के समय उनकी प्राथमिकता बढ़ जाती है। युद्ध के समय अमूमन सिविल विमान नहीं उड़ते हैं। लिहाजा अगर दुश्मन का कोई विमान आपकी ओर आता है तो प्रणालियां उनकी पहचान कर लेती हैं। कभी-कभी ये प्रणालियां खुद काम करती हैं। जैसे एस-400 प्रणाली में तीन या चार किस्म के मिसाइल होते हैं। लंबी दूरी के, मध्यम दूरी के और कम दूरी के। लक्ष्य के मुताबिक प्रणाली उन मिसाइलों को दागती है। प्रणालियां ये खुद तय कर लेती हैं। फिर, जैसा मैंने कहा, आर्टिलरी होती है, जिसका इस्तेमाल सेना करती है। ड्रोन जैसे खतरों को निशाना बनाने के लिए अमूमन एल-70 बंदूकों का इस्तेमाल होता है।”
जैसे ही खतरों का पता चलता है, उन्हें रोकने की प्रक्रिया शुरू हो जाती है। लड़ाकू विमान दुश्मन के विमानों को घेरते हैं, जबकि सतह से हवा में मार करने वाले मिसाइल या सैम उन्हें निशाना बनाते हैं। इसके लिए भारत में एस-400 और आकाश प्रणालियां हैं। विमान भेदी बंदूकें कम ऊंचाई के उड़ानों को निशाना बनाती हैं। साथ ही इलेक्ट्रॉनिक युद्ध प्रणालियां दुश्मन का संचार तंत्र बंद कर देती हैं। ऐसा हवाई क्षेत्र में किसी भी घुसपैठ को रोकने के लिए किया जाता है।
रक्षा विशेषज्ञ डॉ. एस. बी. अस्थाना ने बताया कि “आपके पास काफी कुछ है। आपके पास उपग्रह हैं, आपके पास अलग-अलग क्षमताओं के रडार हैं। और आपके पास अवैक्स विमान हैं, जो उड़ते हुए चेतावनी संकेत देते हैं। सब कुछ एक सिस्टम में एकीकृत किया जाता है। जैसे ही रडार सिग्नल पकड़ता है, आपके पास उसके लिए डिजाइन किए गए उपयुक्त हथियार होते हैं। ये उस खास लक्ष्य या घुसपैठिए पर लॉक हो सकते हैं और उसे मार गिराया जा सकता है। संक्षेप में ये वो कार्यप्रणाली है जिससे वायु रक्षा होती है।”
भारत ने अत्याधुनिक वायु रक्षा प्रणाली विकसित की है, यह स्वदेशी और आयातित दोनों तरह के मिसाइलों का इस्तेमाल कर सकती है। रक्षा विशेषज्ञ मनोज जोशी ने कहा कि “वायु रक्षा प्रणाली में सेंसर होता है, जो अलग तरह का रडार है। ये दुश्मन के विमान, मिसाइल या ड्रोन का पता लगाता है। फिर ये मिसाइल सिस्टम को संकेत देता है। ये काउंटर सिस्टम होता है, जिसमें अलग-अलग आकार की मिसाइलें हैं। कुछ मिसाइलें लंबी दूरी की और कुछ छोटी दूरी की होती हैं। मिसाइलों के अलावा हवा में दागने के लिए आर्टिलरी गन होते हैं। इन दोनों को मिलाकर वायु रक्षा प्रणाली बनती है। जब कोई दुश्मन विमान आपके क्षेत्र में आ रहा होता है, तो रडार उसका पता लगा लेता है और मिसाइल सिस्टम को संकेत देता है। फिर उसे फायर करने का आदेश दिया जाता है।”
जैसे-जैसे हवाई खतरे बढ़ रहे हैं और ज्यादा मारक हो रहे हैं, भारत की वायु रक्षा प्रणाली उनका मुकाबला करने के लिए खुद को ढाल रही है और वायु सीमा सुरक्षित करने में अहम भूमिका निभा रही है।