Lucknow: सरोजनी नगर विधायक एवं वरिष्ठ भाजपा नेता डॉ. राजेश्वर सिंह ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स (X) के माध्यम से कांग्रेस और समाजवादी पार्टी की राजनीतिक विश्वसनीयता, नैतिक साहस और सार्वजनिक जवाबदेही पर गंभीर प्रश्न खड़े किए हैं। अपने सिलसिलेवार संदेशों में उन्होंने कहा कि जो दल स्वयं सत्ता में रहते हुए नीतिगत भ्रष्टाचार, प्रशासनिक विफलताओं और पर्यावरणीय विनाश से जुड़े रहे हैं, उन्हें आज देश को नैतिकता, संविधान और सुशासन का उपदेश देने का कोई नैतिक अधिकार नहीं है।
कांग्रेस को दिलाई घोटालों की याद
डॉ. राजेश्वर सिंह ने कांग्रेस शासनकाल की ओर इशारा करते हुए कहा कि 2G स्पेक्ट्रम आवंटन, कोयला ब्लॉक निरस्तीकरण, राष्ट्रमंडल खेल घोटाला, अगस्ता वेस्टलैंड हेलीकॉप्टर सौदा, आदर्श हाउसिंग मामला, INX मीडिया प्रकरण और संसद के भीतर कैश-फॉर-वोट्स जैसे विषय राजनीतिक आरोप नहीं, बल्कि CAG रिपोर्ट्स, सुप्रीम कोर्ट के निर्णयों और संवैधानिक संस्थाओं के सार्वजनिक रिकॉर्ड का हिस्सा हैं। उन्होंने स्पष्ट कहा कि राजनीतिक स्मृति सुविधानुसार नहीं चलती और देश भूलने की बीमारी से नहीं, जवाबदेही से चलता है।
सपा शासन – कमजोर शासन और भ्रष्टाचारियों का राजनीतिक संरक्षण
इसी क्रम में डॉ. राजेश्वर सिंह ने उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी के शासनकाल के दौरान पर्यावरणीय प्रशासन की स्थिति पर भी सवाल उठाए। उन्होंने कहा कि अवैध रेत खनन, नदियों की फ्लडप्लेन से छेड़छाड़, बिना शोधन का सीवेज और औद्योगिक कचरा गंगा, गोमती, यमुना और हिंडन जैसी नदियों में बहाया जाना, बड़े पैमाने पर वृक्ष कटान और प्रदूषकों पर कमजोर कार्रवाई, ये सब संयोग नहीं, बल्कि नीतिगत लापरवाही और संरक्षण की राजनीति का परिणाम थे।
डॉ. सिंह ने कहा कि पर्यावरणीय क्षति कोई दुर्घटना नहीं थी, बल्कि कमजोर शासन और राजनीतिक संरक्षण की उपज थी। ऐसे में जिन दलों ने भ्रष्टाचार और पर्यावरण विनाश को संरक्षण दिया, उन्हें आज राष्ट्र को नैतिकता का पाठ पढ़ाने से पहले आत्ममंथन करना चाहिए।
आतंकी हमलों पर विपक्ष का मौन, मानवता के विरुद्ध
अपने संदेशों में डॉ. राजेश्वर सिंह ने ऑस्ट्रेलिया के सिडनी स्थित बॉन्डी बीच पर हुए आतंकी हमले पर कांग्रेस और समाजवादी पार्टी नेतृत्व की चुप्पी पर भी तीखी प्रतिक्रिया दी। उन्होंने सवाल किया कि जब हनुक्का उत्सव के दौरान हुए आतंकी हमले में 15 निर्दोष लोगों की हत्या हुई और दर्जनों घायल हुए, तब इन दलों की संवेदनाएँ क्यों मौन हो गईं? उन्होंने कहा कि आतंकवाद की निंदा तत्काल, बिना शर्त और सार्वभौमिक होनी चाहिए, धर्म, भूगोल या वोट-बैंक देखकर नहीं।
डॉ. सिंह ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि, यह चुप्पी संवेदनशीलता नहीं, बल्कि चुनिंदा विवेक, वोट-बैंक राजनीति और नैतिक दिवालियापन को उजागर करती है। जब पीड़ित राजनीतिक समीकरण में फिट नहीं बैठते, तब संवेदना भी गायब हो जाती है और यही अवसरवादी राजनीति देश की सामुदायिक एकता और नैतिक नेतृत्व को कमजोर करती है।
सनातन संस्कृति के विरुद्ध मौन एक राजनीतिक स्टैंड
सनातन धर्म और भारतीय सभ्यतागत पहचान के विषय पर बोलते हुए डॉ. राजेश्वर सिंह ने कहा कि देश यह भी देख रहा है कि कब राहुल गांधी जी या अखिलेश यादव जी ने सनातन धर्म को भारत की सभ्यतागत आत्मा के रूप में स्पष्ट रूप से स्वीकार किया? कब हिंदू मंदिरों के संरक्षण, पुनरुद्धार या धार्मिक कट्टरता के खुले प्रचार के विरुद्ध स्पष्ट, नाम लेकर निंदा की गई? उन्होंने कहा कि, मंदिर दर्शन और पूजा व्यक्तिगत आस्था हो सकती है, लेकिन सनातन, मंदिर संस्कृति और हिंदू संस्थानों पर मौन एक राजनीतिक स्टैंड है।
जब सत्ता सर्वोपरि हो जाती है, तब नैतिकता ‘संतुलन’, स्पष्टता ‘ध्रुवीकरण’ और चुप्पी ‘परिपक्व राजनीति’ कहलाने लगती है और यहीं से जनता का भरोसा टूटता है। डॉ. राजेश्वर सिंह ने अपने संदेशों के अंत में कहा कि राजनीति का उद्देश्य हर मुद्दे को वोट के तराजू पर तौलना नहीं, बल्कि देश, समाज और भविष्य की रक्षा करना होता है। आज देश चुप नहीं है, देश सवाल कर रहा है। रिकॉर्ड सार्वजनिक हैं, और इतिहास केवल भाषणों का नहीं, चुप्पियों का भी हिसाब रखता है।