आर्यभट्ट प्रेक्षण विज्ञान शोध संस्थान में सम्पूर्णानंद दूरबीन के 50 साल पूरे,जानिए गोल्डन जुबली पर इसके इतिहास के बारे में

नमिता बिष्ट

दुनिया में नाम कमाने वाली नैनीताल के आर्यभट्ट प्रेक्षण विज्ञान शोध संस्थान एरीज में लगी संपूर्णानंद दूरबीन ने अपने 50 साल का सफर पूरा कर लिया है। एरीज में 104 सेमी संपूर्णानंद ऑप्टिकल दूरबीन की स्वर्ण जयंती समारोह धूमधाम से मनाई जा रही है। सोमवार को एरीज के निदेशक प्रो. दीपांकर बनर्जी ने इसका शुभारंभ किया। इस समारोह में पहुंचे खगोल वैज्ञानिकों और विशेषज्ञों ने ऐतिहासिक दूरबीन की उपलब्धियों पर प्रकाश डाला। तो चलिए जानते हैं इसके इतिहास और उपलब्धियां के बारे में…….

1972 में नैनीताल में स्थापित किया गया टेलीस्कोप
दरअसल संपूर्णानंद टेलीस्कोप वह टेलीस्कोप है, जिससे भारत की ओर से गामा-रे विस्फोट की पहली बार खोज में अहम योगदान दिया गया था। ब्लैक होल की तरह गैलेक्सी के केंद्र में विशालकाय काले छिद्र यानी क्वेजार को साल 1999 में खोजने वाला यह पहला टेलीस्कोप है। खास बात यह है कि 1972 में नैनीताल में स्थापित दुनिया का यह ऐसा पहला टेलीस्कोप है जो आज भी अंतरिक्ष के रहस्यों की खोज की दुनिया में भारत का मान बढ़ा रहा है।

पूर्वी जर्मनी से आए थे उपकरण, 15 लाख का खर्च
एरीज के वरिष्ठ खगोल विज्ञानी डा. शशिभूषण पांडेय के अनुसार अक्टूबर 1972 में इस दूरबीन को मनोरा पीक नैनीताल में स्थापित किया गया था। पूर्वी जर्मनी से इसके उपकरण आयात किए गए थे और इसके निर्माण में 15 लाख रुपये खर्च आया था।

ऐसे पड़ा टेलीस्कोप का नाम संपूर्णानंद
इस टेलीस्कोप को स्थापित करने में उप्र के पूर्व मुख्यमंत्री और राजस्थान के पूर्व राज्यपाल डा. संपूर्णानंद का विशेष योगदान रहा, इसलिए इसे संपूर्णानंद टेलीस्कोप नाम दिया गया। 1990 में इसका अपग्रेडेशन किया गया। स्टार क्लस्टर, अरुण और शनि ग्रह के बाहरी छल्ले, बायनरी स्टार के साथ अनेक ग्रह-नक्षत्रों के आब्जर्वेशन में संपूर्णानंद दूरबीन की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। बता दें कि इस टेलीस्कोप के माध्यम से पांच अंतरराष्ट्रीय, 60 राष्ट्रीय स्तर के अलावा 400 अन्य शोध पत्र भी प्रकाशित हो चुके हैं।

टेलीस्कोप से एरीज को मिली पहचान
एरीज गवर्निग काउंसलिंग सदस्य डॉ सोमक राय चौधरी ने बताया कि सम्पूर्णानंद दूरबीन ने एरीज को देश दुनिया में पहचान दिलाई है। इस दूरबीन का शुरुआती चरण खोजों से शुरू हुआ और वर्तमान में भी यह दूरबीन वैज्ञानिकों के लिए बेहद मददगार साबित हो रही है। वहीं प्रो. दीपांकर बनर्जी ने कहा कि यूरेनस और शनि ग्रह के छल्लों की खोज से इस दूरबीन के उपयोग की शुरुआत हुई थी और गामा किरणों के विस्फोट का अध्ययन तक की खोज इस दूरबीन के जरिए संभव हो सका है।

दो लाख से अधिक सैलानी समेत विज्ञानी कर चुके हैं अवलोकन
संपूर्णानंद दूरबीन के जरिए देश विदेश के सैंकड़ों विज्ञानी और शोधार्थी यूनिवर्स के रहस्यों की खोज कर चुके हैं। 50 साल के अंतराल में दो लाख से अधिक स्कूली बच्चे और सैलानी इस दूरबीन के जरिए चांद, तारों, ग्रहों के अलावा ब्रह्माण्ड की अनेक अकाशगंगाएं और निहारिकाओं का दिदार कर चुके हैं।

50 साल और बढ़ाई जाएगी उम्र
भारत का संपूर्णानंद टेलीस्कोप विश्व में बीते 50 साल से अंतरिक्ष के गूढ़ रहस्यों को सुलझाने में लगा है । बदलती तकनीकी दुनिया में जब इसके समकक्ष स्थापित अधिकांश टेलीस्कोप दम तोड़ चुके हैं तो इसके निरंतर क्रियाशील रहने और अहम शोध-अनुसंधान में भागीदार बने रहने की उपलब्धि और भी अहम हो जाती है। वहीं एरीज के निदेशक प्रो. दीपांकर बनर्जी के अनुसार इस टेलीस्कोप की बुनियाद इतनी मजबूत है कि यह इतने लंबे समय से निरंतर कार्यरत है। जबकि दुनिया में इसके साथ स्थापित कई टेलीस्कोप बंद हो गए हैं। हमारा लक्ष्य है कि यह टेलीस्कोप अगले 50 साल और कार्य करे। इसके लिए आधुनिक तकनीक के साथ उपकरण स्थापित किए जाएंगे।

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