Ramnagar: जिम कॉर्बेट के नाम से मशहूर एडवर्ड जेम्स कॉर्बेट की 150वीं जयंती पर उत्तराखंड के रामनगर में कार्यक्रम आयोजित किया गया। कार्यक्रम में वन अधिकारी, पर्यावरणविद, प्रकृति मार्गदर्शक और उत्तराखंड के अलग-अलग जगहों से आए लोगों ने वन्यजीव संरक्षण में उनकी भूमिका को याद किया। जिम कॉर्बेट राष्ट्रीय उद्यान के अलावा उनके सम्मान में कई शहरों में कार्यक्रम आयोजित किए गए। उनमें मुख्य रूप से कॉर्बेट के शिकारी से वन्यजीव संरक्षक बनने को प्रमुखता से दिखाया गया।
जिम कॉर्बेट राष्ट्रीय उद्यान के निदेशक साकेत बडोला ने बताया कि “हम सभी जानते हैं कि जिन कॉर्बेट का पूरे क्षेत्र में बहुत बड़ा कन्ट्रीब्यूशन रहा है, बहुत बड़ा योगदान रहा है। आज उनकी डेढ़ सौवीं जन्मदिवस हम मना रहे हैं। ये दिन बड़ा महत्वपूर्ण हो जाता है, ताकि उनके जो मैसेजेज हैं, उनको जन-जन तक पहुंचाया जा सके। इसलिए हम कई तरह के प्रोग्राम आयोजित कर रहे हैं। सबसे जो महत्वपूर्ण प्रोग्राम है, जो कॉर्बेट नगरी है, रामनगर को कहा जाता है, वहां पर हम कई तरह के प्रोग्राम कर रहे हैं। इसके अलावा कालाडुंगी में जो उनका शीतकालीन निवास था, उसको अब हमने एक म्यूजियम के रूप में डेवलप कर दिया है। कॉर्बेट रिजर्व प्रशासन उसको मेंटेन करता है, चलाता है। वहां पर भी हम कई तरह के प्रोग्राम करने वाले हैं।”
जिम कॉर्बेट का जन्म 25 जुलाई, 1875 को नैनीताल में हुआ था। उन्हें न सिर्फ आदमखोर बाघों से आम लोगों को बचाने के लिए, बल्कि वन्यजीवों की सुरक्षा के लिए अपना जीवन समर्पित करने के लिए भी याद किया जाता है।
वरिष्ठ प्रकृतिविद राजेश भट्ट ने बताया कि “जिम कॉर्बेट संरक्षण का एक पर्याय थे। और संरक्षण की जो संरचनाएं थीं, उसमें जिम कॉर्बेट का बहुत महत्वपूर्ण योगदान रहा है। खास कर बाघों के संरक्षण की जो प्रेरणा उन्होंने सम्पूर्ण विश्व को दी, जिसमें उन्होंने कहा था कि बाघ एक विशाल हृदय का सज्जन प्राणी है। अगर उसका संरक्षण नहीं किया जाएगा तो भारत अपना एक अमूल्य धरोहर खो देगा। निस्संदेह आज उनके कई सालों बाद जो है, ये सब लोग ये महसूस कर रहे हैं। और ये जो प्रेरणा है, ये बाघों के संरक्षण के लिए मील का पत्थर साबित हुई।”
जिम कॉर्बेट ने आधुनिक उत्तराखंड में वन्यजीवों, खास कर बाघों और जंगलों के संरक्षण में अहम भूमिका निभाई थी। उनके सम्मान में भारत के सबसे पुराने राष्ट्रीय उद्यान, हैली राष्ट्रीय उद्यान का नाम 1957 में बदल कर जिम कॉर्बेट राष्ट्रीय उद्यान कर दिया गया। आज की तारीख में ये उद्यान न सिर्फ बाघों के संरक्षण के लिए भारत की प्रतिबद्धता का प्रतीक है, बल्कि स्थानीय अर्थव्यवस्था को सहारा देने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
वरिष्ठ प्रकृति मार्गदर्शक इमरान खान ने बताया कि “जिम कॉर्बेट का जो कंट्रीब्यूशन है, चाहे कंजर्वेशन में हो, या अब जाके टूरिज्म में, वह सराहनीय है। अगर वो नहीं होते तो खास कर हमारे देश में टाइगर भी नहीं बचते। शायद वो पहले आदमी थे जिन्होंने सबसे पहले टाइगर कंजर्वेशन के बारे में बात की थी। और इसको हैली नेशनल पार्क बनाया था। मैल्कम हैली को उन्होंने सजेस्ट किया था कि यहां पर शिकार हो रहे हैं। लोग मार रहे हैं, चाहे वो अंग्रेज वॉयसरॉय के गेस्ट हुआ करते थे, या और अंग्रेज, आर्मी के लोग हुआ करते थे, या हमारे अपने शिकारी थे। तो इस तरह से शिकार हो रहा था तो उन्होंने ये काम किया।”
पर्यावरण और वन्यजीव प्रेमी संजय छिम्वाल ने कहा कि “जिम कॉर्बेट दूरदर्शी व्यक्ति थे और उन्होंने 1930 में बाघों को बचाने की सोची। हालांकि बाघ का जो संरक्षण था, वो बहुत बाद में शुरू हुआ भारत में, लेकिन जिम कॉर्बेट की दूरदशी सोच की वजह से कॉर्बेट जैसा पार्क मिला हमें और जिसकी वजह से यहां पर बाघ भी बचे हैं, पर्यटन भी हो रहा है। रोजगार भी हो रहा है। और साथ ही साथ जो है, उनका भविष्य भी सुरक्षित है।”
इसके साथ ही व्यापारी अनिल चौधरी ने कहा कि “बिना कॉर्बेट के नाम से तो कुछ भी नहीं चलता है यहां पर, कॉर्बेट का मतलब यह है कि जैसे आप कहीं बाहर जाते हैं, और जिस एरिया में जा रहे हैं, वहां की फेमस चीज कुछ लेके आना चाहेंगे। अपने यार-दोस्तों के लिए, फैमिली के लिए। कोई व्यक्ति कॉर्बेट में आएगा, तो यहीं से रिलेटेड वो कोई ऐसा सोविनियर लेके जाएगा। इसलिए हमने वो सारी चीजें रखी हैं। जैसे कि टी-शर्ट है, हैट है, कैप है, मैगनेट है, पेन स्टैंड है। तो बहुत सारे आइटम हैं जो कॉर्बेट से रिलेटेड हैं।”
जिम कॉर्बेट की 150वीं जयंती पर आयोजित कार्यक्रम इस बात का सबूत हैं कि उनकी विरासत आज भी महफूज है। आम लोगों की रक्षा हो या वन्यजीवों की, उनका काम हर पीढ़ी को प्रेरित करता रहेगा।