Saharanpur: उत्तर प्रदेश के सहारनपुर में यमुना नदी के किनारे शिवालिक पहाड़ियों के करीब हरियाली में मुगल इतिहास का एक भुलाया जा चुका अध्याय छिपा है।
बादशाही महल के नाम से जानी जाने वाली मुगल शासक शाहजहां की शिकारगाह अब खंडहर में तब्दील हो चुकी है, यहां शाहजहां अपनी बेगम और परिवार के साथ गर्मी के मौसम में वक्त बिताते थे और जंगलों में शिकार किया करते थे।
माना जाता है कि इस शिकारगाह को शाहजहां के खास सेनापति मरदान अली खान ने बनवाया था। इतिहासकारों के मुताबिक शाहजहां बाबा लाल दास से मिलने के लिए अपने लाव लश्कर के साथ सहारनपुर आए थे। तब उन्हें यमुना तट और शिवालिक की पहाड़ियों से सटा जंगल बेहद पसंद आया और उन्होंने इसे अपनी शिकारगाह और ग्रीष्मकालीन विश्राम स्थल के रूप में चुना।
साहित्यकार वीरेंद्र आजम ने कहा कि “सहारनपुर के उत्तरी छोर पर एक बड़े सिद्ध पुरुष हुए हैं बाबा लाल दास। बाबा लाल दास जी की प्रसिद्धि सुनकर, शाहजहां उनसे मिलने के लिए सहारनपुर आए थे। उस समय, टोटल जंगल हुआ करता था, तो उनका लाव-लश्कर जो ठहरा यहां आ कर के, वो स्थान वही है जहां आज ये बादशाही बाग कहलाता है।”
शाहजहां गर्मियों के दौरान यहां अपने परिवार के साथ अक्सर वक्त बिताते थे और आस-पास के जंगलों में शिकार का मज़ा लेते थे। यहां से यमुना और शिवालिक पहाड़ियों की मोहक तस्वीरें दिखती हैं। इलाके के लोगों का दावा है कि शाहजहां इस बादशाही महल को भी ताजमहल की तरह ही विकसित करना चाहते थे लेकिन इलाके में फैली एक महामारी की वजह से ऐसा नहीं हो सका।
स्थानीय निवासियों का कहना है कि “यहां पहले दिल्ली बना दी थी अंग्रेजी राज में और वो दिल्ली जिस टाइम ये महल बने थे यहां शाह, दिल्ली में बनाने का इरादा था उनका। तो यहां किसी ने मतलब ये ऐसा प्रचार दिखाया कि उनका जो महिलाएं थीं उनकी यहां की, इनके गले फूल जाते थे यहां का पानी पी-पी कर गिल्लड़ हो गए उनका, इसलिए वो लोग डर गए यहां से कि यहां तो जो हमारी बेगम आएंगी उनका भी ऐसे ही हो जाएगा। तो वो वहां से छोड़कर चले गए थे जी वो। ये बादशाही महल तब के बने हुए हैं।”
वक्त की मार बादशाही महल और शिकारगाह पर पड़ी और अब ये खंडहर बन चुके हैं। हालांकि पुरातत्व विभाग द्वारा संरक्षित इन इमारतों को हेरिटेज टूरिज्म के लिए विकसित करने की काफी संभावनाएं दिखती हैं।