Nainital: नैनीताल की मशहूर नैनी झील में बढ़ रहा है माइक्रोप्लास्टिक का स्तर

Nainital:  पिछले साल प्रकाशित स्टडी के मुताबिक नैनीताल झील की 16 जगहों पर सतही जल के सर्वेक्षण में खतरनाक मात्रा में माइक्रोप्लास्टिक की मौजूदगी पाई गई थी।

विशेषज्ञों का कहना है कि इससे न सिर्फ झील के पारिस्थितिकी तंत्र पर बल्कि लोगों की सेहत पर भी खतरा मंडरा रहा है, कुमायूं विश्वविद्यालय के रसायन विज्ञान विभाग प्रोफेसर डॉ. नंद गोपाल साहू ने कहा कि “जो रीसेंट एक रिपोर्ट मुझे मिला है, वहां पर माइक्रोप्लास्टिक मिला है। ये माइक्रोप्लास्टिक आते हैं मानसून के टाइम में जो वाटर का, डिफ्रेंट प्लेस से वाटर आकर लेक में आता है।

तो जो प्लास्टिक है, प्लास्टिक से करके प्लास्टिक भी आते हैं। तो धीरे-धीरे उसका डिग्रेडिड होता है। एंड वो डिग्रेडिड होकर माइक्रोप्लास्टिक रूप में आ जाते हैं। एंड वो जो पानी सप्लाय होता है। यहां से सब घरों मे पानी सप्लाय होता है। तो माइक्रोप्लास्टिक आते हैं। एंड वो ड्रिंक करके पानी पीते हैं। तो वो माइक्रोप्लास्टिक हम लोगों की बॉडी में आ जाते हैं।”

विशेषज्ञों के मुताबिक माइक्रोप्लास्टिक झील में मछलियों को भी नुकसान पहुंचा रहे हैं और वो मर रही हैं। “नैनीताल झील में माइक्रोप्लास्टिक का बहुत ज्यादा असर हो रहा है। बाहर के जो टूरिस्ट लोग आते हैं वो ये प्लास्टिक का बहुत बड़ा यूज करते हैं और उसको मिसयूज करते हैं और जो हमारी नैनीताल झील है उसमें फेंक देते हैं। जिससे की नैनीताल झील में पाई जाने वाली मछलियों हो गईं और वहां की जनता वहां का पानी भी पीती है और जो बॉडी में काफी असर करता है, मैंने देखा कि वहां पर जितनी भी मछलियां हैं उनमें बहुत ज्यादा इसका इफेक्ट हो रहा है और मैं देख रहा हूं जितनी भी मछलियां वहां पर हो रहीं हैं वो मर भी जा रही हैं।”

नैनीताल नगर पालिका इस समस्या से वाकिफ है, अधिकारियों का कहना है कि उसने प्रदूषण पर नियंत्रण रखने के लिए टीमें तैनात कर दी हैं। नैनीताल नगर पालिका के अधिशासी अधिकारी रोहिताश शर्मा ने कहा कि “नैनी झील की सफाई के लिए ऑलरेडी हमारी दो टीमें बनी हुई हैं, एक कल्लीताल और एक मल्लीताल के लिए और चार-चार लड़के हमने लगाए हैं। बॉट भी दी है।

लेकिन क्योंकि नैनी झील में 62 नाले ऊपरी क्षेत्र से आते हैं। तो वहां पर जो गारबेज है या इसके जो कुछ टूरिस्ट के द्वारा कुछ व्यक्तियों द्वारा डाल दिया जाता है। तो नाले में जो वर्षा का पानी आता है, उसके साथ वो बेहकर के आ जाता है। वैसे भी इर्रिगेशन इसको रोक थाम करने के लिए इसको कलप्रिट बनाए हुए हैं। लेकिन ज्यादा फॉर्स होता तो सारी बॉटल से या प्लासटिक नैनी झील में आ जाती हैं। लेकिन हम लोग उस पर जो है टीन जैसे लगी गुई हैं पहले से ही। लो समय-समय पर अपना काम करती रहती हैं। इसकी मॉनीटरिंग करने के लिए मैं स्वयं भी इसको देखता हूं और हमने अपने सीसीटीवी कैमरे लगा रखे हैं, कहां से इस तरह का ज्यादा आ रहा है?”

माइक्रोप्लास्टिक, प्लास्टिक के बेहद सूक्ष्म कणों होते हैं जो आसानी से पानी के साथ घुल जाते हैं। इन कणों का आकार एक से पांच मिलीमीटर तक होता है। जब मछलियां और दूसरे समुद्री जीव इन्हें खा लेते हैं, तो ये पाचन तंत्र को ब्लॉक कर सकते हैं, भूख कम कर सकते हैं और यहां तक ​​कि मौत की वजह भी बन सकते हैं।

माइक्रोप्लास्टिक मनुष्यों के लिए भी गंभीर स्वास्थ्य जोखिम पैदा करते हैं। ये फूड चेन में दाखिल हो सकते हैं। इनमें ऐसे केमिकल होते हैं जो हार्मोन को बाधित कर सकते हैं, सूजन को बढ़ा सकते हैं, या समय के साथ शरीर के अंगों को नुकसान पहुंचा सकते हैं।

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