Uttarakhand: उत्तराखंड के हल्द्वानी में रहने वाले बुजुर्ग जीवन चंद्र जोशी अपने नाम को पूरा सार्थक करते हैं। जीवन जोशी ने अपने जीवन में सूखे चीड़ की छाल से बेहतरीन कलाकृतियां बनाई हैं, जिसे वे ‘बैगेट’ कहते हैं। उत्तराखंड के मंदिरों की प्रतिकृतियों से लेकर पारंपरिक संगीत वाद्ययंत्रों तक, जोशी की कृतियां इस क्षेत्र की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत को दर्शाती हैं। जोशी कहते हैं कि चीड़ की छाल को उसके लचीलेपन के कारण किसी भी प्रतिकृति में ढाला जा सकता है। वे चीड़ के पर्यावरणीय लाभ के बारे में भी बताते हैं।
जीवन जोशी बचपन से ही पोलियो से पीड़ित हैं, लेकिन उन्होंने कभी भी अपनी शारीरिक अक्षमता को अपने काम के आड़े नहीं आने दिया। स्थानीय निवासी उनकी दृढ़ता और उनके काम के प्रति समर्पण की तारीफ करते हैं। लोगों का कहना है कि अगर उनके काम को सरकार से समर्थन मिलता है, तो यह स्थानीय स्तर पर बेरोजगारी को काफी हद तक दूर कर सकता है। जीवन जोशी को भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय से सूखे चीड़ की छाल से कलाकृतियां बनाने के लिए सीनियर फ़ेलोशिप भी मिल चुकी है। जीवन जोशी बताते हैं कि इस कला में उनकी रुचि उनके पिता की वजह से बढ़ी। अब 65 साल के हो चुके जीवन जोशी बताते हैं कि वे स्थानीय हस्तशिल्प को बढ़ावा देना जारी रखेंगे और साथ ही युवा पीढ़ी को इसे अपनाने के लिए प्रशिक्षित भी करेंगे।
जीवन चंद्र जोशी ने जानकारी देते हुए कहा, “इसमें हर तरीके की चीज बन सकती है। ये एक ऐसी चीज है जिसमें एक तो पर्यावरण का सबसे ये हैं की पर्यावरण को नुकसान नहीं करती। जब हम इसको जंगल से निकालकर के बाहर ले आते हैं। तो हम पर्यावरण की रक्षा करते हैं क्योंकि जब अग्नि जलती है, तो ये बैगेट भी वहां पड़ा हुआ जलता है और इसकी बैगेट की एक खासियत है की एक बार जलने के बाद ये बुझ जाता है। तो दौबारा ये कोयले के रूप में इकट्ठा हो जाता है। दौबारा, तीबारा, तीसरी बार, चौथी बार, पांचवी बार तक जल जाते हैं। तो सबसे बड़ी चीज हम खड़े बैगेट पर काम नहीं करते। पेड़ के बैगेट पर काम नहीं करते। जो पेड़ काट दिए जाते हैं, जो पेड़ सूख जाते हैं, सफाई कर के जो बैगेट जंगल में पड़े होते हैं। हम उन बैगेट पर काम करते हैं या पानी में बहे हुए बैगेट हैं उन पर काम करते हैं।”
सामाजिक कार्यकर्ता नरेंद्र शर्मा ने कहा, “जोशी जी ने जो अपना जो है काष्ठ कला को आगे बढ़ाया है। ये अपने आप में बहुत बड़ा हमारे लिए जो है रोजगार के क्षेत्र में जो है, जब हमारे यहां से जब पलायन हो रहा है। तो उनके द्वारा जो है कला को आगे बढ़ाया जा रहा है। वो अपने आप में रोजगार अर्जित करने के लिए उत्तराखंड के पलायन को रोकने के लिए सार्थक सिद्ध हो सकती है। इन चीजों पर उत्तराखंड की सरकार को ऐसे कलावृत काष्ठ कला को आगे बढ़ाने के लिए अपना सरकार की ओर से भी सहयोग देना चाहिए।”
सामाजिक कार्यकर्ता गणेश रावत का कहना था, “जोशी जी ने इतनी सुंदर कलाकृतियां प्रस्तुत की हैं कि उन कलाकृतियां को पर्यटक भी अपने साथ सहेज कर ले जा सकते हैं और साथ ही इनको अगर और प्रोत्साहन दे सरकार और अन्य संस्थाएं तो ये और भी बेहतरीन कलाकृतियां बना सकते हैं और जिससे यहां की अनमोल धरोहरों को हम लोग जो वेस्टेज है उसको भी हम इस्तेमाल कर सकेंगे। सैलानियों को भी एक ऐसे मोमेंटो या अपना स्मृति चिन्ह दे सकेंगे। वहीं जो है नए बच्चों को भी जो है इस कला से रूबरू कराएं जोशी जी के द्वारा। तो मैं समझता हूं अपने आप में ही कला का नया नमूना और नया आयाम होगा।”