Manuscript: उत्तर प्रदेश में वाराणसी के संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय में एक लाख से ऊपर पांडुलिपियों के संरक्षण का अहम काम चल रहा है। कुछ पांडुलिपियां तो 12वीं सदी की हैं। सरकार की मदद से चलने वाली परियोजना में पारंपरिक विधियों और आधुनिक तकनीक का मिश्रण है। इस प्रक्रिया में कागजों का संरक्षण और डिजिटल आर्काइव शामिल है।
राष्ट्रीय पांडुलिपि मिशन के 15 विशेषज्ञों की टीम पांडुलिपियों को सावधानीपूर्वक संरक्षित कर रही हैं। उनके काम में अमूल्य पांडुलिपियों का सूचीकरण, जीर्णोद्धार और दीर्घकालिक संरक्षण शामिल है। अब तक 88 हजार पांडुलिपियों की सूची तैयार हो चुकी है। आगे का काम चल रहा है।
संरक्षित करने के बाद इन पांडुलिपियों का डिजिटलीकरण किया जाएगा। इससे नायाब ऐतिहासिक जानकारियों तक आम लोगों की पहुंच मुमकिन होगी। संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय की संरक्षण और डिजिटलीकरण परियोजना प्राचीन ज्ञान को आधुनिक तकनीक के साथ जोड़कर अमूल्य पांडुलिपियों की सुरक्षा कर रही है। साथ ही सदियों पुराने ज्ञान को आम लोगों के लिए सुलभ बना रही है।
बिहारी लाल वर्मा ने कहा, “हमारे इस पारंपरिक विश्वविद्यालय में सवा लाख पांडुलिपियां हैं। और 12वीं शताब्दी से लेकर के आज की इस सदी तक की बहुत सारी पांडुलिपियां हैं। उन सबका संरक्षण कार्य अभी चल रहा है। भारत सरकार और उत्तर प्रदेश शासन के सहयोग से। पिछले एक वर्ष से कार्य किया जा रहा है, जिसमें प्रिवेंटिव भी और क्यूरेटिव भी- दोनों का इसका प्रिजर्वेशन का कार्य चल रहा है।”
प्रमोद कुमार पांडेयने ने कहा, “पांडुलिपियों को बचाने के लिए दो तरीके होते हैं। एक तो प्रिवेंटिव कंजर्वेशन और दूसरा क्यूरेटिव कंजर्वेशन। प्रिवेंटिव कंजर्वेशन भी हमारा चल रहा है, साथ-साथ में क्यूरेटिव कंजर्वेशन भी। तो अभी यहां पर 15 लोगों की टीम कार्य कर रही है और जो बहुत ही हाईली फ्रेजाइल पांडुलिपियां थीं, उनका संरक्षण कार्य किया जा रहा है। 25 भोजपत्र की पांडुलिपियां, जो बहुत ही फ्रेजाइल कंडीशन में थीं, उनका संरक्षण कार्य करके उनको वापस कर दिया गया है। लगभग 900 ताड़ पत्र की पांडुलिपियों का संरक्षण कार्य करके उनको वापस कर दिया गया है।”
वरुण प्रकाश, पांडुलिपि संरक्षण डिजाइन करने वाला:
“डिजिटली हम लोग का क्या है कि हम लोग की जो भी पांडुलिपियां रहती हैं, बिफोर ट्रीटमेंट, तो हम लोग उसमें क्या है कि जो मैन्स्क्रिप्ट, बिल्कुल जो खराब हैं, उसको हम सही तरीके से दिखाना चाहते हैं। अब ट्रीटमेंट के बाद हमारा कैसा रहा, ट्रीटमेंट से पहले हम लोगों का कैसा रहा तो इसलिए हम लोगों को इसका डिजिटाइजेशन करना पड़ता है। तो हम इसको तीन फोल्डरों में इसको सेव करके रखते हैं। ये हमारे फोल्डर्स हैं कुछ। तीन फोल्डर्स हैं। पीडीएफ है। टिफ है और एक हमारा 2000 करके है। तो तीन जगह हम लोग का सेविंग रहता है।”