Prayagraj: देश के दूसरे हिस्सों की तरह ही उत्तर प्रदेश में संगम नगरी प्रयागराज में भी मोहर्रम के मौके पर ताजिया निकाले जाने और उन्हें दफनाने की परंपरा है, हालांकि शहर के गढ़ीसराय मोहल्ले का एक खास ताजिया दफनाया नहीं जाता बल्कि इसे सुरक्षित रखा जाता है।
माना जाता है कि यह ताजिया शेरशाह सूरी के वक्त का है और 300 साल से भी ज्यादा पुराना है। इसे पूरी तरह से कश्मीरी अखरोट की लकड़ी और बर्मा सागौन से बनाया गया है।
इस ताजिया की बनावट भी खास है।इसे एक भी लोहे की कील लगाए बिना जोड़ा गया है। इसके हर जोड़ और खूंटी को हाथों से तराशा गया है।
वजनदार होने की वजह से इस ताजिया को जुलूस में नहीं ले जाया जाता है। मोहर्रम के दौरान मुस्लिम समाज के लोग आकर इस पर फूल चढ़ाते हैं और दुआ मांगते हैं। वे इन्हीं फूलों को ले जाकर दफना देते हैं।
स्थानीय लोगों का कहना है कि “यह हमारे जो पुरखे थे, हमारे दादा या वालिद साहब, ये बताया करते थे कि इसकी जो लकड़ी पर नक्काशी का काम जो हुआ है लकड़ी पे ये बर्मा टी की है। उतने समय की जो सबसे महंगी उसी समय की थी।
जो इसमें कील का कोई काम नहीं है लोहे का। सब लकड़ी का ही काम है, कील भी लकड़ी की है इसकी और इसकी सनद भी काफी पुरानी है, शेरशाह सूरी के टाइम से बताते हैं लोग, उसमें हमारी चार-पांच नस्ल चली गईं।”
मोहर्रम के दौरान ताजिया खासकर शिया मुस्लिम समुदाय की धार्मिक और सांस्कृतिक परंपरा का अहम हिस्सा है।