कस्तूरी कुंडल बसे, मृग ढूँढत बन माहि… आपने कबीर दास का ये दोहा तो सुना ही होगा। भले ही कबीर दास जी इस दोहे के द्वारा ईश्वर की महत्ता बताते है। लेकिन ये सच है कि कस्तूरी मृग की नाभि में होता है और वो इससे अनजान मृग उसकी सुगन्ध के लिए जगह-जगह मारा मारा ढूँढता फिरता है। अगर आपके मन में भी ये सवाल उठ रहा है तो आज हम आपको बताते है इसके पीछे की वजह और इससे जुड़ी और भी खास बातें…..
कस्तूरी की सुगंध से भरमाता है मृग
दरअसल मृग कस्तूरी को वन में इसलिए ढूंढता फिरता है, क्योंकि वह कस्तूरी की तेज सुगंध से भरमा जाता है और उस सुगंध की खोज में वन में भटकता फिरता है, जबकि वास्तव में कस्तूरी उसकी नाभि में ही छुपी होती है। लेकिन उसे इस बात का ज्ञान नहीं होता और वह कस्तूरी कहीं और होने की आशा में उसकी खोज में वन में भटकता फिरता है।
आकर्षक खूबसूरती के साथ मनमोहक खुशबू
कुदरत ने देवभूमि उत्तराखंड को बेहद खूबसूरती के साथ ही ‘कस्तूरी मृग’ जैसे वन्य जीवों की भी सौगात दी है जिनकी गिनती जंगल के सबसे खूबसूरत जीवों में होती है। सिर्फ इतना ही नहीं यह अपनी आकर्षक खूबसूरती के साथ नाभि से निकलने वाली मनमोहक खुशबू के लिए मुख्य रूप से जाना जाता है। जो इस मृग की सबसे बड़ी खासियत है। दरअसल इस मृग की नाभि में कस्तूरी होता है जिसमें से मनमोहक खुशबू की धारा बहती है। जो सिर्फ नर मृगों में ही पाया जाता है। उत्तराखंड में कस्तूरी मृग की 4 प्रजातियां पाई जाती हैं। वहीँ पूरे भारत की बात करें तो कस्तूरी मृग उत्तराखंड के अलावा हिमाचल प्रदेश, सिक्किम और कश्मीर में भी पाया जाता है।
उत्तराखंड का राज्य वन्य पशु घोषित
दुर्लभ वन्य जीव प्रजाति ‘कस्तूरी मृग’ उत्तराखंड का राज्य वन्य पशु है। इसे ‘हिमालयन मस्क डिअर’ के नाम से भी जाना जाता है। वैसे इसका वैज्ञानिक नाम मास्कस कइसोगास्टर (Moschus Chrysogaster) है। यह उत्तराखंड के जंगलों में केदारनाथ, फूलों की घाटी, पिथौरागढ़, उत्तरकाशी में 3600 से 4400 मीटर की ऊंचाई पर पाए जाते हैं। इन्हें स्थानीय भाषा में जुगाली करने वाला मृग भी कहा जाता है। इसका मुख्य भोजन केदारपाती होता है।
सामान्य हिरणों से अलग है कस्तूरी मृग
कस्तूरी मृग मोशिडे परिवार के सदस्य हैं। इस की औसतन आयु लगभग 20 वर्ष की होती हैं। वैसे यह देखने में तो हिरण जैसे ही दिखते हैं, लेकिन यह मृग सामान्य हिरणों की तुलना में कहीं ज्यादा आदिम है। कस्तूरी मृग के शरीर की संरचना की बात करें तो यह भूरे रंग होता है और इसके शरीर पर काले पीले रंग के धब्बे पाए जाते हैं। इनके पीछे के पांव आगे के पांव की अपेक्षा लंबे होते हैं जो पर्वतीय क्षेत्रों के कठिन भाग में चलने के अनुकूल बनाते हैं। इनके हिरणों के सामान सींग नहीं होते हैं। वहीं आत्मरक्षा के लिए इनके दोनों दांत बाहर की तरफ निकले रहते हैं। इनकी सूघने की शक्ति कुत्तों से भी अधिक तेज होती है। सिर्फ यही नहीं यह सबसे तेजगति से दौड़ते भी है। हालांकि इनके दौड़ने के बाद मुड़कर देखने की प्रवृत्ति इनके लिये जानलेवा भी बन जाती है। बता दें कि कस्तूरी मृग की औसत आयु लगभग 20 साल होती है और मादा कस्तूरी मृग की गर्भधारण अवधि छह माह की होती है।
