Nainital: उत्तराखंड के नैनीताल जिले के रामनगर को लीची की खेती के लिए जाना जाता है, आजकल यहां लीची के पेड़ फलों से लदे हुए हैं और इलाके के किसान बंपर फसल की उम्मीद कर रहे हैं।
जी.बी. पंत कृषि एवं प्रौद्योगिकी संस्थान ने किसानों को बेहतर उपज दिलाने में मदद के लिए एक नया तरीका पेश किया है। लीची के गुच्छों को मौसम के असर से बचाने के लिए उन्हें नॉन-वोवन बैग यानी गैर-बुने हुए थैलों से ढका जा रहा है। बाग मालिकों के मुताबिक फसल को सुरक्षित रखने के लिए ये तरीका कारगर साबित हुआ है।
बागान मालिक दीप बेलवाल ने कहा कि “पिछले कुछ दशक से हम देख रहे हैं मौसम में जो बदलाव आ रहा है उस कारण से लीची को ग्रो करना एक बहुत बड़ा चैलेंज बन गया है। तो उसके लिए शोध चल रहे हैं अलग-अलग टेक्निक्स के। उनमें से एक टेक्निक है ये नॉन-वोवन बैग से हम लीची को कवर करने की। इससे एक तो लीची के ऊपर सन का जो डायरेक्ट इफेक्ट है वो कम हो जो रहा है। दूसरा इसको कीड़े से, चिड़ियों से, चमगादड़ों से और अन्य प्राकृतिक नुकसानों से इसकी बचत हो रही है। जो शोध अभी तक हुआ है उसमें ये पाया गया है कि इन पिंक कलर के नॉन-वोवन बैग्स लगाने से रंग भी अच्छा बन रहा है और साइज डेवलपमेंट भी ज्यादा हो रहा है।”
जानकारों का कहना है कि यह गैर-बुने हुए बैग सस्ते हैं, इन्हें इस्तेमाल करना आसान है और साथ ही इसके कई और फायदे भी हैं। उद्यान अधिकारी अर्जुन सिंह परवाल ने कहा कि “इससे कई फायदे हैं। एक, जो इतनी गर्म हवाएं चल रही हैं, ये आपस में दाने टकराते हैं, उस जगह फिर दाग बनता है और वो क्रेकिंग आती है। एक ये बचाव हुआ। दूसरा जो चमगादड़ और तोते का अत्यधिक बेस पर नुकसान होता है। इनके लिए कई लेबर की प्रयुक्त लागत लग जाती है। उससे भी इसका बचाव हो और क्वालिटी भी उत्तम गुणवत्ता की बनती है। इसके द्वारा ये प्रयास किया गया है। लीची में प्रथम बार किया गया है।”
रामनगर लीची को उनकी खास बनावट, आकार और स्वाद की वजह से कुछ साल पहले भौगोलिक संकेत यानी जीआई टैग दिया जा चुका है। लीची की खेती का रकबा लगातार बढ़ रहा है और किसानों को उम्मीद है कि जल्द ही इस इलाके में लीची का उत्पादन दोगुना हो जाएगा।इस लक्ष्य को हासिल करने में नॉन-वोवन बैग यानी गैर-बुने हुए बैग का इस्तेमाल अहम भूमिका निभा सकता है।