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छत्तीसगढ़ के राजधानी रायपुर ला चकाचक देखके ओ एनसीसी के अधिकारी मन अकचकागे. अउ केहे लगिन ‘अतेक सुंदर हे रायपुर. ये अधिकारी मन के पहिली बार छत्तीसगढ़ आना होय रिहिसे. एक झन पंजाब ले आय रिहिसे अउ दूसर हिमाचल परदेश ले. जेन मेर उतरे रिहिन हे तिहां ले सड़क पकड़े बर ओमन ला एक किलोमीटर के फासला तय करना परिस. अतके बेर अस्पताल ले एक झन युवक आवत रिहिसे कार ले, तौंन हा नाश्ता करे खातिर ठेला ला देखके रुकगे. नाश्ता करत रिहिसे तेन मेर एनसीसी के दूनो अधिकारी मन आगे अउ ओला पूछथे- ऑटो कोन करा मिल सकत हे?
नाश्ता करत रिहिसे तौंन युवक ओ अफसर मन ला पूछथे- तुमन ला जाना कहां हे सर? अफसर मन अपन परिचय बतावत कहिथे- एक ला महासमुंद अउ दूसर ला गरियाबंद जाना हे. उहां एनसीसी कैम्प लगे हे तिहां के प्रशिक्षार्थी मन के ट्रेनिंग होवत हे. ओकर मन के ‘इंटरव्यू लेये बर जाना हे. ए तीर कोनो ऑटो मिल जतिस ते स्टेशन मेर जाके बस पकड़े मं सुविधा होतिस.
अच्छा बस पकड़े बर ऑटो चाही, नाश्ता करत राहय तौंन युवक हा ओ अधिकारी मन ला किहिस. तब ओमन किहिन- हां.
बस अतके अकन बात हे सर, तब लव चलव मंही हर आप मन ला घड़ी चौक मेर छोड़ देथौं, मोर कार मं. ओतिर कतको बस आवत-जात रहिथे, कोनो न कोनो बस अवस करके मिल जाही. अतका काहत अपन करत राहय नाश्ता तउन ला अधूरा छोड़ दीस अउ ठेला वाले ला पइसा चुका के ओमन ला कार मं बइठे ला कहिथे. एकर पहिली अधिकारी मन कहिथे- अरे भइया, नाश्ता ला अधूरा काबर छोड़ देस, खा लेना पूरा. बस तो मिल जाबे करही. युवक हा कहिथे- नहीं साहेब- आप मन ला जाना जादा जरूरी हे, नाश्ता के काहे, घर मं जाके अउ कर लेहूं.
युवक के उदार हिरदय ला देखके एनसीसी के ओ अधिकारी मन हक्का-बक्का रहिगे, अउ कहिथे- वाह रे छत्तीसगढ़, अउ धन्य हे ये छत्तीसगढि़हा. ओ आधिकारी मन ला कार मं बइठार के घड़ी चउक करा उतार दीस. बड़े फजर के समे रहिस. जादा चहल-पहल नइ होवत राहय, फेर बिहनिया ले शहर ले बाहिर जउन मन डिप्टी करे ले निकलथे तेकर मन के आना-जाना शुरू होगे रिहिस. बस, कार, टैक्सी, मोटर साइकिल सांय-सांय करत सपाटा मारत सड़क मा दउंड़त राहय. चाय ठेला अउ होटल वाले मन के घला धंधा-पानी के बेरा होगे राहय.
पहिली बार छत्तीसगढ़ के धरती मं कदम रखे एनसीसी के अधिकारी मन जब कार ले उतरिन तब ओ युवक हा बताइस- सर इही मेर बस मिल जही, स्टेशन जाय के जरूरत नइ परय. तभो ले बस के पकड़त ले ओहर उही मेर ठाढ़े रिहिस. ये युवक के भलमनसाहस ला देखके ओ अधिकारी मन कुछ रुपिया एला देय के कोशिश करिस अउ किहिस- हमन ला गाइड करे, इहां तक अपन कार मं लाके छोड़े तेकर सेती तोला ये देवत हन. युवक कहिथे- साहेब ये तो मोर फर्ज रिहिसे. अनजाने ला राह बताना, उहां तक पहुंचा देना. सेवा तो छत्तीसगढिय़ा मन के धरम हे, करम हे. ओला निभायेन, ओकर पगार ले लेबो तब सेवा कहां रहि जाही.
ये युवक के भोलापन अउ उदार हिरदय ला देखके अधिकारी मन के दिल रोमांचित होगे, अउ किहिन- वाह रे छत्तीसगढ़, तैं तो देवभूमि ले बढ़के हस, इहां के मनखे लगथे देवता मन ले घला बढ़के हे. तभे तो सब लोगन कहिथे अउ देशभर मं ये नारा गूंजत हे- ‘छत्तीसगढिय़ा-सबले बढिय़ा. युवक हा अपन कान से ओ अफसर मन के मुंह ले छत्तीसगढ़ के महिमा सुनिस. ओमन काहत रिहिन हे- कतेक सुंदर, शांत, सरल, उदार, निच्छल हे इहां के बासी (रहइया), छत्तीसगढ़ जइसन इलाका अभी तक कोनो मेर देखेले नइ मिले हे. कोन अइसे मनखे होही जउन बाहिर ले आए अनजान मनखे ला, नाश्ता करत ला छोड़के अपन कार मं बइठार के बिन पइसा के इहां तक पहुंचाही. ओमन कहिथे- सुने तो रेहेन- छत्तीसगढिय़ा मन भोला-भाला होथे, निष्कपट अउ सरल भाव-हिरदय के होथे. आज आंखी मं ओ सब साक्षात देखे बर मिलगे. ओ युवक के मुस्कुरावत चेहरा अउ नम्रता भरे हिरदय ला देखके ओ अफसर मन के सिर झुकगे. अउ छत्तीसगढ़ ला बधाई देवत कहिथे- ‘वाह छत्तीसगढ़… धन्यवाद छत्तीसगढ़.
(परमानंद वर्मा वरिष्ठ पत्रकार हैं, आलेख में लिखे विचार उनके निजी हैं.)
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