South Asian University: दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन यानी सार्क के सभी आठ सदस्य देशों का नई दिल्ली में विश्वस्तरीय विश्वविद्यालय बनाने के लिए संसाधनों को जुटाने वाला अनूठा शैक्षणिक प्रयोग विफल होता दिख रहा है। दक्षिण एशियाई विश्वविद्यालय संकट का सामना कर रहा है, क्योंकि पाकिस्तान सहित कई सदस्य देश इसके लिए फंड नहीं दे पा रहे हैं। संसद में प्रस्तुत विदेश मामलों की स्थायी समिति की एक हालिया रिपोर्ट के मुताबिक पाकिस्तान पर विश्वविद्यालय का 56 करोड़ रुपये से ज्यादा बकाया है।
अफगानिस्तान, बांग्लादेश, भूटान, मालदीव और श्रीलंका ने भी अपना बकाया नहीं चुकाया है जबकि नेपाल ने हाल ही में फरवरी 2025 तक का अपना बकाया चुका दिया है। फंड की कमी के बावजूद विश्वविद्यालय प्रशासन अपना काम जारी रखे हुए है क्योंकि भारत से उसे पूरा समर्थन मिल रहा है। पूर्व संकाय सदस्यों का कहना है कि विश्वविद्यालय अपने शैक्षणिक मिशन के प्रति प्रतिबद्ध है, लेकिन दीर्घकाल में उस मिशन को बनाए रखना सभी सार्क सदस्यों की सामूहिक जिम्मेदारी पर निर्भर करेगा।
साउथ एशियन यूनिवर्सिटी की पूर्व अध्यक्ष कविता ए. शर्मा ने कहा, “मैं खाली पाकिस्तान जो है उसका शेयर बाकी नहीं है और लोगों का भी शेयर बाकी है। मुझे लगता है श्रीलंका का भी होगा। अफगानिस्तान से तो आने का अब कहां सवाल उठता है।बांग्लादेश से भी शायद कुछ बकाया जरूर होगा। नेपाल, भूटान और मालदीव तो दे देते हैं अपना शेयर। मुझे लगता है कि इस यूनिवर्सिटी को और अगर आप चाहते हैं कि आपका प्रेसिडेंट हमेशा इंडिया से हो, तो इस यूनिवर्सिटी को आप इंटर्नेशनल यूनिवर्सिटी क्यों नहीं बना देते।”
विश्वविद्यालय के छात्र दिव्यम दुबे ने कहा, “ये जो यूनिवर्सिटी है वो सार्क नेशंस (दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन) की है । सार्क नेशंस में आठ कंट्रीज हैं – श्रीलंका, अफगानिस्तान, इंडिया, नेपाल, पाकिस्तान, भूटान, मालदीव तो इस कंट्रीज से बच्चे आते हैं पर पढ़ने और यहां पर मास्टर्स और पीएचडी की पढ़ाई होती है और रिसेंटली बी.टेक भी चालू किया गया है कंप्यूटर साइंस में। माहौल बहुत अच्छा है, डाइवर्सिटी बहुत अच्छी है, पूरे इंडिया से लोग आते हैं यहां पर पढ़ने।”