विनय भट्ट
बदलते वक्त के साथ विलुप्त होते पारंपरिक मांगल गीतों को सजोयें रखने की पहल गढ़़वाल केन्द्रीय विश्वविद्यालय के फोक डिपार्टमेंट ने की है। जी हां इस पहल से जहां पहाड़ के पारंपरिक मांगल गीतों का विस्तार होगा तो वहीं ये मांगल गीत कई महिलाओं की आजीविका का जरिया भी बनेगी। मांगल गीत कभी उतराखंड की पहचान हुआ करते थे। लेकिन समय के साथ ये गीत लोगों की जुबां से दूर हो गये हैं ऐसे लोक गीतों जिनको मांगल के नाम से जाना जाता है इनके संरक्षण और संवर्द्धन के लिए एक पहल गढ़वाल विश्वविद्यालय के फोक कल्चर विभाग द्वारा की जा रही है। विभाग के प्रोफेसरों द्वारा यहा स्थानीय महिलाओं को मागंल गीत सिखायें जा रहे हैं। महिलाओं को शादी-समारोह से लेकर अन्य सांस्कृतिक कार्यक्रमों के लिए प्रशिक्षित किया गया है। जिससे महिलायें इन मांगल गीतों को गाकर अपनी आर्थिकी का जरीया बना सके और पहाड़ की यह अमूल्य संस्कृति व पारंपरिक गीत भी जीवीत रह सके।
उत्तराखण्ड में शायद ही कोई ऐसी परंपरा हो जो मांगल गीतों के बिना पूरी होती हों। शुभ कार्य के लिए इन मांगल गीतों को घर की विवाहित महिलाएं गाती हैं। खासतौर पर शादी समारोह के प्रत्येक रस्म के लिए अलग-अलग मांगल गीत गाये जाते हैं। वहीं उत्तराखण्ड की संस्कृति के सरंक्षण का कार्य कर रहे लोगों का मानना है कि पश्चमी सभ्यता पहाड पर भी हावी हो रही हैं जिसमें पहाड की पंरपरा कही न कही लुप्त होती जा रही हैं। लेकिन इस तरह की पहल जहॉ पहाड़ की महिलाओं की आर्थिकी का जरिया बनेगी वहीं इन परम्पराओं, गीतों को संजोने में मदद करेगी।
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