Uttarakhand: उत्तराखंड में भीमताल की खूबसूरत वादियों में मौजूद ये बटरफ्लाई म्यूजियम है। यहां रंग-बिरंगी तितलियों की कई प्रजातियां पाई जाती है। बटरफ्लाई रिसर्च सेंटर को 1886 में भारत के बटरफ्लाई मैन के रूप में प्रसिद्ध फ्रेडरिक स्मेटसेक सीनियर ने बनाया था। इसका विस्तार उनके बेटे पीटर स्मेटसेक ने किया। रिसर्च सेंटर में करीब चार हजार तितलियां और कीट पतंग को रखा गया है। इनमें कुछ तितलियां ऐसी भी हैं जो अब विलुप्त हो चुकी हैं।
पीटर बताते हैं कि तितलियां न सिर्फ देखने में सुंदर लगती हैं, बल्कि ये इको-सिस्टम को बनाए रखने में भी अहम भूमिका निभाती हैं। उत्तराखंड में हर साल देश-विदेश से लाखों सैलानी घूमने जाते हैं। अगर आप भी घूमने के शौकीन हैं तो बटरफ्लाई म्यूजियम देखने जरूर जाएं। ये रिसर्च सेंटर हूबहू औपनिवेशिक शैली के बंगले की तरह है। जो गुजरे वक्त की याद दिलाता है। देवदार और बांज के जंगलों से घिरे इस बंगले के चारों ओर वन्यजीव आसानी से घूमते मिल जाएंगे।
तितली अनुसंधान केंद्र का संस्थापक पीटर स्मेटसेक ने कहा, “मेरे पिताजी ने इसको 1940 की दशक में तितली का संग्रह शुरू किया, जो कि 2000 के आस पास मैंन बटरफ्लाई रिर्सच सेंटर उसको बना लिया, क्योंकि इसको रिर्सच होना था तितलियों पर और इसका मकसद ये है कि भारतीय तितलियों, पतंगों का बाकी कीटों की जानकारी बढ़ाना। टोटल भारत में हमने 2015 में 1318 तितली आंके थे कैटलॉग में ये बहुत बड़ी मात्रा में पौधों के सेलुलोस को जानवरों के प्रोटीन में बदलते हैं इसमें बहुत मेहनत लगता है तो ये इनका मेन काम है। कहे तो योगदान। और बाकी जो है पॉलिनेशन वगैरह का काम करते हैं।”