Uttar Pradesh: मथुरा के बांके बिहारी मंदिर का नियंत्रण और निगरानी के लिए अध्यादेश लाकर ट्रस्ट का गठन करने के मामले में इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने सुनवाई टाल दी और अगली तिथि छह अगस्त निर्धारित की। न्यायमूर्ति रोहित रंजन अग्रवाल के समक्ष बुधवार को जब यह मामला सुनवाई के लिए आया तो राज्य सरकार के वकील ने अदालत को सूचित किया कि अध्यादेश को उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी गई है और इस पर सुनवाई लंबित है, इस पर अदालत ने सुनवाई टाल दी।
अदालत प्रणव गोस्वामी और अन्य द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई कर रही थी। भले ही इस मामले में सुनवाई टाल दी गई हो, लेकिन अदालत ने सरकारी अधिवक्ता से कहा कि जहां तक प्रस्तावित ट्रस्ट में नौकरशाहों को शामिल करने का संबंध है, इस अध्यादेश को संशोधित कराना उचित होगा। अदालत का विचार था कि अध्यादेश के जरिए सरकार उस मंदिर पर नियंत्रण स्थापित करना चाहती है जिसकी अनुमति नहीं दी जा सकती और यह भारत के संविधान के अनुच्छेद 25 का उल्लंघन है।
इससे पूर्व 21 जुलाई को अदालत द्वारा नियुक्त न्याय मित्र संजीव गोस्वामी ने कहा था, “यह मंदिर एक निजी मंदिर है और यहां ब्रह्मलीन स्वामी हरि दास जी महाराज के वंशजों द्वारा धार्मिक अनुष्ठान किया जा रहा है। यह अध्यादेश जारी कर सरकार पिछले दरवाजे से मंदिर पर नियंत्रण का प्रयास कर रही है।”
न्याय मित्र ने अदालत को अवगत कराया था कि अध्यादेश के मुताबिक, इस बोर्ड में दो तरह के ट्रस्टी होंगे जिसमें एक नामित ट्रस्टी और दूसरे पदेन ट्रस्टी। नामित ट्रस्टी में वैष्णव परंपरा से संत, महात्मा, गुरु, विद्वान, मठाधीश और महंत आदि और सनातन धर्म मानने वाले लोग होंगे। हालांकि, उन्होंने पदेन ट्रस्टियों को लेकर घोर आपत्ति जताई जिनकी संख्या सात है और इनमें मथुरा के जिलाधिकारी, वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक, नगर आयुक्त आदि जैसे अधिकारी होंगे। गोस्वामी ने कहा कि यह राज्य सरकार द्वारा इस निजी मंदिर में पिछले दरवाजे से प्रवेश के समान है।