Jharkhand: झारखंड के जंगलों में इन दिनों पलाश के गहरे केसरिया फूल इस तरह हर ओर खिले हैं। राजकीय पुष्प पलाश खिलने पर दूर से देखने में ऐसा लगता है जैसे सूखे जंगलों में आग लगी हो। इसलिए अंग्रेज़ी में इसे “फ्लेम ऑफ द फॉरेस्ट” यानी “जंगल की ज्वाला” भी कहा जाता है।
अपनी सुंदरता और औषधीय गुणों से भरपूर इस फूल से कुदरती रंग बनाए जाते हैं जिन्हें खाने पीने की चीजों से लेकर होली पर खूब इस्तेमाल किया जाता है, इससे आदिवासी समाज के काफी लोगों को अपनी रोजी रोटी चलाने में मदद मिलती है।
स्वयं सहायता ग्रुप की महिलाएं हर सुबह जंगल में जाकर पलाश के गिरे हुए फूलों को जमा करती हैं। उसके बाद फिर हाथों से इनसे रंग बनाकर राज्य भर के बाजारों में बेचा जाता है। होली पर कैमिकल फ्री रंगों की मांग बढती जा रही है।
पलाश के फूल, चुकंदर, हल्दी और पालक जैसी प्राकृतिक सामग्रियों से बने ये रंग न केवल त्वचा के लिए सुरक्षित हैं बल्कि पर्यावरण के अनुकूल भी हैं। इन महिलाओं की इससे अच्छी कमाई हो रही है जिससे उन्हें अपनी रोजमर्रा की जरूरतों को पूरा करने में मदद मिल रही है। उन्हें उम्मीद है कि ये होली उनके परिवार और पूरे समुदाय के लिए खुशी का पैगाम लेकर आएगी।
जिला कार्यक्रम प्रबंधक रीता सिंह ने कहा, ”हम लोग महिलाओं का समूह बनाकर और तथा उनके संगठन, उनके ग्राम संगठन बनाकर महिलाओं के सशक्तिकरण के ऊपर कार्य करते हैं। पूरे रामगढ़ में हमारी आठ हजार महिलाएं और उसमें 90,000 से अधिक महिलाएं जुड़ी हैं। आठ हजार हमारे समूह बने हुए हैं और सभी कुछ ना कुछ गतिविधियां अपनी आजीविका, समर्धन के प्रति कार्य कर रहीं हैं और उनको काफी सारे प्रशिक्षण दिए गए हैं।
बैंकों से भी उनका लिंकेज कराया गया है और वो बहुत ही प्रगतिशील हो गईं हैं। रामगढ़ की सारी महिलाएं अब वो चुनाव में भी लड़कर मुखिया बन रही हैं, जिला परिषद में भी आ रही हैं, पंचायत समिति में आ रही हैं, तो उनका बहु आयामी उनका विकास हो रहा है।”
“रामगढ़ में एसएचजी के माध्यम से जो स्वंय सहायता दीदी हैं, उनके माध्यम से कई प्रयास किए जा रहे हैं जिसमें पलाश के फूल से अबीर बनाने के लाल रंग का अबीर उसी प्रकार से पालक साग के पत्ते से हरे रंग का अबीर ऐसे कई प्रयास किए जा रहे हैं जिसके स्टॉल हमारे समानाल्य में भी लगाए हैं और मार्किट में भी कई जगहों पर लगाए गए हैं। इस पलाश के ब्रांड के माध्यम से स्व सहायता समूह के माध्यम से हम लोग अलग-अलग जगहों पर ये अबीर बहुत सस्ते दामों में ये उपलब्ध करा रहे हैं और ये पूर्णयता प्राकृतिक है, इसमें कोई मिलावट नहीं है।”
सेल्फ हेल्प ग्रुप के सदस्यों ने कहा, “पलाश को लेकर आए हैं चुनकर, उसमें लाकर के छटाई कर रहे हैं अबीर बनाने के लिए और अबीर बनाकर के हम लोग सभी दीदी मिलकर एक अपना जीविका बढ़ाने के लिए, दुकान में सेल करेंगे और इसमें कुछ मिलावट वगैरह नहीं है, कुछ इसमें केमिकल कुछ भी नहीं है। हम लोग सेल करेंगे अपना स्थिति सुधार कर रहे हैं बच्चों और घर परिवार के लिए ये सब हम लोग अपना काम कर रहे हैं दीदी सब।”