Meerut: मेरठ का मवाना गांव लिख रहा है हरित भविष्य की इबारत

Meerut: उत्तर प्रदेश में मेरठ जिले का मवाना गांव स्वच्छ ऊर्जा के क्षेत्र में नया अध्याय लिख रहा है, यहां लगे सीबीजी संयंत्र की उत्पादन क्षमता रोजाना 14.1 टन है, यह संयंत्र स्थानीय उद्यमियों अरुण जग्गी और ललित जग्गी की देन है। इसमें रोज 150 टन जैविक अपशिष्ट संसाधित किया जाता है। इनमें मुख्य रूप से गन्ने का प्रेस मड और गाय का गोबर होते हैं।

यह संयंत्र पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्रालय के सस्टेनेबल अल्टरनेटिव टूवर्ड्स अफोर्डेबल ट्रांसपोर्टेशन स्कीम या एसएटीएटी के तहत लगाया गया है। इसमें बने गैस को खरीदने का करार हिंदुस्तान पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन लिमिटेड के साथ है। यहां उत्पादित गैस को सिलेंडरों में हिंदुस्तान पेट्रोलियम तक पहुंचाया जाता है, इसके अलावा गैस अथॉरिटी ऑफ इंडिया के सिटी गैस डिस्ट्रीब्यूशन, पाइपलाइन नेटवर्क को भी सीधी आपूर्ति की जाती है। यह संयंत्र लगभग 50 टन लिक्विड फर्मेंटेड ऑर्गेनिक खाद भी बनाता है। ये खाद पोषक तत्वों से भरपूर होता है, इसका इस्तेमाल मिट्टी की सेहत बेहतर करने और फसल की उत्पादकता बढ़ाने में होता है।

ये खाद फसल की पैदावार बढ़ाने के लिए स्थानीय किसानों को मुफ्त बांटा जाता है, फिलहाल संयंत्र में रोजाना 6 टन गैस का उत्पादन होता है। इसके 2026 तक साढ़े 22 टन तक बढ़ने की उम्मीद है। गैस उत्पादन की योजना 2018 में शुरू हुई थी, इससे जैविक कचरे से स्वच्छ, नवीकरणीय ईंधन बन रहा है। इस योजना के तहत देश भर में फिलहाल 106 संयंत्र चल रहे हैं और 82 नए संयंत्र बनाए जा रहे हैं।

सर्किल सीबीजी प्लांट के निदेशक अरुण जग्गी ने कहा कि “यहां कच्चे माल की खरीद एक चीनी मिल से की जाती है, जो पास में ही है। उनके पास एक उप-उत्पाद है जिसे प्रेस मड कहा जाता है। प्रेस मड को जमीन पर छोड़ना पर्यावरण के लिए अच्छा नहीं है। इसलिए वे लंबे समय से प्रेस मड के उचित निपटान पर विचार कर रहे थे, फिर संपीड़ित बायो-गैस उत्पन्न करने का विचार आया।

इसलिए हमने चीनी मिलों से सीधे प्रेस मड खरीदना शुरू किया, ताकि उन्हें इसके निपटान की चिंता न करनी पड़े। हम इसे खरीदते हैं, यहां ढंक कर रखते हैं। फिर हम प्रेस मड को पतला करके मिलाते हैं और टैंकों में डालते हैं, जहां बायोगैस पैदा होती है। इस प्रक्रिया को एनारोबिक पाचन कहा जाता है।” उन्होंने कहा कि “सरकारी समर्थन हमेशा से रहा है। मुझे लगता है कि सबसे बड़ा समर्थन सतत योजना की शुरूआत थी। जैसा कि मैंने कहा कि बायोगैस बहुत ही कच्चा और घरेलू उद्योग रहा है। सरकार ने इसे अब इसे बड़े उद्योग के रूप में बढ़ावा दिया है। हमारे जैसे कई लोग, जो किसी नए तरह के उद्योग में निवेश करना चाहते थे, उनके पास पर्याप्त अवसर हैं।

