New Delhi: सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र विधानसभा के अध्यक्ष राहुल नार्वेकर को निर्देश दिया कि वह शिवसेना के प्रतिद्वंद्वी गुटों की ओर से दाखिल उन याचिकाओं पर 31 दिसंबर या उससे पहले फैसले करें, जिनमें दोनों ने एक-दूसरे के विधायकों को सदन की सदस्यता से अयोग्य ठहराने का अनुरोध किया है।
सुप्रीम कोर्ट ने साफ किया कि संविधान की 10वीं अनुसूची की पवित्रता बनाए रखी जानी चाहिए, चीफ जस्टिस डी. वाई. चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली बेंच ने कहा कि प्रक्रियात्मक उलझनों के कारण अयोग्यता संबंधी याचिकाओं पर फैसले में देरी नहीं होने देनी चाहिए।
बेंच ने कहा कि‘‘ हम 10वीं अनुसूची की पवित्रता कायम रखने को लेकर चिंतित हैं।’’ संविधान की 10वीं अनुसूची राजनीति में दलबदल को रोकने से संबंधित है। इसके साथ ही कहा कि ‘‘प्रक्रियात्मक उलझनों के कारण अयोग्यता संबंधी याचिकाओं पर फैसले में देरी नहीं होने देनी चाहिए। हम निर्देश देते हैं कि 31 दिसंबर, 2023 तक सुनवाई पूरी कर उपयुक्त निर्देश पारित किए जाएं।’’
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इस बेंच में जस्टिस जे. बी. पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा भी शामिल थे, सुप्रीम कोर्ट ने पहले मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे और उनके वफादार विधायकों को अयोग्य ठहराए जाने के लिए उद्धव ठाकरे गुट की ओर से दायर याचिकाओं पर निर्णय लेने में देरी पर विधानसभा अध्यक्ष पर नाराजगी जाहिर की थी।
अदालत ने कहा था कि विधानसभा अध्यक्ष सुप्रीम कोर्ट के आदेशों को नजरअंदाज नहीं कर सकते हैं। शिंदे गुट ने भी उद्धव ठाकरे के प्रति निष्ठा रखने वाले विधायकों के खिलाफ इसी तरह की अयोग्यता याचिकाएं दायर की हैं। सुप्रीम कोर्ट ने 18 सितंबर को विधानसभा अध्यक्ष को अयोग्यता संबंधी याचिकाओं पर फैसले के लिए समयसीमा बताने का निर्देश दिया था।