उत्तराखंड में हरेला की धूम, सीएम धामी ने किया वृक्षारोपण, जानिए क्या है हरेला पर्व का महत्व

उत्तराखंड का लोक पर्व हरेला आज पूरे प्रदेशभर में धूम धाम से मनाया जा रहा है। खासकर गांवों में हरेला पर्व की रौनक देखते ही बनती है। लोकपर्व हरेला को लेकर कुमाऊं के पर्वतीय क्षेत्रों में रहने वाले लोगों में खासा उत्साह है। सुबह से ही घरों में जी रया, जागि रया, यो दिन य बार भेटैने रया…..अशिर्वाद की गूंज सुनाई दे रही है।

सीएम धामी ने किया वृक्षारोपण

हरेला पर्व के अवसर पर मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी रायपुर स्थित महाराणा प्रताप स्पोर्ट्स कॉलेज पहुंचे। यहां आयोजित कार्यक्रम में सीएम धामी ने शिरकत की। इस दौरान सीएम धामी ने वृक्षारोपण कर हरेला पर्व कार्यक्रम की शुरुआत की। साथ ही प्रदेशवासियों को हरेला पर्व की शुभकामनाएं दी है। उन्होंने कहा कि पर्यावरण को समर्पित लोक पर्व ‘‘हरेला‘‘ उत्तराखण्ड की सांस्कृतिक परम्परा का प्रतीक है। बता दें कि इस बार प्रदेशभर में अगले एक माह तक हरेला पर्व मनाया जाएगा।

प्रकृति से जुड़ा लोकपर्व ‘हरेला’

हरेला प्रकृति से जुड़ा एक लोकपर्व है,जो उत्तराखंड में मनाये जाने वाले त्योहारों में सबसे महत्वपूर्ण है। हरेला पर्व के साथ आज से पवित्र श्रावण मास की भी शुरुआत हो गई है। बता दें कि हरेला साल में तीन बार मनाया जाता है। पहला चैत्र माह में, दूसरा श्रावण माह में और तीसरा अश्विन माह में मनाया जाता है, इन तीनों में से सावन महीने में मनाया जाने वाला हरेला उत्तराखंड में धूमधाम से मनाया जाता है। हरेला पर्व खुशहाली और समृद्धि का प्रतीक है। इसे कुमाऊं क्षेत्र में बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है।

क्या है हरेला ?

सावन शुरु होने से 9 दिन पहले ही 5 से 7 तरह के बीजों की बुआई की जाती है। इसमें मक्काश, गेहूं, उड़द, सरसों और भट शामिल होते हैं। इसे टोकरी में बोया जाता है और 3 से 4 दिन बाद इनमें अंकुरण की शुरुआत हो जाती है। इसमें से निकलने वाले छोटे-छोटे पौधों को ही हरेला कहा जाता है। रोजाना शाम के समय हरेला र जल का छिड़काव किया जाता है। 9वें दिन इन पौधों की हल्कीर गुड़ाई की जाती है। अलग-अलग हरेला के पास अलग-अलग तरह के फल रखे जाते हैं। इनके बीचों-बीच शिव-पार्वती, गणेश और कार्तिकेय की प्रतिमा यानी डिकारे स्थाखपित किए जाते हैं। इसके बाद शुरू पूजा-अर्चना होती है। पूजा के दूसरे दिन मुख्य  हरेला पर्व मनाया जाता है। यानि हरेला को संक्रांति के दिन काटा जाता है। इस दिन घरों में खास तरह के पकवान बनाए जाते हैं। ये पकवान और हरेला सबसे पहले इष्ट देव को समर्पित किए जाते हैं। जिसके बाद परंपरानुसार घर के इसके बाद घर के बड़े-बुजुर्ग सिर पर हरेला तन कों को रखते हुए….

जी रये, जागि रये, तिष्टिये, पनपिये,

दुब जस हरी जड़ हो, ब्यर जस फइये,

हिमाल में ह्यूं छन तक,

गंग ज्यू में पांणि छन तक,

यो दिन और यो मास भेटनैं रये,

अगासाक चार उकाव, धरती चार चकाव है जये,

स्याव कस बुद्धि हो, स्यू जस पराण हो……आशिर्वाद देते हैं।

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