Dehradun: बाजारों से गायब है मशहूर ‘देहरादून लीची’, बेमौसम बारिश से फसल को भारी नुकसान

Dehradun: उत्तराखंड के देहरादून में बागवानी विभाग के मशहूर लीची बाग में सैकड़ों पेड़ हैं, यहां बेहतरीन क्वालिटी की लीची की अलग-अलग किस्में मौजूद हैं। ‘देहरादून लीचियां’ अपने खास स्वाद के लिए मशहूर हैं। आमतौर पर इनकी मांग बहुत ज्यादा होती है और ये मई के आखिर तक बाजार में आ जाती हैं।

हालांकि इस साल लोग थोड़ा मायूस हैं क्योंकि शहर के बाजारों में उम्मीद के मुताबिक लीची की आमद नहीं है, किसानों का कहना है कि बेमौसम बारिश की वजह से लीची के पकने की प्रक्रिया पर बुरा असर डाला है जिससे फसल को काफी नुकसान हुआ है।

लीची के पेड़ों की बेहतर देखभाल के बावजूद इस साल इसकी पैदावार में खास गिरावट आई है, मौसम की मार झेल रही लीची की फसल को इस बार पक्षियों ने भी नुकसान पहुंचाया है।

लीची की फसल को ज्यादा नुकसान से बचाने के लिए किसान और बाग की देखभाल करने वाले लोग खास तरीके अपना रहे हैं। जैसे-जैसे फसल का समय नजदीक आ रहा है, देहरादून के इस लीची के बाग के किसान फसल की सुरक्षा के लिए कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं। उन्हें उम्मीद है कि आने वाले दिनों में मौसम बेहतर रहेगा और वे बिना किसी नुकसान के अपनी फसल को बाजारों तक पहुंचा सकेंगे।

शरण दास, लीची किसान “लीची तो बारिश पड़ने की वजह से ये लीची तो खराब हो गई है, कीड़ा हो गया है। लास्ट ईयर जो है इसमें बारिश ना पड़ने की वजह से गर्मी से लीची खत्म हो गई है। मेन है इसमें क्लाइमेट का बहुत है। दो-तीन दिन बारिश हो जाए तो चल जाए लेकिन एक हफ्ता बारिश हो जाती है तो लीची में कीड़ा पड़ जाता है।

माली हेमचंद आर्य ने बताया कि “जो लीची पहले होती थी, वो अब थोड़ा फर्क तो पड़ा ही है। इतना नहीं है मतलब जो पहले था। नुकसान तो होता ही है सर। कीड़ा पर जाता है। जब ज्यादा बारिश हो जाती है तो कीड़ा पर जाते है। यही है उसका नुकसान।

थोड़ा बारिश की वजह से होती है और थोड़ा आपका धूप से होती है। जैसे बारिश ज्यादा हो गई, तो उस वजह से बारिश होने के बाद धूप पड़ गई। तो इसमें थोड़ा सा जो बाहर का छिक्कल होता है इसका ये इसका फटने का चांस ज्यादा होता है और बाकी हमको बाकी इसको बचाना पड़ता है चमगादड़ वगैरह या तोतों से सभी चीजों से बचाना पड़ता है। अभी तीन बार हम स्प्रे कर चुके हैं लीचियों पर और उससे भी बारिश ज्यादा होने की वजह से इसमें तब ज्यादा नुकसान हो रहा है।”

इसके साथ ही बाग के कर्मचारी राजमोहन ने कहा कि “यह शाम के सात बजे से चार बजे तक काम करते हैं सर। इसलिए चार बजे के बाद चमगादड़ आना बंद हो जाते हैं जी। फिर हम आराम करते हैं फिर, सुबह सात बजे उठते हैं सुबह, फिर नाश्ता-पानी करके अपना फिर दूसरा काम करते हैं जी अपना।

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