Haridwar: हजारों कांवड़िए सावन के महीने में गंगा नदी से पवित्र जल लेने के लिए उत्तराखंड के हरिद्वार पहुंच रहे हैं, वह गंगा जल लेकर अपने गृहनगर पहुंचते हैं और शिव मंदिरों में शिवलिंग पर चढ़ाते हैं। हरिद्वार में हर तरफ उत्सव का माहौल है, अपने कंधों पर सजे-धजे कांवड़ लेकर भक्तिमय धुनों पर नाचते-गाते कांवड़िए शहर में दिख रहे हैं। वे पूरे जोश और उत्साह के साथ अपनी आस्था की झलक पेश कर रहे हैं।
सावन के महीने में शिव भक्त बांस से बने कांवड़ को अपने कंधों पर लेकर चलते हैं, इसीलिए उन्हें कावड़िया कहा जाता है। कांवड़ के दोनों सिरों पर जल कलश बंधे होते हैं जिनमें पवित्र गंगा जल भरा जाता है। हर बार की तरह इस बार भी अलग-अलग अंदाज के कांवड़ दिख रहे हैं। इनमें से एक कांवड़ उन लोगों को समर्पित है जिन्होंने पहलगाम आतंकी हमले में अपनी जान गंवाई।
कांवड़ यात्रा का एक खास पहलू यह है कि यात्रा के दौरान कांवड़ को किसी भी वक्त जमीन को नहीं छूना चाहिए, हिंदू पवित्र माह सावन के दौरान होने वाली कांवड़ यात्रा इस साल 11 जुलाई से जारी है।
दिल्ली से आए कांवड़िया गुलशन काला ने बताया कि “यह भोले की नगरी है, हम हर साल आते हैं भोले की कांवड़ लेकर। इसमें हमारा पूरा खर्चा आ गया चार साख रुपए। ये हर साल आते हैं सारे। 17 लोगों का हमारा ग्रुप है, यह भोले की माया है। भोले की कृपा है कि हम कांवड़ लेने के लिए आते हैं। इसके भोले की कृपा है। 23 तारीख का जल है। 23 को जल चढ़ाना है, भोले की कृपा से।”
कांवड़िया अजय ने बताया कि “कांवड़ है यह, हमारे शहीद, यह पहलगाम में हमला हुआ था। यह हमारे शहीद फौजी हैं जो उनकी याद में ले जा रहे हैं हम ये कांवड़। शहीदों की याद में दिल्ली, द्वारका ले जा रहे हैं। उन्हें हम यही संदेश देना चाहते हैं, हमारे लिए जो दिन-रात आर्मी बॉर्डर पर खड़ी हुई है उनके लिए भी हमें कुछ करना चाहिए। हमारे से जितना होता है, हम उतना कर रहे हैं।”
इसके साथ ही कांवड़िया अनुभव ने बताया कि “मेरे मन में तो बस ऐसे ही आ गया था। वैसे तो मैं कांवड़ लेकर आता था मुझे 14 साल हो गए, लेकिन इस बार मैंने सोचा कुछ अपने आर्मी भाइयों के लिए लेकर जाएंगे, जो शहीद हुए हैं उनकी यादों में लेकर जाएंगे। तो इसलिए माइंड में आया थोड़ा सा यह सेटअप करा।”