Navratri: लखनऊ का काली बाड़ी मंदिर, जहां कभी बलि देने की थी अनोखी प्रथा

Navratri: नवरात्रि का आज तीसरा दिन है मां दुर्गा के तीसरे स्वरूप चंद्रघंटा की पूजा की जा रही हैं, मां दुर्गा का पहला शैलपुत्री और दूसरा ब्रह्मचारिणी स्वरूप भगवान शंकर को प्राप्त करने के लिए है। जब माता भगवान शंकर को पति रूप में प्राप्त कर लेती हैं तब वह आदिशक्ति के रूप में प्रकट होती है और चंद्रघंटा बन जाती हैं।

उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ कैसरबाग के घसियारी मंडी में स्थित है 161 साल पुराना काली बाड़ी माता का मंदिर जिसकी स्थापना बंगला परंपरा के अनुसार हुई थी इस मंदिर में कभी हर शारदीय नवरात्र की नवमी पर जीवित बलि देने की प्रथा थी बदलते समय के साथ यह परंपरा आज खत्म हो चुकी है।

नवरात्रि यानि शक्ति की उपासना का पर्व चल रहा है इन पवित्र दिनों में जो भी भक्त मां की सच्चे मन से आराधना करता है उसे विशेष पुण्य का लाभ प्राप्त होता हैं, यह अकेला मंदिर है जहां बली देने की अनोखी प्रथा थी जहां बकरे की बलि दी जाती थी लेकिन अब उसकी जगह पर पंच फलों की बलि मां के सामने बने कुंड में दी जाती है, शारदीय नवरात्र में यहां महिषासुर मर्दिनी का विशेष पाठ होता है अब कई अरसे से यहां बलि पूरी तरह से वर्जित है।

मंदिर के पुजारी पीएचडी डॉक्टर अमित गोस्वामी बताते हैं कि तांत्रिक मधुसूदन बनर्जी के सपने में मां काली का रूप आया था और उनको आदेश मिला की एक मंदिर स्थापित होना चाहिए. उसके बाद उन्होंने खुद अपने हाथों से मिट्टी की मूर्ति बनाई और स्थापित की थी.

पुजारी ने बताया कि ऐसी मूर्ति और कही नहीं है, जब मां की स्थापना हो रही थी तब सांप, नेवला, वानर, एक पक्षी समेत कुल पांच जीवों की खोपड़ियो की आधारशिला पर मां की स्थापना हुई थी जिसकी महिमा अपार है मान्यता है कि यहां मां से जो भी भक्ति श्रद्धा से कुछ भी मांगता है उसकी मनोकामना पूरी होती है यही वजह है कि बड़ी संख्या में दूर दराज से लोग माता के दर्शन करने के लिए आज भी पहुचते हैं।

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