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(ऋतु रोहिणी)
पटना. वर्ष 2021 ने जनता दल युनाइटेड (जेडीयू) और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (Nitish Kumar) को बिहार की सत्ता में बने रहने का सौगात दिया. अक्टूबर-नवंबर 2020 में हुए विधानसभा चुनाव में जेडीयू (JDU) के खाते में सिर्फ 43 सीटें आईं थी, बावजूद इसके बिहार की राजनीति (Bihar Politics) का ताना-बाना कुछ ऐसा बना कि नीतीश कुमार ने फिर सत्ता की कमान संभाल ली. अब जबकि यह साल खत्म होने वाला है तो यह बात उठना लाजमी है कि जेडीयू और नीतीश कुमार ने इस साल में क्या खोया, क्या पाया?
आपको बताते हैं बिहार में सरकार चला रहे जेडीयू और नीतीश कुमार के लिए वर्ष 2021 कैसा रहा…
कोरोना में सरकार की अग्निपरीक्षा
2021 की शुरुआत में कोरोना संक्रमण ने पूरे देश को अपनी चपेट में ले लिया था. बिहार भी इससे अछूता नहीं रहा. राज्य में इस महामारी और मूलभूत स्वास्थ्य सुविधाएं न मिलने से हजारों लोगों की जान चली गई. अस्पतालों में बेड की कमी, ऑक्सीजन की किल्लत, एंबुलेंस विवाद और स्वास्थ्य कुव्यवस्था ने सरकार को चुप्पी साधने पर मजबूर कर दिया. प्रदेश के हर जिले से भयावह तस्वीरें आने लगीं. ऐसा नहीं है कि सरकार ने लोगों की जिंदगी बचाने और हताहत रोकने के लिए कुछ नहीं किया. लेकिन सरकार के सभी प्रयास धरे के धरे रह गए और कोरोना ने अपना खतरनाक रूप पेश किया.
पटना हाईकोर्ट ने इस मामले में हस्तक्षेप किया और सरकार को अव्यवस्था के लिए जमकर फटकार लगाई. अंततः नीतीश सरकार को राज्य भर में संपूर्ण लॉकडाउन लगाना पड़ा. कुल मिलाकर साल के शुरुआती महीने सरकार के लिए अच्छे नहीं रहे. जहां एक ओर उन्हें चौतरफा आलोचनाओं का सामना करना पड़ा तो वहीं, दूसरी ओर हजारों लोगों की असमय मृत्यु हुई.
केंद्रीय कैबिनेट विस्तार में JDU को मिली जगह
जुलाई महीने में केंद्र सरकार ने कार्यों के बेहतर क्रियान्वयन के लिए कैबिनेट विस्तार किया जिसमें सात मंत्रियों का प्रमोशन किया गया, और 36 नए चेहरों को मंत्रिमंडल में शामिल किया गया. ऐसी खबरें थी कि बिहार से मंत्रिमंडल में शामिल होने के लिए नए चेहरे के तौर पर जेडीयू ने अपने सहयोगी दल और केंद्र में सरकार चला रही बीजेपी को तीन नामों का प्रस्ताव भेजा था. जब मंत्रियों की फाइनल लिस्ट आई तो जेडीयू के तत्कालीन राष्ट्रीय अध्यक्ष आर.सी.पी सिंह को केंद्र में मंत्री पद मिला. कहा जाता है कि इस फैसले को लेकर बीजेपी और जेडीयू में रस्साकसी भी हुई. लेकिन बात समय रहते सुलझ गई और बिहार में यह दोनों सहयोगी पार्टियां फिर मिलकर काम करने लगीं.
जातीय जनगणना पर CM नीतीश का मुखर रूप
देश में लगातार जातीय जनगणना की मांग उठती रही है और इसे लेकर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार हमेशा मुखर अंदाज में दिखे. अगस्त महीने में नीतीश ने केंद्र को चिट्ठी लिखकर जातीय जनगणना की मांग की. सरकार की इस मांग का समर्थन मुख्य विपक्षी पार्टी राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) और विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव ने भी किया. समर्थन की तीव्रता इतनी रही थी कि सीएम नीतीश कुमार के धुर विरोधी माने जाने वाले तेजस्वी यादव ने उनके साथ इस मुद्दे बैठक की और कहा कि जातीय जनगणना के मुद्दे पर हमारा पूर्ण समर्थन बिहार सरकार और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के साथ है.
