Haridwar: धर्मनगरी हरिद्वार में चंडी चौदस के पावन अवसर पर, माँ चंडी देवी के दर्शन के लिए मंदिर परिसर में भारी संख्या में श्रद्धालु पहुंचे, नील पर्वत पर स्थित इस प्राचीन मंदिर में माँ भगवती चंडी देवी दो रूपों में विराजमान हैं। एक रूप में माँ भगवती ‘रुद्र चंडिका खम्ब’ के रूप में और दूसरे रूप में ‘मंगल चंडिका’ के रूप में विराजती हैं।
वैसे तो इस प्राचीन और पौराणिक माँ चंडी देवी मंदिर में साल भर भक्तों का तांता लगा रहता है, लेकिन ऐसी मान्यता है कि नवरात्रों से लेकर चंडी चौदस के दौरान जो भक्त माता के इस दरबार में सच्चे मन से प्रार्थना करता है, माँ उसकी हर मन्नत पूरी करती हैं।
यही कारण है कि चैत्र व शारदीय नवरात्रों में यहाँ देश के ही नहीं, बल्कि विदेशों के लोग भी माँ के दरबार में अपनी मन्नतों को लेकर पहुँचते हैं।वहीं इस अवसर पर श्रद्धालुओं का कहना है कि चंडी चौदस के दौरान धर्मनगरी हरिद्वार स्थित माता के मंदिर में दर्शनों के लिए बड़ी संख्या में लोग पहुँचते हैं।
इस मंदिर में आने वाले भक्त माता के दरबार में अपना शीश नवाना नहीं भूलते। मान्यता है कि जो भी भक्त माता के पसंदीदा भोग नारियल को लेकर सच्चे मन से प्रार्थना करता है, उसकी मुराद अवश्य पूरी होती है। यही कारण है कि शारदीय नवरात्रों के बाद चंडी चौदस के दिन यहाँ दूर-दूर से आने वाले भक्तों की लंबी कतारें नज़र आती हैं।
इन भक्तों पर अपार कृपा करते हुए माँ भगवती उन्हें अपना आशीर्वाद जरूर देती हैं।नील पर्वत पर स्थित माँ चंडी का यह दरबार प्राचीन मंदिरों में से एक है। पौराणिक कथा के अनुसार, आदि काल में जब शुंभ-निशुंभ व महिषासुर ने धरती पर प्रलय मचाया हुआ था, और देवताओं को उनके संहार में सफलता नहीं मिल रही थी। तब सभी देवताओं ने भगवान भोलेनाथ के दरबार में गुहार लगाई। तब भगवान भोलेनाथ व देवताओं के तेज से माँ चंडी ने अवतार लिया। जब शुम्भ निशुम्भ माँ चंडी से बच कर नील पर्वत पर छिपे हुए थे, तभी माता ने यहाँ पर खंभ रूप में प्रकट होकर दोनों का वध कर दिया।
इसके बाद माता ने देवताओं से वर मांगने को कहा। तब स्वर्ग लोक के सभी देवताओं ने मानव जाति के कल्याण हेतु माता को इसी स्थान पर विराजमान रहने और भक्तों का कल्याण करने का वरदान माँगा। तभी से ही माता यहाँ विराजमान होकर अपने भक्तों का कल्याण कर रही हैं।नील पर्वत स्थित माँ चंडी देवी मंदिर में साल भर भक्तों का तांता लगा रहता है।
इस दौरान मंदिर में पहुँचने वाले भक्त तीन किलोमीटर पैदल कठिन चढ़ाई को पार करते हुए माँ के दरबार में पहुँचते हैं। साथ ही इस पर्वत पर माँ चंडी देवी के दर्शन के लिए उड़न खटोले (रोपवे) से भी पहुँचा जा सकता है।यहाँ नवरात्रों के बाद चंडी चौदस का मेला भी लगता है। इस मेले के दौरान भी हज़ारों की संख्या में भक्त माँ चंडी देवी का पूजन करते हैं और अपनी मनोकामना पूर्ण होने की कामना करते हैं।