मेरे पास पहले से ही एक खरीदार है और वो खरीदार कोई छोटा खिलाड़ी नहीं है, वह सभी महारत्न कंपनियां हैं। इसलिए यह सबसे बड़ा समर्थन है जो हमें मिला है और दूसरी बात यह है कि केंद्र और राज्य सरकारें अलग-अलग सब्सिडी दे रही हैं, जमीन एक ऐसी सब्सिडी है जो कोई सरकार नहीं देती है। यूपी सरकार ने हमें स्टांप ड्यूटी, बिजली शुल्क में छूट दिया। एक बार जब आप सही गुणवत्ता और सही उत्पादन शुरू कर लेते हैं तो पर्याप्त मात्रा में सब्सिडी दी जा रही है। अन्यथा आपको उन्हें पाने के लिए कड़ी मेहनत करनी होगी।”

इसके साथ ही कहा कि “सफाई के बाद हम इसे संपीड़ित करके सिलेंडरों में डालते हैं, ताकि वह परिवहन के लिए लायक बन सकें। इसे या तो खुदरा आउटलेट में डाल दिया जाता है या पाइपलाइन में सीधे इंजेक्ट किया जाता है। इस प्रक्रिया का पूरा सार ये है कि कोई प्रेस मड स्वाभाविक रूप से किण्वित नहीं होता है और ओजोन परत को नुकसान पहुंचाता है। इसे यहां इस्तेमाल किया जा रहा है, इसीलिए इन्हें नेट जीरो प्लांट कहा जाता है।”

वही किसानों का कहना है कि “प्लांट को लग जाने से हमारी सारी समस्या हल हो गई है, हम गोबर इनको सेल कर सकते हैं। जो हमारा मैली है, वो इधर आ रही है, जिससे सारी पब्लिक परेशान थी। इस प्लांट ने उसको लगाना है, मिथेन गैस सीएनजी में कंवर्ट करके गैस अपने काम में ले लेनी है। और जो इनका वेस्ट, जो हमें फ्री ऑफ कॉस्ट मिल रहा है, वो यह हमें दे रहे हैं।

तो इस तरह के प्लांट मैं तो चाहूंगा कि हर 20 किलोमीटर पर लगने चाहिए, ताकि आसपास सबको लाभ मिले और मैंने एक खेत में एक प्लॉट में इस तरह इनका जो वेस्ट मिल रहा है, वह इस तरह मैंने डाल के देखा है कि आधे एकड़ में डाल दिया और आधे एकड़ में नहीं डाला। जिधर नहीं डाला है, वहां पर 15 परसेंट मेरी प्रोडक्शन कम आई है। जहां पे डाला है, वहां पे 15 परसेंट प्रोडक्शन ज्यादा आई है।”

“सीएनजी गैस प्लांट से हमारा जैविक खाद निकल आया है, हमारी जमीन में कोई अच्छी पैदावार हुई है। जमीन में कोई पैदावार बढ़ा रहा है। जो हम डीएपी और यूरिया एक कट्टा लगाते थे, अबकी बार आधा कट्टा लगा रहे हैं। पैदावार में फर्क है। जो पिछले बार था, उससे अबकी बार ज्यादा निकला है। तो इस चीज को खेत में डालने से कोई नुकसान नहीं किसान का। हम अपने भी डालते हैं, और किसान भी डालते हैं।

इसके साथ ही कहा कि “हम देख सकते हैं कि डाइजेस्टर एक बहुत बड़ा घटक है। इसे बनाना थोड़ा कठिन है। इसलिए हमने पहले से दो डाइजेस्टर अतिरिक्त बनाए हैं, जो हमें 22 टन तक ले जाएंगे। अभी चल रहे डाइजेस्टर पहले से हमें 14.6 टन तक ले जा रहे हैं, जो निवेश हमने पहले ही कर लिया है। अब हम एक और डाइजेस्टर खरीदने में 5 से 7 करोड़ रुपये का निवेश करने की कोशिश कर रहे हैं।

सफाई तकनीक में सुधार के लिए बैकअप के रूप में नया कंप्रेसर लेंगे। पाइपलाइन आ रही है, इसलिए उसमें भी कुछ निवेश हो सकता है। साथ ही हम अब धीरे-धीरे एफओएम और एलएफओएम के ब्रांड के साथ आना चाहते हैं, जिसका हम उत्पादन करेंगे। इसलिए इसके लिए कुछ और निवेश की आवश्यकता हो सकती है।”

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