इस मुद्दे ने बिहार में सभी विपक्षी दलों को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के समर्थन में खड़ा कर दिया. नतीजा यह रहा कि नीतीश कुमार के नेतृत्व में बिहार के प्रतिनिधिमंडल ने दिल्ली में जातीय जनगणना पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात की. इस प्रतिनिधिमंडल में नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव, पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी, बिहार सरकार में मंत्री जनक राम, मुकेश सहनी और विजय कुमार चौधरी, कांग्रेस विधायक दल के नेता अजीत शर्मा सहित राज्य की सियासत के कई धुरंधर शामिल रहे.
उपचुनाव में JDU को मिली दोहरी जीत
इसी साल अक्टूबर के अंत में बिहार की दो विधानसभा सीट- मुंगेर जिला के तारापुर और दरभंगा जिला के कुशेश्वरस्थान पर उपचुनाव हुए. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार समेत पूरी जेडीयू ने इसमें अपनी ताकत झोंक दी. नीतीश कुमार ने चुनावी जनसभाएं की तो वहीं, जेडीयू के शीर्ष नेताओं ने इन इलाकों में जबरदस्त कैम्पिंग की. एक समय पर कड़ी टक्कर देने खुद आरजेडी सुप्रीमो लालू यादव दिल्ली से बिहार आए. लेकिन इसका कुछ खास असर नहीं पड़ा और जेडीयू ने दोनों सीटों पर जीत दर्ज की. 2020 विधानसभा चुनाव में सिर्फ 43 सीटों पर संतोष करने के बाद उपचुनाव में दो सीटों पर मिली जीत ने जदयू को संगठनात्मक तौर पर मजबूती दी. हालांकि यह दोनों सीटें जेडीयू की ही थीं जिनके निवर्तमान विधायकों के निधन के चलते यहां उपचुनाव कराना पड़ा था.
जातीय जनगणना का मास्टरस्ट्रोक
जातीय जनगणना को लेकर सियासी गलियारों में खूब आवाज़ गूंजी. लेकिन यह गूंज इतनी ज्यादा नहीं थी कि केंद्र सरकार इससे प्रभावित हो सके. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नेतृत्व में बिहार के प्रतिनिधिमंडल के प्रधानमंत्री से मिलने के बाद भी जब जातीय जनगणना पर केंद्र के साथ बात नहीं बनी तो इस महीने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने राज्य सरकार के खर्चे से बिहार में जातीय जनगणना कराने का ऐलान किया. मुख्यमंत्री के इस फैसले का राज्य में चौतरफा स्वागत हुआ या यूं कहें कि राजनीतिक लिहाज से भी यह मास्टरस्ट्रोक साबित हुआ.
शराबबंदी पर सख्त रवैया
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार बिहार में शराबबंदी को सामाजिक दृष्टिकोण से बेहद महत्वपूर्ण मानते हैं. लेकिन नवंबर महीने में जहरीली शराब से हुई दर्जनों लोगों की मौत ने शराबबंदी पर सवालिया निशान खड़ा किया और सरकार की खूब किरकिरी हुई. विपक्ष के अलावा सरकार के ही सहयोगी दल बीजेपी ने शराबबंदी कानून की समीक्षा किये जाने की मांग रखी. हालांकि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने इन मांगों पर जरा भी गौर नहीं किया बल्कि यह साफ कर दिया कि बिहार में रहना है तो शराब को भूलना होगा. साथ ही प्रशासन को भी आदेश दिया कि किसी भी हाल में शराब का सेवन और अवैध बिक्री को बर्दाश्त नहीं किया जाए. लिहाजा प्रशासन भी सख्त हुई और लगातार छापेमारी की गई ताकि शराबबंदी को पूरी तरह सफल बनाया जा सके.
समाज में शराबबंदी को लकर जागरूकता फैले इसके लिए 22 दिसंबर से मुख्यमंत्री नीतीश कुमार समाज सुधार अभियान के तहत प्रदेश की यात्रा पर निकले हैं. देखना है कि अगले वर्ष यानी 2022 तक चलने वाली इस यात्रा का सामाजिक स्तर पर क्या असर होता है और बिहार में शराबबंदी कितनी कारगर साबित होती है.
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