Uttarakhand: हफ्ते भर पहले तक उत्तराखंड का धराली एक खूबसूरत गांव था, ये गांव गंगोत्री जाने वालों से गुलजार रहता था। मंगलवार को अचानक बादल फटा और पूरा गांव मलबे की मोटी परत के नीचे दब गया। पल भर में सब कुछ बदल गया। तब से सेना, एनडीआरएफ और एसडीआरएफ के जवान दिन-रात जूझ रहे हैं। मलबे के नीचे जिंदा लोगों को तलाशने के लिए रडार और खोजी कुत्तों की मदद ले रहे हैं।
गांव के लोग भी बचाव दलों की मदद कर रहे हैं। उन्हें संभावित जगहों तक ले जा रहे हैं, जहां मलबे के नीचे जिंदगियां हो सकती हैं। इन्हीं में एक हैं नेपाल के धान बहादुर। पेशे से मजदूर हैं। वे राहत कर्मचारियों को उस जगह ले गए, जहां हादसे से ऐन पहले अंतिम बार उनका बेटा और बहू दिखे थे।
कुछ ऐसे भी थे, जिनपर किस्मत मेहरबान थी। वे समय रहते बच निकले। दोपहर को पूजा-पाठ खत्म ही हुआ था कि जमीन हिल उठी। कई लोग बच्चों और बुजुर्गों को उठाकर नंगे पांव पहाड़ी पर भागे। जिला प्रशासन ने राहत काम तेज कर दिया है। विस्थापितों को राशन, कपड़े, कंबल और रिहाइश जैसी जरूरी सुविधाएं मुहैया कराई जा रही हैं। मौके पर सेना ने चिकित्सा शिविर लगाया है। बचे हुए लोगों के परिवारों को तलाशने के लिए उपग्रह संचार केंद्र भी बनाया गया है।
बचे हुए लोगों को विनाश की त्रासदी झेलनी पड़ रही है। उनके पास सिर छिपाने के लिए छत तक नहीं बची है। तलाश जारी है, राहत काम जारी है। मलबे से लोगों की आस बंधी हुई है। उम्मीद है कि लापता लोग मलबे के नीचे सही सलामत होंगे। जल्द ही जिंदगी फिर मुस्कुरा उठेगी।