Uttarakhand: उत्तराखंड के नैनीताल जिले के किसान नरेंद्र सिंह मेहरा ने खेती और जमीन से अपने प्रेम की बदौलत गेंहू की ऐसी अनूठी किस्म विकसित की है जिसकी पहाड़ी इलाकों में कम पानी में भी अच्छी पैदावार होगी। नरेंद्र सिंह मेहरा ने गेंहू की इस किस्म का नाम नरेंद्र 09 रखा है और इसका बकायदा पेटेंट भी कराया है।
खास बात ये है कि ये किस्म पहाड़ों, मैदानी इलाकों और उनके बीच के क्षेत्रों में किसी भी परिस्थिति में फलती-फूलती है और इसकी प्रति बालियां 50 से 80 दाने की होती है। इसलिए अब उनका ये प्रयोग लोगों के लिए प्रेरणा बन रहा है।
नई किस्म के गेहूं विकसित करने से लेकर जैविक गन्ना खेती को पुनर्जीवित करने तक मेहरा ने फसलों का भरपूर अध्ययन और प्रयोग किए हैं और ये साबित किया है कि ऐसी फसलें उगाना संभव है, जो जमीन और लोगों दोनों के लिए पोषणकारी हों।
रासायनिक चीजों का जो उपयोग हमारे जीवन में बढ़ता जा रहा है और जो हाईब्रिड चीजें आ रही थीं जिनका ना तो स्वास्थ्य के प्रति लाभदायक हैं और ना ही उनकी उत्पादकता और गुणवत्ता है उनमें, लेकिन उन्होंने जो अपनी पारिवारिक मेहनत थी, उनके पिताजी के समय की, उसको आगे बढ़कर उन्होंने एक नई खोज और नई दिशा देने की कोशिश की है।
इस नई गेहूं की किस्म को पारंपरिक फसलों की तुलना में काफी कम पानी की आवश्यकता होती है, जिससे यह पानी की कमी वाले क्षेत्रों में विशेष रूप से फायदेमंद है। प्रति एकड़ 1,800 से 2,000 किलोग्राम और कभी-कभी 2,500 किलोग्राम तक की पैदावार के साथ, यह जल्दी ही एक मांग वाली फसल बन गई।
जैसे-जैसे समय बीतता गया, जिन लोगों को ये अनाज मिले, उन्होंने इन्हें बोना शुरू कर दिया और अच्छे नतीजे मिलने के बाद, वे इनके बारे में बात करने लगे। इस तरह कहानी शुरू हुई और मेहरा ने अपनी खोज को गंभीरता से लेने का फैसला किया।
लेकिन समय के साथ उन्हें एहसास हुआ कि ये रसायन मिट्टी, फसलों और भोजन को कितना नुकसान पहुंचा रहे हैं। मेहरा ने धीरे-धीरे टिकाऊ खेती के तरीकों के बारे में और अधिक सीखा और इसे अपने जीवन का हिस्सा बनाने का फैसला किया।
किसान नरेंद्र सिंह मेहरा ने कहा, “जी सामान्य गेहूं और इसमें अंतर ये है कि सबसे पहली बात तो ये है कि यदि किसान इसको बहुत ही बेहतरीन तरीके से बोता है तो इसकी औसत आमतौर से डेढ़ गुना हो जाती है। यदि रासायनिक तरीके से अगर खेती कर रहा है तो इसे 25 से 28 क्विंटल तक भी लोगों ने पैदा किया है। अभी धामपुर के एक किसान ने मुझे बताया था कि हमने 27 क्विंटल प्रति एकड़ इसे तैयार किया। लेकिन यदि मैं इसे जैविक तरीके से प्राकृतिक तरीके से कर रहा हूं तो मेरे यहां भी कम से कम 20 से 22 क्विंटल तक मैं इसकी पैदावार ले रहा हूं यहां पर”