Haldwani: हल्द्वानी का फाइकस गार्डन पर्यावरण और जैव विविधता के संगम की अनूठी मिसाल

Haldwani: उत्तराखंड वन विभाग ने हल्द्वानी के लालकुआं में अपने अनुसंधान केंद्र में दस साल पहले फाइकस गार्डन विकसित करने का काम शुरू किया था, आज यह उद्यान अलग-अलग तरह की फाइकस प्रजातियों का घर है, वन विभाग के मुताबिक यह इस तरह का भारत का सबसे बड़ा उद्यान है।

मुख्य वन अधिकारी संजीव चतुर्वेदी का कहना है कि “हमने फाइकस गार्डन विकसित किया है लालकुआं में, यह 2013-14 में विकसित होना शुरू हुआ था और ये इस 10 साल के समय में यह देश के सबसे बड़े फाइकस गार्डन के तौर पर जाना जाता है जहां पे 120 प्रजातियां हैं जो एक साथ पूरे देश में एक जगह पर फाइकस की इतनी प्रजातियां कहीं नहीं लगाई गई हैं। तो ये हमारे भारत देश का सबसे बड़ा फाइकस गार्डन है और जिसके बारे में काफी लोगों को जानकारियां मिल रही हैं। काफी लोगों के अंदर जिज्ञासा भी है तो अब यहां पर पर्यटक इत्यादि भी आना शुरू होगा।”

पांच हेक्टेयर में फैला यह फाइकस उद्यान शोधकर्ताओं, छात्रों और प्रकृति प्रेमियों के लिए एक प्रयोगशाला की तरह है। मुख्य वन अधिकारी संजीव चतुर्वेदी ने बताया कि “जो फाइकस की प्रजातियां होती हैं वो प्राकृतिक और पारिस्थितिक रूप से बहुत महत्वपूर्ण होती हैं। इनको हम इकोलोजी में बोलते हैं- की स्टोन स्पीसीज मतलब कि वो प्रजातियां जिनके ऊपर और प्रजातियां जीवों की, जंतुओं की निर्भर करती हैं और अगर इनको परिस्थितिकीय तंत्र से हटा दिया जाए तो प्रजातियां गायब हो जाएंगी, तो फाइकस की यही भूमिका होती है।”

पर्यावरणविद् गणेश रावत ने बताया कि “बहुत अच्छा काम वन विभाग कर रहा है और उसी कड़ी में उसने जो फाइकस गार्डन बनाया है वहां पर, मैं समझता हूं वो अपने आप में अनूठा है क्योंकि फाइकस प्रजाति के जो वृक्ष हैं वो कहीं न कहीं प्रकृति में अपना विशेष योगदान देते हैं। ऐसे में अगर फाइकस प्रजाति का वहां पर गार्डन बनाया गया, उश माध्यम से अनुसंधान होगा, उस प्रजातियों में किस तरह के खतरे नए बदलते वक्त में आ रहे हैं उन पर अध्ययन होगा और कहीं न कहीं उनके संवर्धन को लेकर क्या हो सकता है, ये सब चीजें वहां पर होंगी तो पर्यावरण में, प्रकृति में फाइकस की जो महत्ता है वो और भी फलीभूत होगी।”

फाइकस पौधे अंजीर या शहतूत परिवार से संबंधित हैं। इसमें पेड़ों, झाड़ियों और लताओं की लगभग 850 प्रजातियां शामिल हैं। फाइकस गार्डन अब पर्यटकों के लिए खुल चुका है, इसका मकसद इस प्रजाति के पारिस्थितिक महत्व के बारे में जागरूकता बढ़ाना है।

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