Uttar Pradesh: बाराबंकी की झोपड़ी में नवाचार, आत्मविश्वास और प्रेरणा की मिसाल

Uttar Pradesh: उत्तर प्रदेश में बाराबंकी जिले के सिरौली गौसपुर गांव की एक छोटी सी झोपड़ी में हुआ नवाचार विकास और प्रेरणा की अलख जगा रहा है। 12वीं में पढ़ने वाली पूजा एक दिहाड़ी मजदूर की बेटी हैं। उन्होंने धूल रहित थ्रेशर बनाया है। इस नवाचार से उन्हें राष्ट्रीय पहचान और जापान जाने का मौका मिला है। राष्ट्रीय स्तर के इन्स्पायर पुरस्कार की विजेता पूजा सरकार के प्रायोजित दौरे पर अगले महीने टोक्यो जाएंगी। वे देश भर के प्रतिभाशाली छात्रों के साथ जापान के नामी विश्वविद्यालयों और प्रयोगशालाओं का दौरा करेंगी।

पूजा को बिना धूल थ्रेशर बनाने का विचार तब आया, जब उन्होंने अपने सहपाठियों को खेत में पारंपरिक थ्रेशर से निकलती धूल से परेशान होते देखा। अपने शिक्षक के मार्गदर्शन में पूजा के नवाचार को जिला और राज्य स्तर पर मान्यता मिली। फिर उन्हें राष्ट्रीय विज्ञान मेले के लिए चुना गया, जहां उन्हें प्रतिष्ठित इंस्पायर पुरस्कार मिला। वरिष्ठ जिला अधिकारियों ने भी
पूजा की तारीफ की है। उन्होंने गरीब परिवार से आने वाली पूजा की उपलब्धि को नायाब बताया है। फूस और बांस से बनी झोपड़ी से निकल कर जापान जाने वाली पूजा की यात्रा सिर्फ हवाई नहीं, हर आमो-खास के लिए प्रेरणा की अद्भुत मिसाल है।

बाल वैज्ञानिक पूजा ने कहा, “स्कूल में पढ़ते समय पास के खेत में चले थ्रेशर से जो धूल है, वो हमारे स्कूल में आ रही थी, जिसके कारण हम लोगों को पढ़ने और लिखने में दिक्कत हो रही थी। जैसे खांसी आने लगती। सांस लेने में दिक्कत। इस बारे में हमने सोचकर सर को बताया। हमने सर से हमसे कहा कि इसके सामने झोला लगा दें, धूल रुक जाएगी, लेकिन सर ने कहा तुम्हारे पास इतना बड़ा झोला कहां है जो तुम इसके सामने लगाओगी? हम लोग घर चले गए। इसके बारे में सोचते रहे। जैसे घर बनता है, जैसे मौरन चाली होती है वो चलना हम लेकर आए हैं, उसके सामने लगाकर भूसे से धूल को अलग कर दिया फिर पास के खेत में भरते रहे पानी से उसमें जितनी धूल थी चिपकती जा रही थी फिर हमने सोचा की इसके नीचे हम पानी का टैंक रख दें, जितनी धूल रहेगी उसी में चिपक जाएगी।”

पूजा के शिक्षक राजीव श्रीवास्तव ने कहा, “इंस्पायर अवार्ड भारत सरकार बहुत अच्छी योजना है। इसमें कक्षा छह से कक्षा 10 के बच्चों से उनका नवाचार पूछा जाता है। कोई नए आविष्कार के बारे में कुछ नई सोच पूछी जाती है। बच्चे क्योंकि ग्रामीण परिवेश से हैं, तो उसने वहां पर देखा कि जो थ्रेशर से गेहूं की मड़ाई होती है, उसमें भूसे के साथ जो धूल निकलती है और 100-200 मीटर तक उड़ती है और सबको प्रदूषित करती है उसका निराकरण इसके दिमाग में आया कि हम क्यों ना कुछ ऐसा बना लें उस थ्रेशर के साथ में, जिससे उस धूल को हम ना उड़ने दें वातावरण में और लोगों को बीमारियों से बचाएं। उसी चीज को उसने सोचा और बनाया।”

DM शशांक त्रिपाठी का कहना था, “बहुत ही गर्व का विषय है कि हमारे जनपथ की बच्ची ने जो की बहुत साधारण पृष्ठभूमि से है, इंस्पायर अवार्ड के अंतर्गत उसको जापान जाने का मौका मिलेगा। उसने अपने आस-पास की परिस्थितियों को देखते हुए, जब उसने देखा की जो थ्रेशर है उससे जो धूल निकलती है, वो विद्यालय के बच्चों तक जाती है और सभी को दिक्कत भी होती है उससे। तो उसने उसको देखते हुए उस समस्या के समाधान की सोची और बड़े वैज्ञानिक तरीके से उसके समाधान का एक मॉडल बनाया है जोकि इंस्पायर अवार्ड में चयनित हुआ है।”

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