Jaipur: दिवाली पर ‘बही-खाता’ पूजन की खास अहमियत, पुरानी परंपरा से जुड़े हुए हैं व्यापारी

Jaipur: जाना पहचाना लाल बही-खाता सदियों से भारतीय व्यापार संस्कृति का खास हिस्सा रहा है, यह पारंपरिक लेखा बहीखाता है जिसमें डबल एंट्री वाले बहीखाता सिस्टम का इस्तेमाल किया जाता है। इंटरनेट के शौकीन लोगों के बीच ये तब पॉपुलर हुआ जब 2019 में अपने पहले बजट में केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारामन ने बजट दस्तावेजों को ले जाने के लिए दशकों से इस्तेमाल किए जा रहे चमड़े के ब्रीफकेस को लाल कपड़े में लिपटे पारंपरिक ‘बही-खाता’ से बदल दिया।

हालांकि बाद के बजट प्रेजेंटेशन में सीतारामन ने डिजिटल टैबलेट का इस्तेमाल करना शुरू कर दिया, लेकिन इसे ‘बही-खाता’ स्टाइल की थैली में रखा गया। बही-खाता एक हाथ से लिखा बहीखाता है, जिसमें व्यवसाय, दुकानदार और व्यक्ति अपने वित्तीय लेन-देन दर्ज करते हैं। एक वक्त व्यापारी, कारोबारी और दुकानदार अपने लेन-देन का सावधानीपूर्वक दस्तावेजीकरण करने के लिए इसका इस्तेमाल करते थे। हालांकि कंप्यूटर के आने के बाद इसकी लोकप्रियता कम हो गई।

बावजूद इसके व्यापारी अभी भी दिवाली पर देवी लक्ष्मी के साथ बही-खातों की पूजा करते हैं। ‘बही’ शब्द का मलतब ‘रजिस्टर’ और ‘खाता’ का मतलब ‘अकाउंट’ होता है। अकाउंटिंग की इस पारंपरिक बहीखाते को लाल सूती कपड़े और धागे से बंधे कागज से हाथों से तैयार किया जाता है। इसे लाल कवर से ढका जाता है क्योंकि लाल रंग शुभ माना जाता है। बही-खाता बेचने वालों के अनुसार, दिवाली के दौरान केवल जयपुर में लगभग 20 लाख बही-खाते बेचे जाते हैं, दिवाली पर बही-खाता के अलावा दवात, कलम, स्केल और कैंची की भी पूजा की जाती है।

अक्षय कुमार गुप्ता, बही-खाता बेचने वाले “बही-खाते का पहले से कम जरूर हुआ है सेल में, बट यूज हो रहे हैं छोटे-छोटे दुकानदार कर रहे हैं, गांव में, कंप्यूटर जहां नहीं लगे हैं वहां भी बही-खाते अभी यूज हो रहे हैं। छोटे शॉपकीपर्स हैं, आज भी बही-खाते में, क्योंकि उनको नॉलेज कंप्यूटर की नहीं है, तो भी वो बही-खाता यूज करते हैं।”

दिवाली पर महत्व-

लक्ष्मी पूजा के अंदर बही-खाते को सबसे अहम रखा गया है कि लक्ष्मी पूजा जो है, वो बही-खाते पर ही होती है और बही-खाते को इसीलिए शुभ माना जाता है क्योंकि ये लक्ष्मी पूजा के दिन काम आता है। पुष्य नक्षत्र के दिन खरीदारी होती है, आज गुरु पक्ष है आज ज्यादा खरीदारी होती है। पूजा दिवाली के दिन ही होती है और फिर इसको स्टार्ट करते हैं एक मार्च से।”

दुकानदारों का कहना है कि “काम कंप्यूटर पर भी करते हैं लेकिन हमारी संस्कृति और सभ्यता। दिवाली से पहले हम बही-खाते भी लाते हैं और स्याही-दवात, पेन भी लाते हैं और दिवाली के दिन पूजन के बाद हम इनका पूरा चित्रण लिखते हैं। तिथि, वित्तीय वगैरह सब जैसे पुराने लोग करते हैं, वैसे करते हैं। ये हमारी संस्कृति है इसलिए हम इसको फॉलो करते हैं।”

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