Bageshwar: उत्तराखंड का बागेश्वर कभी संतरे, माल्टा, नींबू और दूसरे खट्टे फलों की पैदावार के लिए मशहूर था। फिर उनकी खेती खतरे में पड़ने लगी, किसानों ने बताया कि उनके बागानों पर जलवायु परिवर्तन का असर पड़ रहा था। पेड़ों की ज्यादा देखभाल करनी पड़ती थी।
पर्यावरण के जानकारों का कहना है कि हाइब्रिड किस्मों की वजह से भी देसी संतरे की उपज कम होने लगी, किसानों की परेशानियां देखते हुए बागानों में नई जान डालने के लिए बागवानी विभाग सामने आया। विभाग ने मिट्टी जांच की जानकारी दी और किसानों को सूखते पेड़ों को बचाने के नुस्खे बताए।
बागेश्वर की सरकारी नर्सरी में सालाना 40 से 45 हजार पौधे उगाए जाते हैं। इन्हें अलग-अलग योजना के तहत किसानों को दिया जाता है, ताकि जिले में खट्टे फलों की खेती को बढ़ावा मिले।
अब किसानों और बागवानी विभाग की कोशिशें रंग लाने लगी हैं। बागेश्वर के बागानों में फिर हरियाली छाने लगी है। उम्मीद है कि आने वाले समय में वहां खट्टे फलों की खेती बदस्तूर जारी रहेगी।
किसानों का कहना है कि “जब हम लोग बच्चे थे तो उस टाइम हर घरों में माल्टा, नींबू और संतरा इस चीज के बहुत से पेड़ मिलते थे। आज कल एक तो हमारे पहाड़ी इलाके में जो भी पैदावार होता था वो बहुत स्वादिष्ट और अच्छा होता था। अब इस टाइम में क्या है एक तो पर्यावरण का भी असर पड़ गया है, जिसके कारण पेड़ जल्दी से सूख जा रहे हैं, इसलिए सभी ग्रामीण लोगों ने इस पर थोड़ा ध्यान देकर पौधों को संरक्षण देकर टाइम-टाइम पर उनकी देखभाल करके उसमें पानी डालकर उनका संरक्षण करना चाहिए।”
अतिरिक्त बागवानी अधिकारी कुलदीप जोशी ने कहा कि “इसके अलावा जो पहले लग चुके पौधे हैं या जो फल ऑलरेडी उत्पादन में है उनके संरक्षण के लिए उनके जीर्णोद्धार के लिए विभाग द्वारा जीर्णोद्धार के कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं। जिससे किसानों को तकनीकी जानकारी दी जाती है।साथ ही उनके फील्ड में ट्रायल किया जाता है और किस तरीके से माह जनवरी, फरवरी में उनको पौधो का जीर्णोद्धार करना चाहिए। उनके जाले कैसे हटाएं, इस बारे में जानकारी दी जाती है। और किस तरीके से उन पौधे से हम अधिक से अधिक उपज ले सके उसकी जानकारी दी जाती है।”