Nainital: उत्तराखंड के नैनीताल जिले के रामनगर में जंगलों से घिरे चोपड़ा गांव में प्राचीन नक्काशीदार पत्थर की शिलाएं मौजूद हैं। यहां के लोगों का मानना है कि ये शिलाएं महाभारत काल की हैं, गांव के बीचोंबीच रखे गए पत्थरों के कुछ अवशेषों पर बेहतरीन नक्काशी की गई है। इन पर बनी आकृतियां धुंधली हो गईं हैं लेकिन देखने से लगता है कि ये देवी-देवताओं की हो सकती हैं।
इन शिलाओं का सांस्कृतिक और ऐतिहासिक महत्व है फिर भी ये सुरक्षित नहीं हैं। ऐसे में इनके संरक्षण की मांग उठ रही है ताकि न सिर्फ विरासत को बचाया जा सके बल्कि इलाके में पर्यटन को भी बढ़ावा मिले। इन शिलाखंडों पर एक ऐसी भाषा में लिखा गया है जिसे गांव वाले अब तक समझ नहीं पाए हैं। हालांकि कई लोगों का मानना है कि इन पत्थरों में रहस्यमयी शक्तियां हैं इसलिए इन्हें छेड़ा नहीं जाना चाहिए।
वन विभाग का कहना है कि उसने भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण से संपर्क कर इन शिलाओं का अध्ययन करने और इन्हें संरक्षित करने का आग्रह किया है। चोपड़ा गांव के लोगों को उम्मीद है कि अधिकारी इस स्थल को पर्यटक केंद्र के तौर पर विकसित करने के लिए कदम उठाएंगे, जिससे इस इलाके को पहचान मिलेगी और आर्थिक तरक्की के रास्ते भी खुलेंगे।
सामाजिक कार्यकर्ता नरेंद्र शर्मा ने कहा कि “यहां पर ग्रामीणों ने जो है जब खेती शुरू करी तो यहां पर ये शिलापट्ट जो है नीचे जो है दिखाई दिया और ग्रामीणों ने जब इसकी और खुदाई की गई तो शिलापट्ट यहां पर मिले हैं और इनमें जो भगवानों की आकृतियां उकेरी भी हैं।ये शिलापट्ट जो है अगर इसका संरक्षण किया जाए तो क्षेत्र में पर्यटन भी बढ़ेंगे और सीतामढ़ी तो लोग आते ही हैं और इसके बाद जो है इसका संरक्षण किया जाएगा तो यहां पर भी जो है इस चोपड़ा गांव में भी पर्यटन की गतिविधियों बढ़ेगी।”
इतिहासकार गणेश रावत ने बताया कि “तो यह सारे वीरखंभ हैं, वीरखंभ यानी कि वीरता को प्रदर्शित करने वाले खंभ में हैं और ये पत्थरों के पूरे बने हुए हैं इसमें नक्काशियां की गई हैं और विभिन्न तरीके की मुद्राएं भी उकेरी गई हैं और ये पहाड़ों में भी आपको वीरखंभ मिलेंगे। उसके अलावा मैदानी क्षेत्रों में तलहटी में पहाड़ की वीरखंभ मिलते हैं और ये माना जाता है कत्यूरी वंश जो है, कत्यूरी डायनेस्टी थी उसने लंबे समय तक कुमाऊं के अंदर राज किया। कत्यूरी वंश के द्वारा ही ये निर्माणित रहे होंगे और 10वीं और 12वीं शताब्दी के आसपास इसके निर्माण का कार्य होता था। हालांकि ये युग वो था जो चंद्रवंश का भी उदय हो चुका था। तो इस तरह से एक अध्ययन करे जाने की जरूरत है इन वीरखंभ के ऊपर।”
इसके साथ ही स्थानीय लोगों का कहना है कि “इनमें जो भाषा लिखी है वो भाषा तो समझ आ नहीं रही है लेकिन भगवान की मूर्ति बनी हुई है। मूर्ति से ही ये स्पष्ट पता चल रहा है कि ये कोई भगवान की बनी हुई है और पांडव काल की बताई गई है। यही बताया है और बीच में भी कोई आदमी इनको उठाकर ले गए, एक बाहर के व्यक्ति आए थे हमको नाम तो पता नहीं सकता हूं। अपनी गाड़ी में ले गए थे। उनको ले जाने के बावजूद उनको कुछ गलत सपने हुए घर में और इस वजह से वो उनको वापस उसी स्थान पर रख गए उसी मूर्ति को।”
वही डीएफओ दिगंत नायक ने कहा कि “देखेंगे तो ये ऐतिहासिक दृष्टि से महत्वपूर्ण स्थान हुआ करता था शायद और महाभारत काल के बहुत सारे ऐसे यहां इतिहास से जुड़ा हुआ मिला है। तो इसको हम आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया को लिखे हैं और ये पहले भी आए थे और इसको एक ऐतिहासिक और धार्मिक क्षेत्र बनाने का सोच रहे हैं ताकि जितने भी टूरिस्ट आते हैं इनको इसके बारे में भी जानकारी मिले और इसके संरक्षण भी हो जाए।”