Dehradun: गर्मी धीरे-धीरे बढ़ रही है, इसके साथ ही उत्तराखंड की राजधानी देहरादून में पारंपरिक मिट्टी के बर्तनों का इस्तेमाल जोर पकड़ने लगा है। इन्हें अक्सर “देसी रेफ्रिजरेटर” कहा जाता है। गर्मी बढ़ने के साथ मिट्टी से बने बर्तनों की बिक्री तेज हो गई है। इस बार नए डिजाइन में तरह-तरह के मिट्टी के बर्तन मिल रहे हैं। इनमें स्टाइलिश कैम्पर और बोतलों से लेकर सजावटी घड़े तक शामिल हैं। इन्हें खरीदने के लिए खरीदार उमड़ रहे हैं।
दुकानदारों के चेहरों पर खुशी भी है और चिंता की लकीरें भी। उनका कहना है कि बढ़ती मांग को पूरा करना भारी परेशानी है, मिट्टी के बर्तन ना सिर्फ पर्यावरण के अनुकूल हैं, बल्कि आधुनिक बर्तनों के मुकाबले रसायन मुक्त और सुरक्षित भी हैं। लोगों का मानना है कि मिट्टी के बर्तन में रखा पानी प्राकृतिक रूप से ठंडा रहता है और रेफ्रिजरेटर में रखे पानी से ज्यादा सेहतमंद है। आने वाले समय में गर्मी और बढ़ेगी। ऐसे में मिट्टी के बर्तनों की मांग भी जोर पकड़ेगी और दुकानदारों को बढ़ती मांग पूरी करने के लिए ज्यादा चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा।
दुकानदार गंगा शरण प्रजापति ने कहा कि “नए दौर को देखते हुए, पानी की टंकियां आ रही हैं, नल वाली आ रही हैं, कैम्पर जिसे बोलते हैं। कुछ फैंसी आइटम आ रहे हैं गुजरात वाले। और कुछ टंकी आ रखी है, क्या बोलते हैं, चंडीगढ़ वाली आ रखी है। वो सब बढ़िया माल है इस समय। और पुराने घड़े जो होते हैं देसी। वो भी आ रखे हैं। वो भी बढ़िया पानी ठंडा करते हैं।
इसके साथ ही दुकानदार राजेश कुमार ने कहा कि “हमारे पास घड़े, पानी की टंकियां, फैंसी टंकियां आ रही हैं हमारे पास। और कड़ाही, खाना बनाने वाले बर्तन, सब आ रखे हैं। भारी मात्रा में है। फैंसी हमारे पास है, एक गिटार वाली आ रखी है। एक भगवान कृष्ण वाली आ रखी है। कई प्रकार की जो हैं, फैंसी टंकियां आ रखी हैं।”
वही स्थानीय निवासियों का कहना है कि “फ्रिज तो है, लेकिन सबके घरों में होता है, लेकिन फ्रिज में, डॉक्टर भी बोलते हैं आप लोग डायरेक्ट फ्रिज का पानी मत पियो। या तो उसमें मिक्स करके पियो, या फिर मिट्टी के बर्तन का पियो। पहले लोग मिट्टी के बर्तनों को ही यूज करते थे। कोई बीमारी नहीं होती थी और आज कल देखो, कितनी बीमारियां हो रही हैं। क्योंकि फ्रिज में रखो तो उसमें बैक्टीरिया आ जाता है। तो इसलिए जो पानी मिट्टी की घड़ा है, या फिर कोई भी मिट्टी की चीज है, वो शुद्ध होती है।”
“हम नेचर से कहीं ना कहीं से जुड़े रहेंगे। बेसिक चीज पानी है, जो हमारे बॉडी में 90 परसेंट है। उसके भी कंटेंट हमारे पास पूरे ना हों तो बेकार है। तो मिट्टी से जुड़ा रहेगा पानी तो हमारे लिए फायदेमंद है और फ्रिज का पानी नहीं पीना चाहिए। गर्मियों में, हां, गर्मियों में मिट्टी के बर्तन लेते हैं। मजबूरी है। और पुराने हमारे गांव में पहले भी हम यूज करते थे तो सारा खाना पकाना, बनाना, सब कुछ मिट्टी के बर्तन में होता था। तो कहीं ना कहीं हम रिक्रियेट कर रहे हैं पुराने दौर को।”
“फ्रिज का दौर, एसी का दौर तो बेकार है। हमें अच्छा नहीं लगा। हम गांव के रहने वाले लोग हैं, गांव-देहात के। हमने शुरू से मिट्टी में खाना खाया। मिट्टी में बनाया है। चूल्हे पर खाना बना कर खाते हैं। और ये फ्रिज का पानी वैसे भी साइंटिफिकली भी पीना नहीं चाहिए। आपको भी पता है। सांटिस्ट ने भी मना किया है फ्रिज का पानी पीने के लिए। हड्डियां कमजोर होती हैं, सब कुछ है। फ्रिज में रखा हुआ खाना भी नहीं खाना चाहिए। हम शउरू से ही घड़े का पानी पीते हैं। सुराही का पानी पीते हैं। ये सही है। मिट्टी से जुड़े हुए हैं। मिट्टी में जो भी पोषक तत्व होते हैं, वो हमारे शरीर में जाएंगी ही जाएंगी।”