Haridwar: शनि अमावस्या के मौके पर हजारों श्रद्धालु उत्तराखंड में हरिद्वार की हर की पौड़ी पर पहुंच रहे हैं। शनि अमावस्या हिंदू कैलेंडर में एक विशेष दिन होता है जो भगवान शनि की पूजा के लिए समर्पित है। इस दिन पितरों को भी याद किया जाता है।
इसे शनिचरी अमावस्या या शनि जयंती के नाम से भी जाना जाता है। मान्यता है कि शनि अमावस्या पर पितरों की पूजा-अर्चना, श्राद्ध, तर्पण और पिंड दान करने से पितृ दोष से मुक्ति मिलती है और पितर प्रसन्न होते हैं।
शनि अमावस्या को श्रद्धालु गंगा नदी में पवित्र डुबकी लगाते हैं क्योंकि ऐसा माना जाता है कि इस दिन स्नान और दान करने से पूर्वजों की आत्मा को शांति मिलती है और परिवार में सुख-समृद्धि आती है। शनि अमावस्या पर श्रद्धालु पूरे विधि-विधान से पूजा करते हैं ताकि उन्हें शनि दोष, साढ़ेसाती और ढैय्या के अशुभ प्रभावों से मुक्ति मिले और शनिदेव की विशेष कृपा मिले।
पुजारी अमितानंद महाराज ने बताया कि “शनिचरी अमावस्या है। आज की अमावस्या का बड़ा महत्व है और आज के दिन हमें अपने पुरखों के निमित्त, पितरों के निमित्त कम से कम 11 या सात डुबकी लगाना चाहिए गंगा मइया में। गंगा मइया पतित पावनी हैं, हम सबका कल्याण करने वाली हैं। हमने अगर जीवन में पाप करे हैं, महसूस होता है तो कहते हैं कि अगर प्राश्यचित कर लें, तो भगवान हमें अंतिम अवसर जानकर माफ कर देता है। वही सोचकर हमें मां गंगे में डुबकी लगाना चाहिए।”
इसके साथ ही श्रद्धालुओ का कहना है कि “आज के दिन लोग अपने घरों को कुशा लेकर जाते हैं। आज का दिन जो है, पितरों का कार्य ये होता है, इसी कारण जो पितृ पक्ष आ रहा है, उसके लिए कुशा लेकर जाते हैं। बहुत अच्छा लगा, स्नान किया, बहुत महत्व है।