नमिता बिष्ट
हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल केंद्रीय विश्वविद्यालय को आज 49 साल पूरे हो गए है। आज ही के दिन 1973 में तीन साल के आंदोलन के बाद श्रीनगर में गढ़वाल विश्वविद्यालय की स्थापना हुई थी। विश्वविद्यालय की स्थापना के लिए गढ़वाल मंडल के लोगों ने भूख हड़ताल और गिरफ्तारियां दी।
कॉलेज के लिए गढ़वाल के छात्रों को जाना पड़ता था दूसरे शहर
बता दें कि विश्वविद्यालय की स्थापना से पहले गढ़वाल मंडल के छात्रों को इंटरमीडिएट के बाद उच्च शिक्षा के लिए कानपुर, आगरा और लखनऊ जैसे शहरों का रुख करना पड़ता था। इसलिए श्रीनगर में विश्वविद्यालय की स्थापना की मांग उठी और साल 1971 से 1973 के बीच आंदोलन चला।
1971 में आंदोलन के लिए समिति का गठन
आंदोलन के लिए साल 1971 में उत्तराखंड विश्वविद्यालय केंद्रीय संघर्ष समिति का गठन किया गया। इसके संरक्षण की जिम्मेदारी स्वामी मन्मथन और स्वामी ओंकारानंद को दी गई। जबकि समिति में प्रेम लाल वैद्य, प्रताप पुष्पवाण, विद्या सागर नौटियाल, कृष्णानंद मैठाणी, वीरेंद्र पैन्यूली, कुंज विहारी नेगी, जयदयाल अग्रवाल, ऋषि बल्लभ सुंदरियाल और कैलाश जुगराण को जिम्मेदारियां सौंपी गई।
सत्याग्रहियों ने प्रदर्शन करते हुए गिरफ्तारी दीं
दरअसल 26 जुलाई को 1971 को विश्वविद्यालय की मांग के लिए श्रीनगर में मातृ शक्ति ने भूख हड़ताल की। 16 सितंबर 1971 को विश्वविद्यालय की मांग के लिए समूचा गढ़वाल मंडल बंद कराया गया। विश्वविद्यालय के लिए उत्तरकाशी, पौड़ी, देहरादून, चमोली और टिहरी जिलों में आंदोलन हुए। इस दौरान विभिन्न स्थानों में सत्याग्रहियों ने प्रदर्शन करते हुए गिरफ्तारी दीं।
1 दिसंबर 1973 से विश्वविद्यालय विधिवत रूप से संचालित
स्वामी मन्मथन और कुंज विहारी नेगी को गिरफ्तार कर रामपुर जेल भेज दिया गया। लंबे आंदोलन के फलस्वरूप 23 नवंबर 1973 को उत्तर प्रदेश शासन ने श्रीनगर में राज्य विश्वविद्यालय स्थापना की अधिसूचना जारी की। जिसके बाद एक दिसंबर 1973 से विश्वविद्यालय विधिवत रूप से संचालित होने लगा।
विधान सभा में आया था स्थगन प्रस्ताव
श्रीनगर में विश्वविद्यालय की स्थापना के लिए 16 सितंबर 1971 में उत्तर प्रदेश विधान सभा में 23 विधायक कार्य स्थगन प्रस्ताव भी लाए थे। विधायकों ने तत्काल लोक महत्व के प्रश्न पर विचार करने की मांग की थी।
तीन परिसर हो रहे संचालित
स्थापना काल में बिड़ला परिसर श्रीनगर गढ़वाल विश्वविद्यालय के अधीन था। इसके बाद पौड़ी और टिहरी में भी परिसर स्थापित किए गए। बिड़ला परिसर का विस्तार अलकनंदा नदी के पार चौरास में किया गया। साल 1989 में गढ़वाल विश्वविद्यालय का नामकरण पूर्व मुख्यमंत्री हेमवती नंदन बहुगुणा के नाम पर कर दिया गया।
बीडी भट्ट पहले कुलपति
बता दें कि गढ़वाल विश्वविद्यालय के पहले कुलपति बीडी भट्ट को बनया गया। वह साल वह वर्ष 1973 से 1977 तक कुलपति रहे। जबकि मेजर एसपी शर्मा यहां पहले कुलसचिव बने।
2009 में केंद्रीय विश्वविद्यालय का दर्जा
हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल विश्वविद्यालय को 15 जनवरी 2009 को केंद्रीय विश्वविद्यालय का दर्जा मिला। पांच संकाय से शुरू हुए गढ़वाल विश्वविद्यालय में केंद्रीय विश्वविद्यालय बनने के बाद 14 संकाय हो चुके हैं। स्थापना काल से अब तक लगभग 20 लाख छात्र-छात्राएं यहां से डिग्री प्राप्त कर चुके हैं
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