नमिता बिष्ट
किशोरावस्था में कई प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ता है। एक और शारीरिक परिवर्तन तेजी से होता है, तो वहीं दूसरी ओर मानसिक तनाव के दौर से गुजरना पड़ता है। यही वजह है कि इस उम्र में खासकर लड़कियों में खून की कमी होने लगती है। लेकिन हाल में आई एनएफएचएस फाइव की रिपोर्ट के अनुसार उत्तराखंड में लड़कियों की स्थिति में सुधार आया है। तो वहीं लड़कों की सेहत बिगड़ रही है।
15 से 19 साल तक के किशोरो में बड़ा बदलाव
नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे यानि एनएफएचएस 5 की रिपोर्ट के अनुसार उत्तराखंड में 15 से 19 साल तक के लड़के और लड़कियों में खून की उपलब्धता को लेकर बड़ा बदलाव आया है। पहले जहां 15 से 19 साल वर्ग की तकरीबन 50 फीसदी लड़कियां शरीर में खून की कमी की समस्या से जूझ रही थीं तो वहीं लड़कों के मामले में यह आंकड़ा 22 फीसदी था।
लड़कों में बढ़ रही है समस्या
रिपोर्ट के अनुसार राज्य में अब 42 फीसदी लड़कियों में ही खून की कमी पाई गई है, जबकि लड़कों में समस्या बढ़ रही है। राज्य में अब 27 फीसदी लड़के खून की कमी की समस्या से ग्रस्त पाए गए हैं। हालांकि राज्य में ओवरऑल यह समस्या अब भी लड़कियों में ही ज्यादा है।
दवा खिलाने के बावजूद हाल खराब
राज्य में 15 से 19 साल के लड़के और लड़कियों को खून की कमी की समस्या से बाहर निकालने के लिए न्यूट्रेशन प्रोग्राम चल रहा है। महिला बाल विकास और स्वास्थ्य विभाग की ओर से चलाए जा रहे इस कार्यक्रम के तहत आयरन की गोलियां आदि दी जा रही हैं। लड़कियों में तो इन दवाओं का कुछ असर दिखता है, लेकिन लड़कों में दवा खाने के बाद भी खून की समस्या बढ़ रही है।
क्यों होती है खून की कमी
शरीर में खून की समस्या बहुत आम है। इसे मेडिकल भाषा में एनीमिया कहा जाता है। यह रोग तब होता है, जब लाल रक्त कोशिकाओं (आरबीसी) में हीमोग्लोबिन का लेवल कम हो जाता है। हीमोग्लोबिन आरबीसी में एक प्रोटीन है, जो ऊतकों तक ऑक्सीजन ले जाने के लिए जिम्मेदार है। वहीं स्वास्थ्य विशेषज्ञों बताते हैं कि आहार में आयरन की कमी और पर्याप्त पौष्टिक भोजन नहीं मिलना खून की कमी का सबसे बड़ा कारण हैं। आनुवांशिकता और कुछ रोग भी इसका कारण हो सकते हैं।
घर-घर जाकर हो रही स्क्रीनिंग: स्वास्थ्य मंत्री
प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री डॉ.धन सिंह रावत ने कहा कि एनएफएचएस के आंकड़ों को देखते हुए राज्य में जन आरोग्य अभियान शुरू किया गया है। इसके तहत सामुदायिक स्वास्थ्य अधिकारी घर-घर जाकर लोगों की स्क्रीनिंग कर रहे हैं। यह कवायद इसीलिए की जा रही है ताकि लोगों की बीमारियों का पता लगाकर उनका इलाज किया जा सके। प्रदेश में अभी तक 18 लाख लोगों की स्क्रीनिंग की जा चुकी है। इस दौरान 12 अलग-अलग तरह की बीमारियों की पहचान की जा रही है।