Diwali: उत्तराखंड की राजधानी देहरादून के एक छोटे से इलाके, ‘कुम्हार मंडी’ में कारीगर दिवाली के लिए हाथ से मिट्टी के दीये बनाने में व्यस्त हैं। अपने घर के एक कोने में, फूल सिंह कच्ची मिट्टी को नाजुक हाथों से दीये का आकार दे रहे हैं। कतार में रखे गए इन दीयों को भट्टी में पक्का कर मजबूत किया जाता है। इन्हें अंतिम रूप देने के लिए इन पर हाथों से रंग किया जाता है। बढ़िया दीये बनाने के लिए मिट्टी भी अच्छी चाहिए होती है, जिसे पहचानना भी कारीगरी से कम नहीं है।
जहां दीयों को बनाने काफी मेहनत का काम है, वहीं इन्हें बेचना भी किसी चुनौती से कम नहीं है। कुछ लोगों का कहना है कि संकरी गलियां और भीड़-भाड़ वाली सड़कें ग्राहकों के लिए पहुंच मुश्किल बना देती हैं। कई ग्राहकों का कहना है कि वे बड़े पैमाने पर मशीन से बनाए गए दीयों की बजाय, स्वदेशी और हाथ से बने मिट्टी के दीयों को ज्यादा पसंद करते हैं।
देहरादून के ये कारीगर दीयों को अच्छा बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे। लोग भी उनकी आजीविका को समर्थन करने और पर्यावरण-अनुकूल समारोहों को बढ़ावा देने में मदद कर रहे हैं।
खरीदारों कहना है कि
“लोगों में थोड़ी अवेयरनेस तो आई है कि हम अपना लोकल बिजनेस को प्रोमोट करें। जो लोकल हैं, उनकी भी दिवाली अच्छी मने, हमारी मन रही है तो। जो हमारे रिचुअल्स थे, रिचुअल्स फॉलो करते हैं। हमारा जो पुराना है। दिवाली मनाना, वगैरह। इस मिट्टी से त्योहार मनती है। दीये जलाने का। दीये जलाने से, आपको भी पता होगा, कई फायदे होते हैं।”
“मिट्टी के सामान यूज करना चाहिए हम लोगों को। अपने स्वदेशी चीजों को बढ़ावा देना चाहिए। जो हमारी संस्कृति है, हमें इसे बढ़ावा देना चाहिए। हमें इलेक्ट्रिक चीजें, चाइनीज चीजों की जगह अपनी मिट्टी को, अपनी संस्कृति को बढ़ावा दें, जो हमारी पुरानी चीजें चली आ रही हैं, जो हम दीयों का यूज करते थे।”