Varanasi: देश-भर में भगवान जगन्नाथ के मंदिरों में स्नान पूर्णिमा के मौके पर खास अनुष्ठान किए जा रहे हैं। इस खास दिन भगवान जगन्नाथ, देवी सुभद्रा और भगवान बलभद्र को स्नान कराया जाता है।
उत्तर प्रदेश में वाराणसी के अस्सी घाट के जगन्नाथ मंदिर में विशेष अनुष्ठान में शामिल होने के लिए श्रद्धालु सुबह से ही लंबी कतारों में खड़े दिखे, इस पवित्र अनुष्ठान के साथ एक बहुत ही रोचक मान्यता जुड़ी हुई है। पूरे दिन देवताओं को स्नान कराया जाता है और माना जाता है कि धूप और पानी के संपर्क में आने से वे बीमार पड़ जाते हैं।
मान्यता है कि भगवान जगन्नाथ ने अपने एक परम भक्त के बीमार पड़ने पर उसकी मदद करने के लिए खुद बीमार पड़ने का फैसला लिया था, भगवान जगन्नाथ उनकी बहन देवी सुभद्रा और उनके भाई बलभद्र स्नान के बाद बीमार पड़ जाते हैं और अज्ञातवास में चले जाते हैं। वे 15 दिनों के बाद ही दोबारा सामने आते हैं।
वाराणसी जगन्नाथ मंदिर ट्रस्ट ने इस शुभ अवसर पर रथ यात्रा उत्सव की व्यवस्था की योजना बनाने के लिए बैठक की। ये उत्सव स्नान पूर्णिमा के 15 दिन बाद आयोजित किया जाता है।
जगन्नाथ मंदिर के मुख्य पुजारी राधेश्याम पांडेय ने कहा कि “यह स्नान सूर्योदय के समय प्रारंभ होता है। पहले शाह पुरी परिवार स्नान कराते हैं, उसके बाद भक्तों से सभी लोग स्नान करते हैं। यह स्नान सुबह पांच बजे से रात जब तक भक्त आएंगे 12 बजे तक चलेगा, इसके बाद भगवान अस्वस्थ हो जाते हैं। अस्वस्थ होने पर अज्ञातवास में 14 दिन निवास करते हैं। 15वें अमावस्या (नया चांद का दिन या अमावस्या की रात) को भगवान दर्शन देते हैं। उसी दिन परवल को जूस दिया जाता है। स्वस्थ हो जाते हैं अगले दिन पालकी द्वारा काशी भ्रमण करने के लिए जाते हैं और भक्तों को दर्शन देते हैं।”
श्रद्धालुओ का कहना है कि “हम तो लगभग चार-पांच साल से आ रहे हैं और ये हर साल होता है। भगवान को आज के दिन नहलाकर बीमार किया जाता है और फिर जब वो स्वस्थ हो जाते हैं, तो सारे भक्तों को दर्शन देते हैं। बाहर निकलते हैं। ‘नगर भ्रमण’ करते हैं। तो हम भी उसके एक छोटे से वो बनने आए हैं, हम भी भगवान को आज बीमार करने आए हैं। आज उनका जन्मदिन भी है। तो उनको विश करते हैं और अपने और अपने पूरे परिवार, अपने पूरे समाज के लिए अच्छी चीजों के लिए कामना करते हैं।”
जगन्नाथ मंदिर के सचिव शैलेश त्रिपाठी ने कहा कि “यह जो जून का मास है ना, ये प्रभु जगन्नाथ जी के उत्सव पर्व का मास होता है। इसमें अक्षय तृतीया से रथ पूजन के पश्चात एक मान लिया जाता है कि हम भगवान की रथ यात्रा पर्व की तैयारी में हम लोग लग जाते हैं। जिसमें आज स्नान पूर्णिमा के दिन, भगवान का जलाभिषेक होता है तमाम श्रद्धालुओं द्वारा और न्यास समिति इसमें बैठकर निर्णय लेती है और व्यवस्थाओं पर चिंतन करती है और चिंतन के पश्चात हम ये सारी व्यवस्थाओं में लगे हैं। श्रद्धालुओं को सुविधा हो ज्यादा से ज्यादा और इनको कोई दिक्कत ना हो और जलाभिषेक सुचारू रूप से ये चलता रहे।”