पिथौरागढ़: इस दिन धरती पर अवतरित होते हैं बारिश के देवता मोष्टा

नमिता बिष्ट

उत्तराखंड को देवभूमि कहा गया है। यहां कण-कण में देवों का वास है। पंचबद्री, पंचकेदार, पंचप्रयाग और सभ्यता यहां की भूमि को देवतुल्य बनाते हैं। वहीं ऐतिहासिक मेलों की बात करें तो प्राचीन काल से ही देवभूमि उत्तराखंड में मेलों का खासा महत्व रहा है। ये मेला पहाड़ के कृषि जीवन के साथ ही यहां के सांस्कृतिक इतिहास को भी बयां करते हैं। पिथौरागढ़ की सोरघाटी में मनाया जाने वाला ऐतिहासिक मोस्टमानू मेला भी इन्हीं में से एक है। 

बारिश के देवता धरती पर होते है अवतरित

पिथौरागढ़ जिले का सुप्रसिद्ध मोस्टमानू मेला 31 अगस्त से शुरू होने जा रहा है। जिसकी तैयारियां जोरो पर चल रही है। बता दें कि यहां मोष्टा देवता को बारिश का देवता माना जाता है। इस दिन बारिश के देवता खुद धरती पर अवतरित होते हैं। लोग अपने खेतों में उन्नत फसल के लिए मोष्टा देवता की आराधना करते हैं और ऐसा भी माना जाता है कि मोष्टा देवता इस क्षेत्र में आपदा से लोगों की रक्षा करते हैं। उनका आशीर्वाद लेने के लिए लोग दूर दूर से यहां पहुंचते हैं। 

मोस्टा देवता का डोला मुख्य आकर्षण का केंद्र

लोक संस्कृति की पहचान और धार्मिक मान्यताओं का प्रमाण मोस्टा देवता का डोला 1 सितंबर को निकाला जाएगा, जो कि इस मेले का मुख्य आकर्षण का केंद्र होता है। इस डोले को कंधा देने के लिए श्रद्धालुओं में होड़ लगी रहती है। मान्यता है कि जो भी इस डोले को कंधा देता है उस पर मोस्टा देवता की कृपा सदैव बनी रहती है। हर साल भादों माह की पंचमी के दिन मोस्टा देवता का ये डोला आता है। कृषि जीवन से जुड़ी सोरघाटी पिथौरागढ़ के लोगों को अपना आशीर्वाद देकर चला जाता है।

बारिश के देवता हैं भगवान मोस्टामानू

मोस्टा देवता को यहां के लोग बारिश के देवता यानी वरूण देव के रूप में पूजते आए हैं। मान्यता है कि प्राचीन काल में बारिश न होने की वजह से इस इलाके में भयंकर अकाल पड़ा। तभी लोगों ने इस मंदिर में मोस्टा देवता का यज्ञ कर उन्हें प्रसन्न किया। जिसके बाद झमाझम बारिश होने लगी। तभी से ये मेला हर साल यहां मनाया जाता है।

साल भर से रहता है इस मेले का इंतजार

सदियों से पिथौरागढ़ जिले में मनाया जा रहा मोस्टा देवता का ये मेला धार्मिक आस्था का पर्याय है। यह जिले से 7 किलोमीटर की दूरी पर चंडाक से छेड़ा जाने वाली सड़क पर स्थित मोस्टमानु मंदिर में मेला लगता है। इस मेले का इंतजार लोगों को साल भर से रहता है, जो यहां सदियों से मनाया जा रहा है। इस बार यह बहुत खास होने जा रहा है क्योंकि कोरोना के कारण इसका आयोजन भव्य रूप से नहीं हो पाया था, लेकिन इस बार यह पूरे 3 दिन का होने जा रहा है। जिसकी तैयारियां जोर-शोर से चल रही हैं।

मोस्टा देव के मंदिर में होता है चमत्कार

मोस्टामान मंदिर का निर्माण 1926 में हुआ था। यहां हर साल ऋषि पंचमी के दिन वार्षिक मेले का आयोजन होता है। जिसमें मोस्टा देवता का डोला ढोल नगाड़ों और शंख ध्वनि के साथ निकाला जाता है। इस मेले में विशाल पत्थर को उंगली से उठाने की होड़ लगती है। जिसे केवल वही उठा पाते हैं, जो भगवान शिव में अगाद्ध श्रद्धा रखते हैं और उनका मंत्रोच्चारण करते हैं। ऐसा कहा जाता है कि इस पत्थर को कई बार बाहुबली भी नहीं उठा पाते। यह चमत्कार कैसे होता है, वैज्ञानिक भी इस बात का पता नहीं लगा पाए हैं।।

कैसे पहुंचें मोस्टामानू मंदिर

सड़क मार्ग— पिथौरागढ़ से 9 किलोमीटर की दूरी पर मोस्टा नानू मंदिर स्थित है। उत्तराखंड परिवहन बस निगम की मदद से आईएसबीटी से सीधे पिथौरागढ़ आसानी से पहुंचा जा सकता है।

रेल—- टनकपुर रेलवे स्टेशन तक पहुंचने के बाद 138 किलोमीटर की दूरी बस से तय करने के बाद पिथौरागढ़ पहुंचा जा सकता है।

हवाई—-गाजियाबाद से पिथौरागढ़ विमान से पहुंचने के लिए हवाई उड़ान की सुविधा भी है।

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