Dehradun: उत्तराखंड में हरिद्वार के पथरी गांव में रहने वाले राम मेहर कश्यप और नैंसी कश्यप को हाल ही में ऐसे हालात से गुजरना पड़ा जिसका सामना कोई भी मां-बाप नहीं करना चाहेगा, देहरादून के सरकारी दून मेडिकल कॉलेज और अस्पताल में सिजेरियन सेक्शन के जरिए जन्मी उनकी ढाई दिन की बेटी की दिल से जुड़ी गंभीर दिक्कतों की वजह से दुखद रूप से मौत हो गई।
बच्ची को जन्म के तुरंत बाद अस्पताल की नवजात शिशु गहन चिकित्सा इकाई में भर्ती कराया गया। हालांकि डॉक्टरों की तमाम कोशिशों के बावजूद 10 दिसंबर को उसकी मौत हो गई। इसके बाद नवजात के माता-पिता ने दुनिया के सामने जो मिसाल पेश की वो अपने आप में अनूठी है। उन्होंने बेटी का देहदान करने का फैसला लिया और शव को दून मेडिकल कॉलेज को दान कर दिया।
मोहन फाउंडेशन और दधीचि देहदान समिति से प्रोत्साहित होकर माता-पिता ने अपनी बेटी के शरीर को चिकित्सा अनुसंधान और शिक्षा के लिए दान करने का फैसला लिया। देहदान के वक्त बच्ची का नाम नहीं बताया गया था। लेकिन बाद में प्रतीकात्मक रूप से उसका नाम ‘सरस्वती’ रखा गया। ये चिकित्सा शिक्षा और पढ़ाई में उसके स्थायी योगदान को दिखाता है।
डॉक्टरों का दावा है कि इस दान के साथ ही सरस्वती देश की सबसे छोटी देहदाता बन गई है, सरस्वती के शरीर का इस्तेमाल अस्पताल का एनाटॉमी विभाग अनुसंधान और शैक्षिक मकसद से करेगा। इसका फायदा मेडिकल छात्रों की भावी पीढ़ियों को मिलेगा।
महेंद्र नारायण पंत पंत, विभागाध्यक्ष, एनाटॉमी विभाग, दून मेडिकल कॉलेज “किसी पैरंट्स के विल की रिस्पेक्ट करना ये हम लोगों के लिए सबसे बड़ी और सबसे हमारे लिए चुनौतीपू्र्ण भी आपके है और आपके विल को हम कभी भी इग्नोर नहीं कर सकते। इस वजह से हमने उसको, हमारी जो डिपार्टमेंट है, मैंने अपने डिपार्टमेंट वालों से भी सुबह चर्चा की, उन्होंने कहा कि नहीं सर, हम लोगों को कोई दिक्कत नहीं है, हम इसको ले लेंगे क्योंकि आपके पैरंट्स की विल हमारे लिए सबसे बड़ी विल है। इससे समाज में भी एक जो मेसेज जाएगा वो एक अच्छा मेसेज जाएगा बॉडी डोनेशन के लिए भी।”
बच्चे का पिता “हम सर यही कहना चाहेंगे लोगों से कि अगर ऐसा कुछ भी होता है बच्चों का। ना कि बच्चों दबा देते हैं। कहीं डाल देते हैं। तो उससे बढ़िया कहीं दान कर दीजिए। कुछ पुण्य मिलेगा। कुछ आगे बढ़ोंगे, तभी तो देश आगे चलेगा।”
बच्चे की मां ” हमारे टाइम पर डॉक्टर ने बताया था हमें इस चीज के बारे में। हम तो एकदम से फ्लैश हो गए थे कि अब क्या करें। ये सब हो गया, हमारी बच्ची के साथ। अब कहां ले जाए रात को। फिर उन्होंने बताया कि ऐसे कर सकती हो, समझ सकती हो, कर सकती हो तो कर दो। फिर मैंने भी सोचा कि यहां घर लाने से, रोने से तो अच्छा ही है कि उसे वहीं पर कर दे दान।”