काफी गजब होती याददाश्त
कस्तूरी मृग उच्च हिमालयी पहाड़ी जंगलों की चट्टानों के दर्रों और गुफाओं में रहता है। इनकी एक दिलचस्प बात यह भी होती है कि यह अपना निवास स्थान कड़क ठण्ड के मौसम में भी नहीं छोड़ते है। भले ही यह खाने की तलाश में दूर निकल जाए पर लौट कर अपने आश्रय में ही आराम करते हैं। इसके पीछे इनकी याददाश्त शक्ति काफी मजबूत बताई जाती है, जिस वजह से यह अपना रास्ता कभी नहीं भूलता।
क्या है कस्तूरी
कस्तूरी एक बहुत ही सुगन्धित पदार्थ होता है। इसका रासायनिक रुप कस्तूरी मिथाइल ट्राईक्लोरो पेंटाडेकनाल है। यह खुशबूदार कस्तूरी केवल नर मृग में पायी जाती है जो इस के उदर के निचले भाग में जननांग के समीप एक ग्रंथि से स्रावित होती है। एक नर मृग की थैली में लगभग 30 से 50 ग्राम तक कस्तूरी पाई जाती है। इस कस्तूरी का उपयोग औषधि के रूप में दमा, मिर्गी, निमोनिया आदि की दवाएं बनाने में होता है। कस्तूरी से बनने वाला इत्र अपनी मदहोश कर देने वाली खुशबू के लिए प्रसिद्ध है।
कस्तूरी ही जान की दुश्मन
कुदरत ने जानवर को जनन प्रक्रिया को सामान्य बनाए रखने के लिए खुशबू का उपहार दिया, लेकिन यह बड़ी विडंबना है कि यही खुशबू इस निरीह मृग की दुश्मन बन जाती है। इस खुशबू का इस्तेमाल औषधि और परफ्यूम बनाने में होता है। जो विश्व का बेशकीमती उत्पाद है और अंतरराष्ट्रीय बाजार में इसकी कीमत लाखों में होती है। कस्तूरी मृग की प्रजाति आज संकट में है। पैसा कमाने की हवस में अँधा इंसान उसकी थैली में मौजूद कस्तूरी को निकालकर बेच डालने के लिए उसकी हत्या करने में जरा भी नहीं हिचकिचाता हैं।
कस्तूरी मृग प्रजनन व संरक्षण केंद्र स्थापना
वन्यजीव संरक्षण अधिनियम 1972 के तहत, कस्तूरी मृग को मारना दंडनीय अपराध माना गया है। कस्तूरी मृग के महत्व को देखते हुए उत्तराखंड राज्य सरकार ने कस्तूरी मृगों के संरक्षण के लिए 2001 में राज्य पशु घोषित किया। उत्तराखंड राज्य में सर्वाधिक मात्रा में कस्तूरी मृग अस्कोट वन्यजीव अभ्यारण्य पिथौरागढ़ में पाए जाते हैं। बता दें कि साल 1972 में कस्तूरी मृग संरक्षण के लिए केदारनाथ वन्य जीव विहार के अंतर्गत कस्तूरी मृग विहार और साल 1977 में बागेश्वर में महरूड़ी कस्तूरी मृग अनुसंधान की स्थापना की गई। वहीं साल 1982 में कस्तूरी मृग प्रजनन व संरक्षण केंद्र स्थापना चमोली जिले काँचुला खर्क में की गई।